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इस्राइल में नेतन्याहू की वापसी

इस्राइल के आम चुनावों के परिणामों से संकेत स्पष्ट मिल चुके हैं कि एक बार फिर पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सत्ता में वापसी हो रही है।

02:04 AM Nov 04, 2022 IST | Aditya Chopra

इस्राइल के आम चुनावों के परिणामों से संकेत स्पष्ट मिल चुके हैं कि एक बार फिर पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सत्ता में वापसी हो रही है।

इस्राइल में नेतन्याहू की वापसी
इस्राइल के आम चुनावों के परिणामों से संकेत स्पष्ट मिल चुके हैं कि एक बार फिर पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सत्ता में वापसी हो रही है। 4 साल से भी कम समय में यह देश का पांचवां चुनाव है। मतदान से पूर्व एक्जिट पोल में भी नेतन्याहू की पार्टी को 62 सीटें मिलने की उम्मीद जताई गई थी। नेतन्याहू  की लिकुुड पार्टी ने जिस तरह से चुनावों में प्रदर्शन किया है वह बताता है कि मतदाता उन पर कितना भरोसा करते हैं। उन्होंने मतदाताओं से देश का गौरव वापिस लाने का वादा किया था। वह यह भी कहते रहे हैं ‘‘मैं राजा नहीं हूं, देश को मेरी जरूरत थी।’’ नेतन्याहू स्वयं राष्ट्रवादी हैं और उन्होंने हमेशा राष्ट्रवादी नीतियां अपनाई हैं। 73 वर्षीय लिकुड पार्टी के प्रमुख नेतन्याहू  ने अपने सैंटर लेफ्ट प्रति​द्वंद्वी येर लैपिड को हराया है। येर लैपिड ने पिछले चुनावों में नेतन्याहू को हराने में कामयाबी हासिल की थी। 12 साल तक प्रधानमंत्री रहने के बाद नेतन्याहू काे जून 2021 में अपना पद छोड़ना पड़ा था। नेतन्याहू पांचवां चुनाव जीत कर छठी बार पीएम बनेंगे।  74 साल के इस देश के इतिहास में ऐसा पहले  कभी नहीं हुआ है। 18 महीने बाद नेतन्याहू की सत्ता में वापसी के पीछे बहुत से कारण भी हैं। उनकी सफलता के पीछे उनकी बनाई गई उस छवि का महत्वपूर्ण योगदान है कि उन्होंने इस्राइल को मध्यपूर्व की खतरनाक ताकतों से सुरक्षित रखा है। फलस्तीन को लेकर उनका रुख काफी सख्त रहा है। उन्होंने शांति वार्ताओं से ज्यादा देश की कड़ी सुरक्षा पर ध्यान दिया।
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जून में जब चुनाव हुए थे तो बढ़ती महंगाई अहम मुद्दा थी। लेकिन इस बार के चुनावों में देश में राजनीतिक स्थिरता स्थापित करना और अराजकता खत्म करना अहम मुद्दे थे। हाल ही के हफ्तों में इस्राइल के खिलाफ फलस्तीनी हमलों में बढ़ौतरी के कारण चुनावों में सुरक्षा का मुद्दा अहम हो गया था। हाल ही में फलस्तीन ने वेस्ट बैंक में एक कार से इस्राइली सैनिकों पर हमला किया था जिसमें पांच सैनिक घायल हो गए थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस्राइल काफी शक्तिशाली देश है। उसके पास दुश्मनों को मात देने के​ लिए नतीनतम टेक्नोलोजी है। वह अपने दुश्मनों को कभी नहीं छोड़ता बल्कि उन्हें ढूंढ-ढूंढ कर मार डालता है। नेतन्याहू पर राजनीतिक सफलताओं के साथ-साथ घूसखोरी, धोखाधड़ी समेत कई गम्भीर आरोप लगे। हालांकि उन्होंने इन आरोपों को गलत बताया। विपक्ष उन्हें लोकतंत्र के ​लिए खतरा बताता रहा है लेकिन इस बार के चुनावों में यह साबित कर दिया कि नेतन्याहू की लोकप्रियता बरकरार है। अगर नेतन्याहू का अब तक का जीवन देखा जाए तो उन्होंने इस्राइल की सेना में इलीट कमांडो यूनिट में एक कप्तान के रूप में सेवा की। 1968 में नेतन्याहू ने बेरूत के हवाई अड्डे पर एक हमले में भाग लिया और 1973 के मध्यपूर्व युद्ध में भी वे लड़े। 1976 में उनके भाई जोनाथन युगांडा में एक अपहृत विमान से बंधकों को छुड़ाने के लिए कार्रवाई में मारे गए थे। तब नेतन्याहू ने अपने भाई की याद में एक आतंकवाद विरोधी संस्थान की स्थापना की और 1982 में वाशिंगटन में इस्राइली मिशन के उपप्रमुख बने।
1988 में इस्राइल लौटने के बाद वह राजनीति में शा​िमल हुए। फिर वह आगे बढ़ते गए और 1996 में यित्जाक रॉबिन की हत्या के बाद चुनाव में वह सीधे प्रधानमंत्री बन गए। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि अपने देश को सुरक्षित रखना रहा। फलस्तीन आैर इस्राइल में गाजापट्टी पर विवाद होते रहे। 2021 में भी जबरदस्त संघर्ष हुआ। हालांकि इस विवाद में इस्राइल को अमेरिका का साथ मिला लेकिन उन्होंने अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु कार्यक्रम को खराब डील बताया। नेतन्याहू के बराक ओबामा से संबंध अच्छे नहीं रहे। डोनाल्ड ट्रम्प के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका और इस्राइल में कई समझौते हुए और एक साल के भीतर ही ट्रम्प ने ऐलान कर दिया कि वो येरूशलम को इस्राइल की राजधानी का दर्जा देते हैं। चुनाव नतीजों के बाद एक सम्भावना यह भी बन रही है कि हो सकता है नेतन्याहू गठबंधन सरकार का नेतृत्व करें। फिलहाल नेतन्याहू की सत्ता में वापसी तय है। नेतन्याहू की सत्ता में वापसी से भारत और इस्राइल संबंधों में काफी मजबूती आएगी क्योंकि नेतन्याहू प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गहरे दोस्त हैं। भारत इस्राइल में दोस्ती द्विपक्षीय संबंधों की नजर में भले ही तीन दशक पुरानी हो लेकिन यहूदी धर्म का भारत से सदियों पुराना रिश्ता है। वैसे तो भारत ने सितम्बर 1950 में इस्राइल को एक देश के रूप में मान्यता दी थी किन्तु पूर्ण राजनीतिक संंबंध स्थापित करने में दोनों देशों को लम्बे समय तक इंतजार करना पड़ा। भारत-इस्राइल के बहुआयामी द्विपक्षीय संबंधों का आधार रक्षा संबंध रहे हैं। कई वर्षों तक वोट बैंक की राजनीति के चलते भारत-इस्राइल संबंधों पर पर्दा डाले रखा गया। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद भारत-इस्राइल संबंधों से पर्दा पूरी तरह से उठ गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस्राइल का दौरा किया तब दोनों की दोस्ती परवान चढ़ी। यहां तक कि नेतन्याहू  ने चुनावी विज्ञापन में मोदी के साथ अपनी तस्वीर साझा की थी।
भारत के लिए इस्राइल एक ऐसे देश के रूप में उभरा है, जिसने हमारी सुरक्षा चुनौतियों का हल ढूंढने में हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कारगिल युद्ध में सहयोग तथा आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में इस्राइल की भूमिका अति महत्वपूर्ण रही है। आज रूस के बाद इस्राइल भारत का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा उपकरणों का आपूर्तिकर्ता देश है। भारतीय रक्षा एजैंसियां एक लम्बे समय से इस्राइल के द्वारा बनाए गए वेपन सिस्टम का उपयोग करती रही है। फाल्कन एयरबार्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम से लेकर हेरान ड्रोन और बराक एंटी मिसाइल डिफेंस सिस्टम तक व स्पाइडर क्वीक रिएक्शन एंटी एयर क्राप्ट सिस्टम से लेकर पाइथन डर्बी (हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल) जैसी सुरक्षा प्रणालियों ने भारतीय सुरक्षा व्यवस्था को दुरुस्त रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। दोनों देशों ने सामरिक सांझेदारी को रक्षा क्षेत्र के अलावा दूसरे क्षेत्रों में भी बढ़ाया है। दोनों के बीच व्यापार भी बढ़ा है। दोनों देश स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। नेतन्याहू  की सत्ता में वापसी से भारत-इस्राइल संबंध और मजबूत होंगे। भारत को अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए इस्राइल से संबंधों को और विस्तार देने की जरूरत है।
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आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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