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महाराष्ट्र संकट का नया चरण

महाराष्ट्र के राजनैतिक घटनाक्रम पर आज सर्वोच्च न्यायालय ने जिस तरह लगाम कसी है उससे राज्य की महाविकास अघाड़ी की त्रिदलीय उद्धव ठाकरे नीत सरकार को झटका लगना स्वाभाविक है

01:30 AM Jun 28, 2022 IST | Aditya Chopra

महाराष्ट्र के राजनैतिक घटनाक्रम पर आज सर्वोच्च न्यायालय ने जिस तरह लगाम कसी है उससे राज्य की महाविकास अघाड़ी की त्रिदलीय उद्धव ठाकरे नीत सरकार को झटका लगना स्वाभाविक है

महाराष्ट्र संकट का नया चरण
महाराष्ट्र के राजनैतिक घटनाक्रम पर आज सर्वोच्च न्यायालय ने जिस तरह लगाम कसी है उससे राज्य की महाविकास अघाड़ी की त्रिदलीय उद्धव ठाकरे नीत सरकार को झटका लगना स्वाभाविक है क्योंकि अब शिव सेना के एकनाथ शिन्दे गुट के उन 16 विधायकों के सिर से अपनी सदस्यता छिन जाने का खतरा समाप्त हो गया है जिन्हें विधानसभा उपाध्यक्ष ने दल-बदल नियमों के तहत नोटिस भेज कर जवाब तलब किया था और उन्हें सोमवार तक ही अपना जवाब दाखिल करने को कहा था। सर्वोच्च न्यायालय में इन विधायकों की तरफ से ही याचिका दायर की गई थी कि वह उपाध्यक्ष को ऐसा  ‘गैर कानूनी’ काम करने से रोके क्योंकि शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट से अलग हुए दो तिहाई विधायकों ने पहले ही उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया हुआ है। सर्वोच्च न्यायालय ने उपाध्यक्ष को ही निर्देश दिया है कि वह अदालत में हलफनामा दायर करके स्पष्ट करे कि उन्होंने इस सब घटनाक्रम के बीच किस तरह 16 विधायकों को नोटिस जारी किया।
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इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने 11 जुलाई तक यथास्थिति बनाये रखने का आदेश देकर साफ कर दिया कि इस अवधि में कोई भी नया कदम न उठाया जाये। इससे बहुत ही साफ है कि महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी गठबन्धन की पार्टी शिवसेना का अंदरूनी बगावत का मामला यथावत बना रहेगा। अर्थात मुख्यमन्त्री उद्धव ठाकरे की शिवसेना के कुल 55 विधायकों में से जो 40 विधायक टूट कर एकनाथ शिन्दे के नेतृत्व में अलग हुए हैं, वे अपना पृथक अस्तित्व बनाये रख सकेंगे। राज्य में कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस व शिवसेना ने 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद मिलकर सरकार बनाई थी। इसमें से शिवसेना में पिछले दिनों बगावत हुई और इसके 40 विधायकों ने मांग की कि उद्धव ठाकरे को कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस का साथ छोड़ कर भाजपा से हाथ मिलाना चाहिए जिसके 285 सदस्यीय विधानसभा में सर्वाधिक 106 विधायक हैं। इसकी एक वजह यह थी कि विधानसभा चुनाव शिवसेना व भाजपा ने एक साथ मिलकर सांझा मोर्चा बना कर लड़ा था मगर चुनावों के बाद मुख्यमन्त्री पद को लेकर शिवसेना व भाजपा में तकरार हो गई और शिवसेना ने भाजपा का साथ छोड़ कर कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ नया गठबन्धन बना लिया।
संसदीय राजनीति में यह कोई अपराध नहीं है क्योंकि सरकार वही दल या गठबन्धन बनाता है जिसे सदन में बहुमत प्राप्त होता है। चुनाव के बाद बने समीकरणों में शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस व कांग्रेस के संयुक्त विधायकों की संख्या पूर्ण बहुमत में थी अतः सरकार बन गई मगर ढाई साल बाद यदि शिवसेना के दो तिहाई से अधिक विधायकों को याद आता है कि उनके नेता से गलती हो गई है और अब उसमें सुधार किया जाना चाहिए तो इसमें भी कोई गलत बात नहीं है। राजनैतिक नैतिकता तो कहती थी कि जिस दिन एकनाथ शिन्दें ने शिवसेना में बगावत की थी उसी दिन श्रीमान उद्धव ठाकरे को इस्तीफा दे देना चाहिए था मगर उन्होंने ऐसा  करने के बजाय उलटा काम किया और विद्रोही विधायकों को ही कठघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया। इससे हालात बिगड़ते गये और स्थिति यहां तक पहुंच गई कि मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गया। सवाल यह नहीं है कि शिवसेना के 40 विधायक विद्रोही होकर असम की राजधानी गुवाहाटी में बैठे हुए हैं बल्कि सवाल यह है कि उद्धव ठाकरे मुम्बई में बैठ कर अपनी कुर्सी बचाने के लिए कौन सा खेल खेल रहे हैं। खेल यह है कि शिवसेना के भीतर से उठी सैद्धान्तिक मूल्यों की परवाह करने वाली आवाज को दबा दिया जाये और सत्ता का सुख भोगा जाये।
एक तथ्य स्पष्ट है कि उद्धव ठाकरे शिवसेना विधानमंडलीय दल के भीतर अपना बहुमत खो चुके हैं। विधानसभा में उनकी पार्टी के संसदीय दल के नेता एकनाथ शिंदे ने पृथक गुट बना कर स्वयं के ही शिवसेना होने का दावा किया है। उनका यह दावा इसलिए मजबूत है कि उनके साथ कुल 55 विधायकों में से 40 विधायक हैं। लेकिन ..किसी भी प्रदेश में राज्यपाल की भूमिका संविधान के संरक्षक की होती है। और राज्यपाल के पास यह अधिकार सर्वाधिकार सुरक्षित रहता है कि वह राज्य में राजनैतिक अस्थिरता को देखते हुए सत्तारूढ़ सरकार से सदन में अपना बहुमत साबित करने को कहें। शिन्दे गुट ने राज्यपाल के पास भी उन विधायकों की सूची भेजी हुई है जिन्होंने शिवसेना संसदीय दल के नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में अपना विश्वास प्रकट किया है। अतः राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह विधानसभा का सत्र शीघ्र बुला कर राजनैतिक अस्थिरता को समाप्त करें। बेशक सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा है कि विधानसभा का सत्र बुलाने की सूचना के बारे में उसके पास आया जा सकता है मगर इसका मतलब यह नहीं है कि राज्यपाल विधानसभा का सत्र बुलाने का आदेश नहीं दे सकते। इसके साथ ही यदि विधानसभा के 40 शिवसेना के विधायक यह मांग करते हैं कि उद्धव सरकार अल्पमत में आ चुकी है और उनका गुट ही असली शिवसेना है तो राज्यपाल इसका भी संज्ञान ले सकते हैं और सदन के भीतर उद्धव सरकार के बहुमत का परीक्षण कर सकते हैं।
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