नेपाल की नई सरकार
नेपाल की सड़कों पर इसी सप्ताह में पिछले दिनों हुए दो दिन के तांडव के बाद जिस प्रकार लोकतन्त्र बहाल हुआ है उसमें इस देश की सेना की प्रमुख भूमिका रही है क्योंकि सेना ने ही विध्वंस के बाद प्रशासन की कमान संभाली थी और लोगों से शान्ति व अनुशासन बनाये रखने की अपील की थी। सेना ने अराजक परिस्थितियों पर जिस प्रकार नियन्त्रण किया उससे नेपाल की आन्तरिक शक्ति का परिचय भी मिलता है और इस देश को बंगलादेश से अलग खड़ा करता है। नेपाली सेना भी लोकतन्त्र के लिए समर्पित लगती है क्योंकि उसने बहुत जल्दी ही इस देश की पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्रीमती सुशीला कार्की को प्रधानमन्त्री पद संभालने के लिए मना लिया। नेपाल में संविधान लागू है हालांकि यहां की संसद को नई प्रधानमन्त्री ने भंग कर दिया है और छह महीने के भीतर नये चुनाव कराने का आश्वासन दिया है। उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति रामचन्द्र पोडयाल द्वारा ही की गई है। नेपाल की ताजा परिस्थिति पर भारत ने सन्तोष व्यक्त किया है और नई सरकार के साथ सहयोग करने का भी वचन दिया है। एक शान्त व स्थिर और विकसित नेपाल सर्वदा भारत के हित में है क्योंकि भारत ने इसके विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
आजादी के बाद से ही भारत-नेपाल के सम्बन्ध बहुत दोस्ताना ही नहीं रहे बल्कि इससे भी बढ़कर दो भाइयों के समान रहे हैं। इन सम्बन्धों में खटास पैदा करने का प्रयास हालांकि नेपाल के कम्युनिस्टों ने किया मगर इसके लोगों की सहृदयता की वजह से वे इसमें सफल नहीं हो सके और न ही कभी भविष्य में भी सफल हो सकते हैं क्योंकि दोनों देशों के बीच रोटी-बेटी के रिश्ते हैं। कार्की सरकार का भी यह दायित्व बनता है कि वह इन संजीदा सम्बन्धों को हमेशा संज्ञान में रखे। उन्हें नेपाल में लोकतन्त्र की पूरी बहाली की जिम्मेदारी सौंपी गई है अतः बहुत जरूरी है कि वह नेपाल के बहुआयामी हितों को सर्वोपरि रखें। नेपाली जनता भी जानती है कि भारत ने इस देश में लोकतन्त्र बहाली के लिए यहां के नागरिकों की इच्छा का पूरा सम्मान किया था और 2008 में राजशाही के खिलाफ उपजे विद्रोह से स्वयं को दूर रखते हुए घोषणा की थी कि भारत वही चाहता है जो नेपाल की जनता चाहती है।
2008 में भारत में मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार थी और इसके विदेश मन्त्री भारत रत्न स्व. प्रणव मुखर्जी थे। जब 2008 में राजशाही के खिलाफ नेपाल की सड़कों पर उग्र प्रदर्शन हो रहे थे तो उस समय प्रधानमन्त्री डाॅ. मनमोहन सिंह विदेश यात्रा पर थे और उनकी अनुपस्थिति में सरकार का कामकाज वरिष्ठतम होने से प्रणव दा ही देख रहे थे। उन्हें जब नेपाल के बारे में भारत की चिन्ता व्यक्त करने के लिए कहा गया तो उन्होंने साफ कहा कि भारत वही चाहता है जो नेपाल की जनता चाहती है क्योंकि किसी भी देश की जनता का ही यह विशेषाधिकार होता है कि वह अपनी मनपसन्द की सरकार का गठन करे। अतः भारत की स्थिति आज भी साफ है और वह इस देश की जनता की इच्छा का सम्मान करता है। नई प्रधानमन्त्री श्रीमती कार्की के सामने लक्ष्य स्पष्ट है कि संसद के भंग होने के बाद उन्हें लोगों की इच्छा के अनुसार नई सरकार का गठन संविधानतः करना है। नेपाल में संविधान लागू है और इसी के अनुसार अगले छह महीनों के दौरान चुनाव होने हैं जिनमें इस देश के विभिन्न राजनीतिक दल भाग लेंगे। खबरों के अनुसार श्रीमती कार्की अपने मन्त्रिमंडल में श्री कुलमान घीसिंग को भी ऊर्जा मन्त्री नियुक्त करेंगी और कुछ अन्य गैर राजनीतिक व्यक्तियों को भी लेंगी जिससे इन छह महीनों में नेपाल का शासन चुस्त-दुरुस्त हो सके। हालांकि उनकी सरकार अन्तरिम सरकार होगी मगर इसका दायित्व इससे कम नहीं होगा क्योंकि उन्हें पटरी से उतरे नेपाल को पुनः पटरी पर लाना होगा और स्थितियां सामान्य व लोकतन्त्र मूलक बनानी होंगी। उनकी सबसे बड़ी िजम्मेदारी यह होगी कि नेपाल में हिंसा पुनः किसी भी तरह न लौटे। क्योंकि केवल दो दिन की हिंसा में ही नेपाल के सारे लोकतान्त्रिक संस्थान फूंक डाले गये जिनमें संसद तक शामिल थी। इस हिंसा के दौरान जिस प्रकार पी.के. शर्मा आेली सरकार के मन्त्रियों को सड़कों पर पीटा गया और उनके घर आग के हवाले किये गये उससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि जनता में राजनीतिज्ञों के प्रति कितना गुस्सा है। बेशक युवा पीढ़ी का हिंसा मूलक यह तांडव किसी विदेशी साजिश के होने से इन्कार भी नहीं कर सकता है मगर इतना तो तय है कि नेपाली जनता के बीच राजनीतिज्ञों की विश्वसनीयता शून्य के स्तर पर पहुंच गई है।
देश में राजनैतिक व आर्थिक भ्रष्टाचार के खिलाफ युवा पीढ़ी के गुस्से को जायज तो ठहराया जा सकता है मगर इसके विरुद्ध किये गये एेसे हिंसक प्रदर्शन का समर्थन भी नहीं किया जा सकता जिसमें अपना ही घर फूंक कर तमाशा बनना पड़े लेकिन नेपाल यदि पटरी पर लौट रहा है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए और कार्की सरकार के साथ नेपाल की युवा पीढ़ी को भी सहयोग करना चाहिए। क्योंकि नेपाल में बदलाव हिंसा के माध्यम से नहीं बल्कि संविधान के रास्ते से ही आयेगा जिसकी व्यवस्था यहां की सेना के सहयोग से की गई है। मगर श्रीमती कार्की ने प्रधानमन्त्री पद संभालने से पूर्व ही कह दिया था कि वह नेपाल में उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार की जांच जरूर करायेंगी जिसकी उन्हें छूट मिलनी चाहिए। इससे नेपाल की युवा पीढ़ी को भी आश्वस्त होना चाहिए कि उसकी भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग अनसुनी नहीं जायेगी और अन्तरिम सरकार ही इस दिशा में निर्णायक कार्रवाई करेगी।