पांच राज्यों के नये राज्यपाल
केन्द्र की मोदी सरकार ने देश के पांच राज्यों में राज्यपालों की नई नियुक्तियां की हैं
केन्द्र की मोदी सरकार ने देश के पांच राज्यों में राज्यपालों की नई नियुक्तियां की हैं जिनमें मणिपुर के राज्यपाल के रूप में पूर्व गृह सचिव श्री अजय कुमार भल्ला का पदस्थित होना सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस राज्य की परिस्थितियों से पूरा देश वाकिफ है कि किस प्रकार मणिपुर पिछले डेढ़ वर्ष से ‘जातीय हिंसा’ में जल रहा है। इस राज्य में दो जातीय पहचान रखने वाले लोगों के बीच जो हिंसा हो रही है, उसे मणिपुर में गृहयुद्ध की संज्ञा भी कुछ लोग दे रहे हैं। अतः भारत की एकता के लिए इस राज्य में शान्ति व सौहार्द कायम करना बहुत जरूरी है। श्री भल्ला का गृह मन्त्रालय में लम्बा अनुभव है और उन्हें हर राज्य की सामाजिक व आर्थिक समस्याओं के बारे में अच्छी जानकारी भी है अतः उनकी राज्यपाल के रूप में नियुक्ति मणिपुर की हालत बदलने की गरज से की हुई लगती है।
हालांकि मणिपुर में राज्य की चुनी हुई सरकार भी अवस्थित है मगर इसकी हालत किसी बीमार व्याधिग्रस्त मरीज जैसी ही हो चुकी है। यह सरकार मैतई और कुकी जनजातियों के बीच सौहार्द स्थापित करने में पूरी तरह असफल हो चुकी है। इस दृष्टि से देखें तो श्री भल्ला अपने अनुभव का प्रयोग करते हुए बदलाव की तरफ बढ़ सकते हैं। इसके साथ ही मिजोरम राज्य का राज्यपाल भूतपूर्व थलसेना अध्यक्ष जनरल वी.के. सिंह को नियुक्त किया गया है। यह राज्य मणिपुर का पड़ोसी राज्य है और इसमें भी कुकी समुदाय से सम्बन्ध रखने वाले समुदाय रहते हैं। अतः इस राज्य में सेना के पूर्व अध्यक्ष की नियुक्ति कारगर हो सकती है। श्री सिंह केन्द्र सरकार में राज्यमन्त्री भी रह चुके हैं अतः पूर्वोत्तर इलाके के बारे में उनकी जानकारी भी कम नहीं कही जा सकती। जहां तक मणिपुर का सम्बन्ध है तो इस राज्य की समस्या का हल सैनिक दृष्टि से नहीं खोजा जा सकता है।
इसके लिए राजनैतिक-सामाजिक हल ही कारगर हो सकता है और श्री भल्ला इसके लिए सर्वथा उचित व्यक्ति लगते हैं जबकि मिजोरम में पूर्व सैनिक की नियुक्ति किसी भी खतरे को टालने में सहायक हो सकती है परन्तु श्री भल्ला की जिम्मेदारी वर्तमान मणिपुर के हालात को देखते हुए बहुत बड़ी मानी जा रही है। उन्हें राज्य की चुनी हुई सरकार के साथ ऐसा तारतम्य बना कर रखना होगा जिससे यह राज्य किसी राजनैतिक व सामाजिक हल की तरफ बढे़। फिलहाल तो हालात एेसे बने हुए हैं कि कुकी व मैतई इलाकों से चुने हुए जनप्रतिनिधि विधायक भी एक-दूसरे से आंखें मिलाकर नहीं बैठ पा रहे हैं अतः स्थिति की गंभीरता समझी जा सकती है। केन्द्र ने केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का भी तिरुवनन्तपुरम से पटना तबादला कर दिया है। वह बिहार के राज्यपाल बनाये गये हैं जहां अगले वर्ष ही चुनाव होने हैं। श्री खान को राजनीति का अच्छा अनुभव है, हालांकि राज्यपाल बनने से पहले वह भाजपा के विरोध की राजनीति ही ज्यादातर करते रहे हैं।
वह कांग्रेस व स्व. रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी में भी रह चुके हैं। केरल का राज्यपाल रहते उनकी राज्य के मार्क्सवादी मुख्यमन्त्री श्री पिन्नारी विजयन से खासी लाग-डांट रही। मगर अब वह ऐसे राज्य में जा रहे हैं जहां भाजपा सत्तारूढ़ गठबन्धन में शामिल है। बिहार में श्री नीतीश कुमार की सरकार है जो जनता दल(यू) के नेता हैं। इस पार्टी का भाजपा से पुराना नाता है (केवल कुछ समय को छोड़ कर)। अतः नीतीश बाबू के भाजपा के साथ खट्टे-मीठे रिश्ते रहे हैं। नीतीश बाबू की राजनीति किसी भी पक्ष में चरम तक पहुंचने की रही है। एक समय में वह भाजपा के खिलाफ बने ‘इंडिया’ गठबन्धन के संयोजक की तरह भी काम कर रहे थे। वह भाजपा के खिलाफ विभिन्न विपक्षी दलों को जोड़ने की मुहीम में भारत यात्रा पर भी निकले थे। मगर उन्होंने ऐसी पल्टी मारी कि पूरा देश हतप्रभ रह गया और बिहार में उनका नाम ‘पलटू चाचा’ पड़ गया।
उन्होंने भाजपा के एनडीए गठबन्धन का हाथ पकड़ लिया और लोकसभा चुनाव उसके साथ मिलकर ही लड़ा जिसमें उन्हें अच्छी सफलता भी मिली। केन्द्र सरकार में भी फिलहाल उनकी साझीदारी लल्लन बाबू के माध्यम से है। इस नजर से श्री आरिफ मोहम्मद खान की बिहार के राज्यपाल के रूप में नियुक्ति का मन्तव्य भी निकाला जा रहा है। बिहार के वर्तमान राज्यपाल श्री राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर को केरल भेजा दिया गया है। श्री आर्लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के ऐसे शीर्ष वैचारिक निष्ठावान कार्यकर्ता रहे हैं जिन्होंने गोवा राज्य में संगठन की विचारधारा को फैलाने में मुख्य भूमिका निभाई। 1989 में उन्होंने भाजपा में प्रवेश किया और राज्य की राजनीति में विशिष्ट स्थान बनाया। इसी वजह से जब 2014 में केन्द्र में पहली बार मोदी सरकार बनी थी और गोवा के मुख्यमन्त्री स्व. मनोहर पर्रिकर को केन्द्र में रक्षामन्त्री बनाया गया था तो राज्य के मुख्यमन्त्री पद के लिए श्री आर्लेकर का नाम जमकर उछला था।
श्री आर्लेकर की सक्रिय राजनीति तब समाप्त हुई जब जुलाई 2021 में उन्हें हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया। बाद में वह बिहार के राज्यपाल बने। ओडिशा के नये राज्यपाल हरिबाबू कम्भमपति भाजपा के आन्ध्र प्रदेश के जाने- माने राजनीतिज्ञ रहे हैं। वह प्रदेश भाजपा इकाई के अध्यक्ष भी रहे। वह 1975 में लगी इमरजेंसी के खिलाफ भी जेपी आन्दोलन में लड़े और छह महीने के लिए जेल भी गये। राज्यपालों के फेरबदल से भारत के लोकतन्त्र में सम्बन्धित राज्यों की राजनीति पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि इन राज्यों की चुनी हुई सरकारें ही प्रशासन का काम करती हैं मगर कभी-कभी हमें राज्यपाल-मुख्यमन्त्री विवाद भी सुनने को मिलता है और मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा भी दिखता है। इस स्थिति को लोकतन्त्र में टाला जाना चाहिए।