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भर्ती में भाई-भतीजावाद !

देश में जब बेरोजगारी की बढ़ती दर सर चढ़कर बोल रही हो तो ऐसे समय में सरकारी भर्तियों में अगर भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार और पक्षपात की खबरें मिलें तो यह बेहद चिन्ताजनक स्थिति कही जायेगी।

10:50 AM Nov 15, 2024 IST | Aditya Chopra

देश में जब बेरोजगारी की बढ़ती दर सर चढ़कर बोल रही हो तो ऐसे समय में सरकारी भर्तियों में अगर भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार और पक्षपात की खबरें मिलें तो यह बेहद चिन्ताजनक स्थिति कही जायेगी।

देश में जब बेरोजगारी की बढ़ती दर सर चढ़कर बोल रही हो तो ऐसे समय में सरकारी भर्तियों में अगर भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार और पक्षपात की खबरें मिलें तो यह बेहद चिन्ताजनक स्थिति कही जायेगी। इस पक्षपात में यदि उत्तर प्रदेश विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष भी शामिल पाये गये हों तो स्थिति और भी अधिक गंभीर हो जाती है। खबर यह है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद में प्रशासनिक पदों पर भर्ती होनी थी, इनमें से 20 प्रतिशत पदों पर दोनों सदनों में काम करने वाले राजनयिकों व अधिकारियों ने अपने सगे-सम्बन्धियों के लिए हथिया लीं जिनमें भर्ती परीक्षा आयोजित करने वाली निजी एजेंसी की भी हिस्सेदारी रही। वर्तमान भारत में जब चपरासी के पद तक पर लाखों उच्च शिक्षा प्राप्त प्रत्याशी आवेदन करते हों तो इस प्रकार की कार्रवाई को खुली लूट ही कहा जायेगा। जब हाल ही में इलाहाबाद (प्रयागराज) में राज्य भर के हजारों छात्रों ने प्रतियोगी परीक्षा में पारदर्शिता लाने के लिए आन्दोलन चलाया हो और पुलिस की लाठियां छात्राओं तक ने खाई हों तो स्थिति की गंभीरता को समझा जा सकता है। बामुश्किल सरकार उत्तर प्रदेश संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षा एक दिन में ही कराने के लिए राजी हुई है जबकि आरओ व एआरओ के लिए आयोजित की जाने वाली परीक्षा को फिलहाल स्थगित तो कर दिया गया है मगर इनकी परीक्षाएं एक ही चरण में कराने का आश्वासन सरकार ने अभी तक नहीं दिया है।

कमाल यह है कि इन पदों की संख्या केवल डेढ़ सौ भी नहीं है और परीक्षार्थी लाखों की संख्या में हैं। इसी प्रकार प्रदेश संघ लोकसेवा आयोग की पीसीएस पदों के लिए संख्या केवल 47 है और परीक्षार्थी पांच लाख से अधिक हैं। अतः जिस राज्य में बेरोजगारी का आलम यह हो वहां नौकरियों में भाई-भतीजावाद का होना बताता है कि हमारी पूरी भर्ती प्रणाली से दुर्गंध उठ रही है जिसका तुरन्त इलाज ढूंढा जाना चाहिए वरना युवा वर्ग में यदि बेचैनी बढ़ती है तो उसके दुष्परिणाम पूरी व्यवस्था को भुगतने पड़ सकते हैं। परन्तु उत्तर प्रदेश विधानसभा व विधान परिषद के प्रशासनिक पदों में जिस प्रकार की धांधली विगत 2020-21 वर्ष में हुई वह किसी भर्ती कांड (स्कैम) से कम नहीं है। ये शब्द मेरे नहीं हैं बल्कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के हैं। इस वर्ष में दोनों सदनों के प्रबन्धकीय व प्रशासकीय पदों पर कुल 186 भर्तियां आरओ व एआरओ की होनी थीं। इनमें से 42 पदों पर इन सदनों में कार्यरत अधिकारियों ने अपने बेटे-बेटियों समेत सगे-सम्बन्धियों को दिलवा दिये। इनमें विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष एच.एन. दीक्षित भी शामिल हैं। इन भर्तियों को जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय में तीन परीक्षार्थियों ने चुनौती दी तो उच्च न्यायालय ने इसे भर्ती का एेसा कांड कहा जिसमें जमकर भ्रष्टाचार किया गया और राजनयिकों व अफसरों में अपने सगे-सम्बन्धियों को भर्ती कराने की होड़ लग गई। भ्रष्टाचार की इस बहती गंगा में परीक्षा आयोजित कराने वाली निजी एजेंसी ने भी हाथ धो लिये और अपने निकट के लोगों को पांच पद दिलवा दिये। ये पद एजेंसी के मालिकों के रिश्तेदारों को दिये गये। इस भर्ती कांड में जिस-जिस अधिकारी ने अपने सगे-सम्बन्धियों को पदों पर नियुक्ति दिलाई उनमें विधानसभा अध्यक्ष के जनसम्पर्क अधिकारी के सगे भाई भी शामिल थे। इस बारे में विधानसभा के 2017 से 2022 तक अध्यक्ष रहे एच.एन. दीक्षित का कहना है कि उनका इस भर्ती कांड से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि भर्ती परीक्षा के आयोजन की जिम्मेदारी दो निजी संस्थाओं को दे दी गई थी। ये संस्थाएं विधानसभा द्वारा मान्यता प्राप्त हैं जबकि इनकी विश्वसनीयता इनका पिछला रिकार्ड देखते हुए सन्देह के घेरे में रखी जाती है।

सबसे मजेदार बात यह है कि जिन अधिकारियों ने अपने सगे-सम्बन्धियों के लिए 186 में से 42 पद हथियाए उन्होंने ही परीक्षा आयोजन के समय पर्यवेक्षक का कार्य किया था। इन पदों के लिए 2020-21 में दो चरणों में परीक्षा का आयोजन किया गया था। इन पदों पर 2023 में नियुक्तियां भी कर दी गईं। कुल 15 आरओ व 27 एआरओ के पद सगे-सम्बन्धियों को दिये गये।

इन 186 पदों के लिए कुल ढाई लाख से अधिक परीक्षार्थियों ने आवेदन किया था। ये नियुक्तियां विधानसभा व विधान परिषद सचिवालय में हुईं। जब यह मामला इलाहाबाद उच्च न्यायालय में गया और न्यायालय ने इसे भर्ती कांड कहते हुए इसकी सीबीआई से जांच कराने के आदेश दिये तो विधान परिषद इस फैसले के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय चली गई और देश की सबसे बड़ी अदालत ने सीबीआई जांच पर अन्तरिम रोक लगाकर सुनवाई की अगली तारीख जनवरी 2025 में तय कर दी। इस प्रकार अब मामला सर्वोच्च न्यायालय के विचाराधीन है। मगर इस कांड से यह पता चलता है कि जब विधानसभा व विधान परिषद के अध्यक्षों की नाक के नीचे खुलेआम भ्रष्टाचार व भाई-भतीजावाद हो रहा है तो अन्य सरकारी विभागों के बारे में क्या कहा जा सकता है। वैसे विधानसभा सचिवालय में पदों की भर्ती के लिए मुख्यतः विधानसभा अध्यक्ष ही जवाबदेह होते हैं।

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