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भाजपा का नया अध्यक्ष अगले साल

04:00 AM Oct 05, 2025 IST | त्रिदीब रमण

‘अब तो तेरे ही नाम की मुनादी हर तरफ शहर में है
एक तू ही नहीं बाखबर, जाने तू किसके असर में है’
राजधानी दिल्ली की बोसीदा हवाओं से रावण दहन के धुएं की परतें बारिशों में घुल गई है, एक नए चमकदार दिन का आगाज़ है और ऐसे ही माहौल में भगवा पार्टी अपने कई अहम फैसलों को सिरे चढ़ा रही है। मौका संघ के शताब्दी वर्ष का भी है, सो कहते हैं अब संघ और भाजपा के बीच ​िरश्ताें के कई अनसुलझे डोर भी खुलते चले गए। भाजपा अब संघ की तारीफ कर रही है और संघ भाजपा की तारीफ कर रहा है।
संघ ने भाजपा से साफ कह दिया है कि ‘वह अपना नया अध्यक्ष चुनने के लिए बिल्कुल स्वतंत्र है, इसमें संघ का कोई दखल नहीं होगा।’ संघ से जुड़े ​िवश्वस्त सूत्र खुलासा करते हैं कि भाजपा के सम्मुख संघ ने बस इतनी सी शर्त रखी है कि ‘जब तक भाजपा अपना नया अध्यक्ष नहीं चुन लेती पार्टी के मौजूदा अध्यक्ष जेपी नड्डा संगठन से जुड़े अहम निर्णय नहीं ले सकते। इसके लिए उन्हें पार्टी के संसदीय बोर्ड पर निर्भर रहना होगा और संसदीय बोर्ड भी एक सामूहिक नेतृत्व के अंतर्गत काम करेगा।’ अभी गुजरात को नया प्रदेश अध्यक्ष और झारखंड को नया कार्यकारी अध्यक्ष मिला है, समझा जाता है कि इस पर भी भाजपा नेतृत्व ने एक सामूहिक सहमति बनाने की कोशिश की होगी। कहते हैं संघ ने स्पष्ट कर दिया है कि ‘मलमास-खरमास के बाद ही नए साल में मकर सक्रांति यानी 14 जनवरी के बाद भाजपा अपने नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा करेगी’, कहते हैं शीर्ष भाजपा इस आइडिया को संघ नेतृत्व का भी मूक समर्थन हासिल है।
भाजपा पर इतने हमलावर क्यों हैं पीके?
जिन भगवा आकांक्षाओं की गोद में पल-बढ़ कर प्रशांत किशोर ने अपनी सियासी आकांक्षाओं को सींचा है आज अचानक से वे उसी पार्टी के प्रति इतने हमलावर कैसे हो गए हैं? वो भी ऐसे वक्त में जब उन पर भाजपा की ‘बी टीम’ के तौर पर कार्य करने के आरोप लगते रहे हैं। पीके स्वयं भी ऐसा मानते थे कि भाजपा के साथ उनके ​िरश्ते किंचित मधुर हैं, पर सारा गेम तब पलट गया जब केंद्र सरकार ने पीके के साथ-साथ उनकी पत्नी के एनजीओ को भी ​िनशाने पर ले लिया। पीके से जुड़े विश्वस्त सूत्र का दावा है कि कोई दो हफ्ते पहले पीके को इंकम टैक्स विभाग का एक नोटिस सर्व हुआ था, अभी पीके इस आघात से उबर ही नहीं पाए थे कि केंद्र सरकार ने उनकी पत्नी द्वारा संचालित एनजीओ को निषाने पर ले लिया। सूत्रों का दावा है कि न सिर्फ एनजीओ के प्रबंधकों को आयकर विभाग का नोटिस सर्व हुआ, बल्कि संस्था के कार्यालय पर बकायदा रेड डाल दी गई। यही बात पीके को आहत कर गई, उनका कहना है कि ‘उनकी राजनीतिक विचारधारा या गतिविधियों से उनकी पत्नी का क्या ताल्लुक? वह तो बिहार भी मुश्किल से तीन-चार बार आईं हैं।’ कहते हैं इस सरकारी कार्यवाही के बाद ही पीके ने भाजपा के खिलाफ हल्ला बोल दिया है, उनके ‘नो होल्ड बार्ड’ के ऐलान को भी इसी संदर्भ से जोड़ कर देखा जा रहा है।

बमुश्किल मिला हरियाणा कांग्रेस को नया अध्यक्ष
काफी उठा-पटक, खींचतान व धींगामुश्ती के बाद आखिरकार हरियाणा कांग्रेस को भूपेंद्र सिंह हुड्डा की जगह राव नरेंद्र सिंह के रूप में नया प्रदेश अध्यक्ष मिल गया है। दरअसल, भूपेंद्र सिंह हुड्डा इस शर्त पर अपनी अध्यक्षीय कुर्सी छोड़ना चाहते थे कि ‘पार्टी उनकी जगह उनकी पसंद के कैप्टन अजय यादव का चुनाव करेगी।’ पर सैलजा व रणदीप सुरजेवाला जैसे नेतागण कैप्टन अजय के नाम का विरोध कर रहे थे, वे कह रहे थे कि ‘प्रदेश का नेतृत्व किसी यादव के हाथों में देने के बजाए किसी पंजाबी नेता के सुपुर्द करना चाहिए, क्योंकि हुड्डा अध्यक्षीय छोड़ने के बाद विधायक दल के नेता होने वाले थे यानी जाट स्वाभिमान की रक्षा की पहले से तैयारी थी।’ सैलजा ने अपनी ओर से जिन दो नेताओं के नाम आगे किए उसमें से एक इस बार का चुनाव हार चुके थे, दूसरे की कोई खास राजनीतिक वक़त नहीं था, चूंकि राहुल दक्षिणी अमेरिका के दौर पर निकल चुके थे, सो मामले से निपटने के लिए हुड्डा सीधे सोनिया गांधी से मिलने जा पहुंचे और उनसे कहा कि ‘अगर सैलजा जी की मानें तो हम कुरूक्षेत्र व करनाल जैसे इलाकों में क्यों हार गए, जहां पंजाबी वोटरों का दबदबा है। रही बात जाटों की तो उन्होंने हर सीट पर खुलकर हमारा समर्थन किया है, इसीलिए जाट स्वाभिमान की रक्षा के लिए मेरा सीएलपी लीडर बनना जरूरी है।
अध्यक्ष भले ही आप किसी न्यूट्रल लीडर को बना दीजिए’, इसी समझौते के तहत राव नरेंद्र सिंह का नाम निकल कर सामने आया। जब उनके नाम का भी सैलजा और सुरजेवाला ने विरोध किया तो प्रियंका गांधी ने इन दोनों नेताओं को अपने पास तलब कर उनकी क्लास लगा दी, तब कहीं जाकर नरेंद्र सिंह और हुड्डा के लिए मैदान निश्कंटक हो सका।
बिहार और भाजपा के प्रभारी
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए इस 25 सितंबर को धर्मेंद्र प्रधान को प्रभारी तथा केशव प्रसाद मौर्य व सीआर पाटिल को सह प्रभारी बनाने की घोषणा हुई। दरअसल, प्रभारी का मामला लंबे समय से लंबित पड़ा था।
सूत्रों की मानें तो भाजपा चाहती थी कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बिहार के चुनाव प्रभारी का जिम्मा संभाले। योगी को प्रस्ताव दिया गया था कि ‘बतौर प्रभारी वे बिहार के मामले में स्वयं स्वतंत्र निर्णय ले सकते हैं साथ ही उन्हें वहां के चुनावी खर्च का जुगाड़ करना पड़ेगा।’ भाजपा को उम्मीद थी कि योगी अपने सीधे उद्बोधनों से बिहार में वोटों का ध्रुवीकरण करा पाने में सक्षम होंगे और अगर एक बार यह चुनाव सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के आसपास सिमट आया तो भाजपा गठबंधन को जीतने से कोई रोक नहीं पाएगा, पर योगी ने इस प्रस्ताव को यह कहकर नकार दिया, कि ‘इतने दिन चुनाव में उलझ गए तो यूपी से उनका ध्यान भटक सकता है, यहां प्रशासनिक फैसले लेने में देरी हो सकती है।’ इसके बाद भाजपा ने केशव प्रसाद मौर्य का चुनाव किया, उन्हें बिहार भेजा, पर उन्हें पूरी तरह जिम्मेदारी सौंपने का रिस्क नहीं उठा पाए।
राहुल को किस बात का था अंदेशा
द​क्षिणी अमेरिका रवाना होने से पहले नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस कोर कमेटी की एक अहम बैठक बुलाई थी। राहुल ने उस बैठक में खुल कर कहा था- ‘हम जितने भी मुद्दे उठा रहे हैं चाहे वह ‘वोट चोरी’ के हों या ‘अमेरिकी दबाव’ के, आप देखना हमारी पार्टी से ही कई लोग इसके खिलाफ बोलेंगे, क्योंकि मैं जानता हूं कि हमारी पार्टी के ही एक-तिहाई लोग भाजपा के लिए काम कर रहे हैं।’ दरअसल, राहुल का इशारा मनीश तिवारी व उनकी मंडली की ओर था, पर बोल गए चिदंबरम। इसके अलावा राहुल ने बिहार के कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरू से कहा कि ‘जिन 69 लाख लोगों के नाम बिहार में वोटर लिस्ट से कटे हैं जरा पता करिए वे लोग किन जातियों से ताल्लुक
रखते हैं।
मेरा अनुमान है कि इसमें से अधिकांश दलित या महादलित हैं।’ अल्लावरू ने कहा कि ‘यह लिस्ट इतनी बड़ी है, समय इतना कम है, जानना मुश्किल हो जाएगा, फिर भी हम पूरी कोशिश करेंगे।’ राहुल ने आगे कहा ‘यह एक बड़ा चुनावी मुद्दा हो सकता है कि सेलेक्टिव जातियों के नाम ही वोटर लिस्ट से काटे गए हैं। हमें बिहार में घूम-घूम कर यह बात लोगों को बतानी होगी।’ अल्लावरु अपने काम में शिद्दत से जुट गए हैं।
...और अंत में
बिहार में एक आशावादी राजनीति की जोत जलाने का दंभ भरने वाले प्रशांत किशोर भी क्या यहां की जातीय राजनीति के दलदल में फंस गए हैं?
नहीं तो क्या कारण है कि पीके की जनसुराज पार्टी राज्य के भोजपुर, शाहबाद, बक्सर, कराकट जैसे इलाकों में जो पोस्टर-परचम व स्टिकर लगा रही है उसमें पार्टी के सर्वेसर्वा पीके का नाम बड़े-बड़े अक्षरों में उनके सरनेम के साथ अंकित है-प्रशांत किशोर पांडेय! यानी पीके भी बिहार में अपनी पार्टी के लिए जातीय ध्रुवीकरण का शंखनाद कर
चुके हैं।
(www.parliamentarian.in)

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