एनआईए कानून की तपिश
2008 में केन्द्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी। तब राष्ट्रीय जांच एजैंसी कानून (एनआईए एक्ट) बनाया गया।
06:16 AM Jan 18, 2020 IST | Aditya Chopra
2008 में केन्द्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी। तब राष्ट्रीय जांच एजैंसी कानून (एनआईए एक्ट) बनाया गया। कानून बनाने के दौरान 26/11 के मुम्बई हमले को आधार बनाया गया था। पी. चिदम्बरम उस समय गृहमंत्री थे और उन्होंने इसे बनाने की पहल की थी। यह कानून राष्ट्रीय जांच एजैंसी को राज्य के किसी स्पष्ट अनुमति के बगैर ही देश के किसी हिस्से में आतंकी हमले की जांच का समवर्ती अधिकार प्रदान करता है। एनआईए पिछले एक दशक में इसी तरह के हमलों की जांच कर भी रही है। छत्तीसगढ़ में इस समय भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार है। हैरानी की बात तो यह है कि छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने यूपीए शासन में बने एनआईए कानून को चुनौती दी। छत्तीसगढ़ सरकार ने यह मामला अनुच्छेद 131 के तहत दायर किया है।
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अनुच्छेेद 131 के अन्तर्गत केन्द्र के साथ विवाद के मामले में राज्य सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सकता है। केरल सरकार ने अनुच्छेद 131 के तहत ही नागरिकता संशोधन विधेयक को अदालत में चुनौती दी है, उसके एक दिन बाद ही छत्तीसगढ़ सरकार ने चुनौती दी है। केन्द्र सरकार ने भारत की संप्रभुता, सुरक्षा और अखंडता को प्रभावित करने वाले, राज्य की सुरक्षा और अन्तर्राष्ट्रीय संधियों के तहत आतंकी मामलों की जांच के लिए एनआईए का गठन किया था। अब सवाल यह है कि कांग्रेस ने अपने द्वारा बनाए गए कानून को चुनौती क्यों दी?
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि यह कानून राज्यों की पुलिस से जांच के अधिकार छीनता है। भाजपा विधायक भीमा मंडावी की मौत के मामले की जांच को लेकर कोर्ट से निराशा हाथ लगने के बाद राज्य सरकार ने यह कदम उठाया है। राज्य सरकार ने यह भी कहा है कि एनआईए कानून केन्द्र का अक्षम, विवेकहीन और मनमानी शक्तियां भी रखने का अधिकार देता है। राज्य सरकार का यह भी कहना है कि अधिनियम का प्रावधान राज्य और केन्द्र में किसी भी रूप में समन्वय और सहमति की पूर्व शर्त के लिए कोई जगह ही नहीं छोड़ता। यह स्पष्ट रूप से संविधान के तहत संप्रभुता के विचार के खिलाफ है।
देश में कानून तो बनते रहे हैं और बनते रहेंगे लेकिन कानूनों की समीक्षा किया जाना भी एक सतत् प्रक्रिया है। कभी इस देश में मीसा कानून बना था, उसका भी दुरुपयोग हुआ। लोगों को बिना कारण जेलों में रहना पड़ा। फिर खुद पोटा बनाया। खुद उसके हक में दलीलें दी। खुद उसे लागू किया। खुद उसका गुणगान किया। फिर खुद ही उसकी समीक्षा की कि कहीं इसका दुरुपयोग तो नहीं हो रहा।
किसी जमाने में विपक्ष हल्लागुल्ला मचा कर विक्षिप्त हो गया कि पोटा मत बनाओ, पोटा मत लगाओ, इसका दुरुपयोग होगा पर किसी के कान पर जूं न रेंगी। गाज यह गिर पड़ी कि पोटा का महाजाल फैलाकर जैसे ही अभियान से सिर उठाया तो दो महिलाओं ने कहा, ठहरो हम तुम्हें बताती हैं कि तमने क्या किया है। एक थी स्वर्गीय जयललिता और दूसरी रहीं बसपा प्रमुख मायावती। इनके जाल में दो मछलियां फंसी। वाइको और राजा भैया। सिर मुंडाते ही ओले पड़े। वाइकों के भाव समझे जाने चाहिएं थे, परन्तु उनकी भाषा को सामने रखकर अम्मा जयललिता ताव खा गईं। उन्होंने वाइको पर पोटा लगाकर जेल में डाल दिया।
अगर बयानबाजी की बात करें तो तब हुर्रियत पसंद अलगाववादी कश्मीरी नेताओं को एक दिन भी बाहर नहीं रहना चाहिए था। राजा भैया पर बड़े आपराधिक मामले थे तो मायावती ने उन पर पोटा लगा दिया। आपराधिक पृष्ठभूमि के राजनीतिज्ञ किसी एक पार्टी की सम्पत्ति नहीं रहे, वे अब संस्कारी बन चुके हैं। अब आप ही सोचिये कि पोटा का दुरुपयोग किसने किया और उसका सही इस्तेमाल किसने किया। टाडा का भी काफी टैरर रहा।
जहां तक एनआईए का सवाल है, उस पर भी सत्ता के दबाव में काम करने के आरोप लग चुके हैं। कुछ मामलों में निर्दोषों को फंसाने के आरोप भी लगे जो बाद में अदालत से बरी हो गए। मालेगांव बम ब्लास्ट और कुछ अन्य मामलों में आरोपियों की रिहाई में मदद देने के आरोप भी लग चुके हैं। सवाल यह है कि एनआईए क्या दूध की धुली है। जब भी किसी कानून का दुरुपयोग होगा, उतनी ही याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल होंगी। सबका एक ही उद्देश्य होगा कि अन्याय को रोको। हो सकता है कि आने वाले दिनों में कुछ और याचिकाएं भी दायर हो जाएं। छत्तीसगढ़ सरकार का कहना है कि ‘‘राजनीतिक हितों के तहत मामलों के चयन’’ के चलते राज्य सरकार याचिका दायर करने को मजबूर हुई है।
अब देश की सर्वोच्च अदालत इस बात की समीक्षा कर सकती है कि यह एक्ट संविधान का उल्लंघन करता है या नहीं एनआईए को राज्य के मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकार है या नहीं। कांग्रेस को अब अपने ही बनाए गए कानून की तपिश महसूस हुई तो वह अदालत में पहुंची है। देखना होगा कि मामला क्या मोड़ लेता है। फिर भी केन्द्र सरकार के विधि मंत्रालय को मौजूदा कानूनों की समीक्षा करनी चाहिए और उन्हें गुण-दोष के आधार पर परखना चाहिए।
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