Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

निकहत का स्वर्णिम संदेश

तेलंगाना के निजामाबाद की 25 वर्षीय भारतीय मुक्केबाज निकहत जरीन ने 52 किलोग्राम वेट कैटेगरी में थाइलैंड की जिनपोंग जुटामेंस को 5-0 से हरा कर विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप का गोल्ड मेडल जीत नया इतिहास रच दिया है।

03:07 AM May 21, 2022 IST | Aditya Chopra

तेलंगाना के निजामाबाद की 25 वर्षीय भारतीय मुक्केबाज निकहत जरीन ने 52 किलोग्राम वेट कैटेगरी में थाइलैंड की जिनपोंग जुटामेंस को 5-0 से हरा कर विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप का गोल्ड मेडल जीत नया इतिहास रच दिया है।

तेलंगाना के निजामाबाद की 25 वर्षीय भारतीय मुक्केबाज निकहत जरीन ने 52 किलोग्राम वेट कैटेगरी में थाइलैंड की जिनपोंग जुटामेंस को 5-0 से हरा कर विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप का गोल्ड मेडल जीत नया इतिहास रच दिया है। निकहत के मुक्केबाज बनने की कहानी बहुत दिलचस्प है। पिता मोहम्मद जमील खुद फुटबाल और क्रिकेट खेलते थे, वे चाहते थे कि उनकी चार बेटियों में से कोई एक खिलाड़ी बने। उन्होंने अपने तीसरे नम्बर की बेटी निकहत के लिए एथलैटिक्स को चुना और कम समय में ही निकहत कोे भी पिता के फैसले ने सही साबित कर दिखाया। चाचा ने भी उसे बाक्सिंग रिंग में उतरने की प्रेरणा दी और वह 14 साल की आयु में वर्ल्ड यूथ बाक्सिंग चैंपियन बन गई। इसके बाद वह एक-एक करके कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ती गई और विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतना उसके सफर का अहम पड़ाव बन गया। भारत में महिला मुक्केबाज का अर्थ छह बार की वर्ल्ड चैंपियन एम.सी. मैरी कॉम है। मैरी कॉम के अलावा सरिता देवी, जेनी आर एल और लेखा के सी भी विश्व खिताब जीत चुकी हैं।
Advertisement
भारत का चार साल में एक प्रतियोगिता में यह पहला स्वर्ण है। निकहत के गोल्ड मेडल जीतने के बाद इस चैंपियनशिप में भारत के नाम 39 पदक हो गए हैं जिसमें दस स्वर्ण, आठ रजत और 21 कांस्य पदक शामिल हैं। निकहत जरीन का इस मुकाम पर पहुंचने की कहानी भी संघर्षपूर्ण है। खास बात यह है कि निकहत जरीन मुस्लिम लड़की है और मुस्लिम लड़की का मर्दों के खेल में जगह बनाना बहुत मुश्किल है। ले​किन निकहत ने मुस्लिम समाज में सवाल उठाने वालों की बोलती अपने मुक्कों से बंद कर दी है। निकहत को लोग अक्सर कहते थे ​कि लड़की हो वो भी मुस्लिम बोक्सिंग में क्या कर लोगी। रिश्तेदारों ने भी यही कहा था कि लड़कियों में ऐसा स्पोर्ट्स  नहीं खेलना चाहिए जिसमें उसे शार्ट्स पहनने पड़ें। कई बार समाज के लोग और रिश्तेदार उस पर तंज भी कसते थे। लेकिन पिता और मां परवीन सुल्ताना दोनों ने उसका साथ दिया। निकहत के सपने को पूरा करने के लिए दोनों उसके साथ खड़े रहे।
मुक्केबाजी ऐसा खेल है जिसमें लड़कियों को ट्रेनिंग के लिये या बाहर के लिए शार्ट्स और टी-शर्ट पहनना पड़ता है। निकहत को सामाजिक पूर्वाग्रह भी झेलना पड़ा। निकहत को अपनी जगह बनाने के लिए मैरी कॉम से रिंग के भीतर भी भिड़ना पड़ा और रिंग के बाहर भी भिड़ना पड़ा। पर उसके हक की लड़ाई थी। उसे बाक्सिंग फैडरेशन से भी लड़ना पड़ा। इसमें कोई संदेह नहीं कि मैरी कॉम सफल बाक्सर थी। जब 2019 में विश्व चैंपियनशिप के लिए ट्रायल हुए थे तो मैरी कॉम को सीधे एंट्री दी गई थी। वैसे यह फैसला सही था ले​किन ​नियमों के हिसाब से गलत था। इसके पीछे तर्क यह था ​कि मैरी कॉम को कुछ भी साबित करने की जरूरत नहीं थी और उसके जीतने की संभावना अधिक थी। यहीं पर निकहत ने अपनी आवाज बुलंद कर दी और ट्रायल की मांग कर डाली। हालांकि ट्रायल में निकहत मैरी कॉम से हार गई लेकिन ढाई साल बाद उसने गोल्ड मैडल जीत कर यह साबित कर दिया ​कि जो लड़ाई उसने शुरू की थी वह गलत नहीं थी और वह इस उपलब्धि की हकदार है। 39 साल की मैरी कॉम ने युवाओं को मौका देने का हवाला देकर वर्ल्ड चैंपियनशिप से किनारा कर लिया।
​निकहत का गोल्ड मैडल देशभर की न केवल मुस्लिम लड़कियों के लिए बल्कि सभी लड़कियों के लिए प्रेरणा बनेगा और उसका गोल्ड मैडल मुस्लिम समाज को भी संदेश दे रहा है। भारत के फिल्म उद्योग में और खेलों में अनेक मुस्लिम महिलाओं ने अभिनय में सफल मुकाम हासिल किया है और टेनिस में सानिया मिर्जा की सफलता एक उदाहरण है। इस्लाम ही नहीं प्रत्येक धर्म में पुरुष प्रधान समाज द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार पुरुषों को ही घर परिवार चलाने, समाज में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने, पारिवारिक फैसले लेने तथा परिवार को नियंत्रित करने जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी गई हैं परन्तु महिला में छुपी प्रतिभाओं का गला घोटना किसी भी धर्म में नहीं सिखाया गया। कश्मीर घाटी में आयशा अजीज नामक युवती देश की पहली म​हिला पायलट बन चुुकी है। भारत की यह मुस्लिम बेटी लड़ाकू मिग 29 भी उड़ा चुकी है। मुस्लिम बेटियां यूपीएसई की परीक्षाओं में टॉप कर रही हैं। भारत में तो कुछ उदाहरण हैं लेकिन अमेरिका और ब्रिटेन सहित दुनिया के कई देशों में मुस्लिम महिलाएं सरकारी और गैर सरकारी विभागों में बड़े पैमाने पर अपनी योग्यता का लोहा मनवा रही हैं। यदि मुस्लिम समाज को आगे ले जाना है और उसे सामाजिक और आ​र्थिक रूप से समृद्ध बनाना है तो उसे धर्मांधता और कट्टरपन से बाहर निकल कर प्रतिभावान युवतियों को प्रोत्साहित करना होगा। इस से इस्लाम धर्म की छवि भी सुधरेगी। आज मुस्लिम महिलाओं को दकियानूसी नहीं प्रगतिशील सोच की जरूरत है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
Advertisement
Next Article