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​निज्जर-पन्नू मामला : कूटनीति की परीक्षा

अलगाववादी खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की गोली मार कर हत्या और पन्नू हत्या की साजिश के मामले में कनाडा-अमेरिका दोनों देशों से भारत का टकराव हो चुका है

09:44 AM Oct 20, 2024 IST | Aditya Chopra

अलगाववादी खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की गोली मार कर हत्या और पन्नू हत्या की साजिश के मामले में कनाडा-अमेरिका दोनों देशों से भारत का टकराव हो चुका है

​निज्जर पन्नू मामला   कूटनीति की परीक्षा

अलगाववादी खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की गोली मार कर हत्या और पन्नू हत्या की साजिश के मामले में कनाडा-अमेरिका दोनों देशों से भारत का टकराव हो चुका है। भारत और कनाडा में तो राजनयिक युद्ध भी शुरू हो गया है। कनाडा का भारत के विरुद्ध अनर्गल प्रलाप जारी है जबकि अमेरिका ने पन्नू हत्या की साजिश में पूर्व भारतीय रॉ एजैंट के खिलाफ आरोप पत्र भी दायर कर दिया। भारत लगातार अपने राजनयिकों के खिलाफ झूठे आरोपों को खारिज कर रहा है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने पिछले दिनों आरोप लगाया था कि कनाडा ने भारतीय अपराधियों को शरण देने और उन पर कानूनी कार्रवाई के लिए प्रत्यार्पण अनुरोधों को लटका कर रखा हुआ है। प्रत्यार्पण अनुरोधों के लगभग 30 मामले हैं जिन पर कनाडा ने कभी विचार ही नहीं किया। इससे साफ है कि ट्रूडो सरकार कहती कुछ और है और करती कुछ और है। खालिस्तान समर्थक तत्वों काे संरक्षण कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रडो के राजनीतिक एजैंडे को ही प्रतिबिंबित करता है। कनाडा ने अब नए आरोप लगाए हैं कि निज्जर की हत्या और पन्नू की हत्या की सा​िजश में एक समान योजना का इस्तेमाल ​किया गया और उसने भारत की तुलना रूस तक से कर दी।

कनाडा का एक घरेलू राजनीतिक आयाम है क्योंकि जस्टिन ट्रूडो का कार्यकाल अक्तूबर 2025 तक है। नई दिल्ली की यह उम्मीद कि उनकी अल्पमत सरकार जल्द ही गिर जाएगी, केवल एक इच्छाधारी सोच है। विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी द्वारा लाया गया अविश्वास प्रस्ताव 25 सितंबर को विफल हो गया। 338 सांसदों वाले सदन में, 211 ने इसके खिलाफ मतदान किया। हालांकि जगमीत सिंह के नेतृत्व वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी, जिसके 25 सदस्य हैं, ने सत्तारूढ़ गठबंधन छोड़ दिया था, फिर भी वे सरकार को गिराने के लिए तैयार नहीं हैं। अगर कुछ है तो वह यह कि सिख समुदाय के तत्वों को निशाना बनाने को लेकर भारत के साथ टकराव, श्री ट्रूडो के पीछे चौथी सबसे बड़ी पार्टी को बनाए रखता है। तीसरा, अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का नतीजा 5 नवंबर के बाद पता चलेगा। कमला हैरिस अपने नागरिकों की रक्षा के लिए कनाडा के समर्थन में अधिक इच्छुक हो सकती हैं। सितंबर में विलमिंगटन, डेलावेयर में क्वाड शिखर सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से पहले व्हाइट हाउस में सिख प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया जाना, भारत के काले-सफेद मामले के रूप में देखे जाने वाले जटिल आयामों को दर्शाता है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि ट्रूडो की लोकप्रियता धड़ाम पर है और उनकी राजनीति के भाग्य में एक साल ही बचा है। तनातनी के बाद ​िदल्ली और ओटावा ने 6-6 राजनयिक निष्कासित कर दिए हैं और दोनों राजधानियों में उच्चायोगों में स्टाफ घटाया जा चुका है। जहां तक अमेरिका का संबंध है आतंकवाद के मुद्दे पर उसका दोमुंहपन पहले ही कई बार सामने आ चुका है। भारत ने आगे की कार्रवाई का अधिकार सुरक्षित रखा है जिसका मतलब कनाडा के वीजा में बड़ी कटौती और सीधे यात्रा सम्पर्कों में कमी आना हो सकता है। बिगड़ते संबंधों के ठोस आकार लेने के साथ, नई दिल्ली को न सिर्फ भारतीय कूटनीति बल्कि भारत की छवि पर अपने अगले कदमों के असर के बारे में सावधानी से सोचना चाहिए। भारतीय राजनयिकों का बचाव करना अनिवार्य है लेकिन इन आरोपों की जांच करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि भारतीय खुफिया एजेंसियों ने इस मामले में कामकाज के लिए तय सीमाओं का उल्लंघन किया है। आरसीएमपी द्वारा भारतीय अंडरवर्ल्ड गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई का नाम लिये जाने की भी जांच जरूर की जानी चाहिए। भारत के विरोधी जब पाकिस्तान, यूएई, कनाडा और अमेरिका में भारतीय खुफिया और राष्ट्रीय सुरक्षा गतिविधियों के खिलाफ आरोपों के बीच तार जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, भारत के करीबी सहयोगी भी उसे संदेह से देख रहे हैं।

अमेरिका और कनाडा के अधिकारियों ने साझा तौर पर भारतीय अधिकारियों से कई दौर की बातचीत की है। अमेरिका और कनाडा फाइव आईज समझौते का ​िहस्सा हैं जो आपस में सबूत साझा करते हैं। अब भारत को न सिर्फ कूटनीति से बहुत ही सावधानीपूर्वक चलना होगा। यह एक तरह से कूटनीति की अग्नि परीक्षा है। सबसे बढ़कर बात यह है कि भारत को कनाडा की ओर से जवाबदेही सुनिश्चित ​िकए जाने का अभियान अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तेज करना होगा। या तो कनाडा ठोस सबूत दे या ​िफर भारत की छवि को धूमिल करने के प्रयास बंद करे। कनाडा में रह रहे भारतीयों के हितों को भी ध्यान में रखना जरूरी है। जस्टिन ट्रूडो की खालिस्तान समर्थक नीति कोई नई नहीं है। भारत को अपनी अन्तर्राष्ट्रीय भूमिका को देखते हुए इन मामलों से निपटना होगा।

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Aditya Chopra

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