Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

नये वर्ष की नई मंजिलें?

आज नये वर्ष 2023 की शुरूआत हो रही है और मेरे सामने उस भारत वर्ष की तस्वीर घूम रही है जिसे 75 वर्ष पूर्व महात्मा गांधी ने जन-जागरण करके अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया था।

01:09 AM Jan 01, 2023 IST | Aditya Chopra

आज नये वर्ष 2023 की शुरूआत हो रही है और मेरे सामने उस भारत वर्ष की तस्वीर घूम रही है जिसे 75 वर्ष पूर्व महात्मा गांधी ने जन-जागरण करके अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया था।

आज नये वर्ष 2023 की शुरूआत हो रही है और मेरे सामने उस भारत वर्ष की तस्वीर घूम रही है जिसे 75 वर्ष पूर्व महात्मा गांधी ने जन-जागरण करके अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया था। 1947 का भारत अंग्रेजों द्वारा पूरी तरह मुफलिस और कंगाल बनाकर छोड़ा गया था। लगातार दो सौ वर्ष तक उन्होंने भारत की सम्पत्ति का दोहन किया था, इसके आय स्रोतों का इस्तेमाल ब्रिटिश साम्राज्य को मजबूत बनाने के लिए किया था। अपने शासनकाल में अंग्रेजों ने भारत को औद्योगिक क्रान्ति से दूर रखा और इसे अपने बनाये गये ‘तैयार माल’ के बाजार के रूप में विकसित किया। मगर आज 75 वर्ष बाद भारत हर मोर्चे पर तरक्की कर रहा है। यह विश्व के 20 प्रमुख औद्योगिक राष्ट्रों में से एक है और वैज्ञानिक विकास में यह दुनिया के सात अग्रणी देशों मे गिना जाता है। यह सब कुछ हमने आजादी पाने के अगले दिन से ही शुरू कर दिया था और इस कार्य में भारत की सभी सरकारों ने अपने-अपने तरीके से योगदान किया। बेशक शुरू- शुरू में यह काम बहुत कठिनाइयों भरा था क्योंकि सब कुछ शून्य से ही शुरू करना था। इसके बावजूद आज हम विश्व की वैध परमाणु शक्ति हैं और अन्तरिक्ष विज्ञान में हमारा विशिष्ट स्थान है तथा कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर हैं। परन्तु विकास के इस क्रम में हमसे कहीं एेसा पक्ष भी छूटा है जिसके उजागर होने पर हमें अपनी तरक्की का खोखलापन काटने को दौड़ता है। 
Advertisement
नये वर्ष से दो दिन पहले ही तमिलनाडु के ‘पुडिकोट्टई’ जिले के ‘इरायूर’ गांव से खबर आयी कि यहां के दलित लोगों को सैकड़ों वर्षों से मन्दिरों में जाने की इजाजत नहीं है और गांव में इनके पीने के पानी की टंकी भी अलग है। इस टंकी में किन्हीं दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों ने ‘मनुष्य मल’ मिला दिया जिसे पीने के बाद गांव के दलित वर्ग के लोग बीमार पड़ने लगे। गांव में चाय की दुकानों पर दलित समुदाय के लोगों के चाय पीने के कप अलग रखे गये थे। जब इन घटनाओं की सूचना जिला प्रशासन को मिली तो महिला जिलाधीश ने कार्रवाई करते हुए जिला पुलिस कप्तान के साथ गांव पर धावा बोला और सभी घटनाओं का संज्ञान लिया। महिला जिलाधीश ने सर्वप्रथम पानी की टंकी को बदलवाने के साथ मन्दिरों में दलितों के प्रवेश को खुलवाया और आगे भी यही क्रम चलाने का निर्देश दिया। आजाद भारत में इस गांव के दलितों की कई पुरानी पीढि़यों ने कभी मन्दिर में प्रवेश करके पूजा-अर्चना करने का साहस नहीं किया था। युवा महिला जिलाधीश ने दलितों का मन्दिर में प्रवेश राज्य सरकार के एक मन्त्री के साथ पूरे गाजे-बाजे के साथ कराया। 
भारत का इतिहास गवाह है कि जाति उत्पीड़न या वर्ण व्यवस्था के खिलाफ सबसे पहले अब से लगभग एक सौ वर्ष पहले तमिलनाडु के क्रान्तिकारी नेता स्व. पेरियार ने ही अभियान चलाया था और सामाजिक बराबरी का उद्घोष किया था। यदि आजादी के 75 वर्ष बाद भी उसी तमिलनाडु के एक गांव में हजारों वर्षों से चली आ रही सामाजिक गैर बराबरी और दलितों पर अत्याचार की कार्रवाइयां जारी रहती हैं तो स्वतन्त्र भारत में हम किस संवैधानिक समानता और सामाजिक न्याय की बात करते हैं। हमारे स्वतन्त्रता सेनानी जिस जातिविहीन समतामूलक समाज की स्थापना के लिए अंग्रेजों के ​िखलाफ लड़े थे , उसकी कैफियत क्या है? 21वीं सदी के वैज्ञानिक युग में भी यदि हम जन्म-जात मूलक जाति व्यवस्था को मानते हुए मनुष्य को छोटा और बड़ा मानते हैं तो हमारी तरक्की का क्या मतलब है? हमें नहीं भूलना चाहिए कि यह गांधी का देश है जिसमें इसका संविधान लिखने का अधिकार एक दलित डा. साहेब भीमराव अम्बेडकर को ही दिया गया। यह अधिकार भी उन्हें महात्मा गांधी के आग्रह पर ही दिया गया था। इससे यह स्पष्ट हो जाना चाहिए था कि 26 जनवरी 1950 को जो संविधान लागू हुआ वह भारत के नये मानवता मूलक युग में प्रवेश करने का दस्तावेज था। यही वजह थी कि महात्मा गांघी ने ब्रिटिश भारत में दलितों को सम्मान दिलाने के लिए व्यापक आन्दोलन छेड़ा था और उन्हें ‘हरिजन’ का नाम दिया था। महात्मा गांधी मानते थे कि दलितों को बराबरी का दर्जा देना भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन से कम नहीं है। अतः नये साल 2023 में हर भारतवासी को यह समझने की सख्त जरूरत है कि स्वतन्त्र भारत में सबसे पहले सामाजिक बराबरी देश के विकास क्रम की वह सीढ़ी है जिस पर चढ़कर इस देश की आने वाली पीढि़यां इसका विकास विश्व के किसी विकसित देश के मुकाबले तेजी से कर सकती हैं।
 लोकतन्त्र में यदि एक व्यक्ति भी विकास की धारा से अलग रहता है तो इस व्यवस्था के आधारभूत सिद्धान्त हिचकोले खाने लगते हैं जबकि यहां तो सवाल उस पूरे समाज का है जिसे दलित कहा जाता है। नये वर्ष में हम राजनैतिक मोर्चे पर युद्ध देखेंगे क्योंकि लगभग नौ छोटे-बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन सभी राज्यों में दलितों या जनजाति के लोगों के ​लिए राजनैतिक आरक्षण भी रहेगा मगर सामाजिक स्तर पर उनकी समानता या बराबरी का सवाल गौण नहीं होना चाहिए क्योंकि इसमें भारत की मजबूती का मन्त्र छिपा हुआ है। कोई भी देश तभी मजबूत होता है जब उसके लोग मजबूत होते हैं और मजबूत तब होते हैं जब उनमें से प्रत्येक के लिए अपने निजी विकास के एक समान अवसर हों । ये अवसर कमजोरों को सबल करने के उपाय सुलभ करवा कर पैदा किये जाते हैं। यह काम लोकतन्त्र में लोगों द्वारा चुनी हुई सरकारों का होता है। भारत को हर मोर्चे पर आगे बढ़ना है और अपने भीतर की उन कमजोरियों को दूर करना है जिनसे इसका समाज कमजोर होता है। यह समाज ही राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान करता है। समाज में बराबरी लाने का विश्वास देश का प्रत्येक राजनैतिक दल दिलाता है और कमजोर को ऊपर उठाने की नीतियां सभी राजनैतिक दलों की होती हैं। अतः जन्म के आधार पर किसी व्यक्ति को छोटा या बड़ा मानने के ​िखलाफ नये वर्ष में सर्वदलीय राजनैतिक प्रस्ताव पारित किये जाने की जरूरत है। हमारा संविधान भी यही कहता है। 
Advertisement
Next Article