नए मुख्य चुनाव आयुक्त
ज्ञानेश कुमार होंगे देश के अगले मुख्य चुनाव आयुक्त
भारत का निर्वाचन आयोग एक स्वायत्त और स्थाई संवैधानिक निकाय है जो भारत के संघ और राज्यों में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी सम्भालता है। भारतीय निर्वाचन आयोग सरकार के तहत नहीं है बल्कि एक स्वतंत्र संस्था है। संविधान भारतीय निर्वाचन आयोग को संसद, राज्य विधानसभाओं, देश के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के कार्यालयों के चुनावों के निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है। चुनाव आयोग एक स्वतंत्र बजट होता है। मुख्य चुनाव आयुक्त आयोग का प्रमुख होता है और उसके साथ दो निर्वाचन आयुक्त भी होते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में तीन सदस्य वाली समिति की बैठक के बाद चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार नया मुख्य चुनाव आयुक्त बनाने का फैसला किया है, जबकि विवेक जोशी को चुनाव आयुक्त बनाया गया है। इस संबंध में बैठक में फैसला 2-1 से हुआ।
इन नियुक्तियों के संबंध में अधिसूचना भी जारी कर दी गई है। ज्ञानेश कुमार 1988 बैच के केरल कैडर के आईएएस अफसर हैं। ज्ञानेश कुमार चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति संबंधी नए कानून के तहत नियुक्त होने वाले पहले मुख्य चुनाव आयुक्त हैं। इस कानून के तहत मुख्य चुनाव आयुक्त के चयन के लिए गठित समिति में मुख्य न्यायाधीश के स्थान पर गृहमंत्री को शामिल किया गया है। कांग्रेस ने इन नियुक्तियों पर आपत्ति जताई है। जिस बैठक में मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के उत्तराधिकारी का फैसला किया गया, उस बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने ज्ञानेश कुमार के नाम पर सहमति जताई और राष्ट्रपति को उनके नाम की सिफारिश की। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इसका विरोध किया। राहुल गांधी का कहना था कि नियुक्ति की प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई तक के लिए टाल दिया जाए।
देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के दौरान क्या रुख अपनाता है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले फैसला दिया था कि जब तक संसद इस बारे में कोई कानून नहीं बनाती तब तक चुनाव आयुक्त की नियुक्ति ऐसी चयन समिति करेगी जिसमें प्रधानमंत्री और उनका एक मंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता और मुख्य न्यायाधीश होंगे लेकिन केन्द्र सरकारर ने जो कानून बनाया, इसमें ऐसी चयन समिति का प्रावधान किया गया जिसमें मुख्य न्यायाधीश को शामिल नहीं किया गया। इसे दखते हुए विपक्ष ने कड़ा विरोध किया था क्योंकि ऐसी समिति में विपक्ष का नेता तो अल्पमत में ही रहेगा। नैतिकता का तकाजा तो अल्पमत में ही रहेगा। नैतिकता का तकाजा तो यही था कि चयन समिति की बैठक सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई तक टाल दी जाती। तब न्यायालय का रुख भी साफ हो जाता लेकिन सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन कर लिया।
भारत में मुख्य चुनाव आयुक्त विवादों के घेरे में रहे हैं और उन पर सरकार के पक्ष में काम करने के आरोप लगते रहे हैं। मुख्य चुनाव आयुक्तों पर लगातार आरोपों से इस संस्था की साख प्रभावित हुई है जो लोकतंत्र के लिए नुक्सानदेह है। केवल मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन ने ही राजनेताओं के खिलाफ कमर कसकर निष्पक्ष और बेदाग चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग में कड़े तेवरों की शुरूआत की थी। उसे आज तक लोग याद करते हैं। जब 1990 में टी.एन. शेषन ने पद सम्भाला था तो उन्होंने कई महत्वपूर्ण चुनाव सुधार किए। उन्होंने ही फर्जी मतदान को रोकने के लिए मतदाता पहचान पत्र की शुरूआत की थी। 2022 में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में सुधार की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अब तक कई चुनाव आयुक्त हुए हैं, मगर टी.एन. शेषन जैसा कोई कभी-कभार ही होता है।
ज्ञानेश कुमार अनभुवी अधिकारी है। गृह मंत्रालय में रहते हुए उन्होंने राम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जब जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाया गया था तो वह गृह मंत्रालय में जम्मू-कश्मीर डेस्क के प्रभारी थे। वह संसदीय कार्यालय में सचिव भी रहे और वे केन्द्रीय सहकारिता मंत्रालय में भी सचिव रहे हैं। उनके सामने बहुत से काम पड़े हुए हैं।2027 में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के कार्यकाल में होंगे। आगामी बिहार, केरल, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, पुडुचेरी, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, गोवा, पंजाब, यूपी, उत्तराखंड, मणिपुर, कर्नाटक, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा, तेलंगाना, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा के चुनाव ज्ञानेश कुमार के मुख्य चुनाव आयुक्त के कार्यकाल में ही होंगे। इसके अलावा कई राज्यों में राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव भी होंगे।
उम्मीद की जाती है कि ज्ञानेश कुमार किसी भी राजनीतिक दल के प्रति किसी भी तरह की पक्षपात नहीं करेंगे और सत्तारूढ़ दल के प्रभाव से मुक्त होकर स्वतंत्र एवं निष्पक्ष ढंग से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करेंगे, तभी निर्वाचन आयोग की विश्वसनीयता बहाल होगी। मुख्य चुनाव आयुक्त का पद बहुत ही गरिमामय और प्रतिष्ठा वाला है और आशा की जाती है कि वह इसी के अनुरूप काम करेंगे।