निर्भया के दोषियों को फांसी देने का तरीका होगा इतना खतरनाक, 2 दिन पहले ही जल्लाद आ जायेगा जेल
कोर्ट ने निर्भया के चारों दोषियों को फांसी की सजा सुना दी है। इन चारों दरिंदो की फांसी के लिए 22 जनवरी सुबह 7 बजे का समय तय किया गया है।
01:14 PM Jan 16, 2020 IST | Desk Team
कोर्ट ने निर्भया के चारों दोषियों को फांसी की सजा सुना दी है। इन चारों दरिंदो की फांसी के लिए 22 जनवरी सुबह 7 बजे का समय तय किया गया है। हालांकि इस बात का खुलासा अब तक नहीं हो पाया है कि क्या इस दिन फांसी होनी तय है भी कि नहीं। क्योंकि अभी भी कई कानूनी अड़चनें चारों दोषियों की फांसी में आ रही है। मगर क्या आपको मालूम है कि फांसी वाले दिन जेल में क्या-क्या होता है? और जल्लाद जेल में क्यों दो दिन पहले आते हैं तो आइए आपको बताते हैं इन सभी बातों के बारे में…
जेल में वो सभी तैयारियां फांसी होने वाले दिन से पहले पूरी कर ली जाती है,जिनमें फांसी का तख्ता,रस्सी,नकाब,फांसी का तख्ता ढंग से लगा हुआ है। लीवर काम कर रहा है उसकी पहले से ही सफाई करवा लेना आदि काम शामिल है। वहीं सुपरिटेंडेंट के ऊपर फांसी की पूरी तैयारी होती है और वह ये सुनिश्चित करता है कि फांसी ठीक तरह से हो गई है और सब कुछ उसकी देखरेख में हुआ है।
फांसी के ठीक एक दिन पहले शाम के समय फांसी के तख्ते और रस्सियों की जांच की जाती है। पहले तो रस्सी को ही रेत के बोरे पर लटकाकर देख लिया जाता है। इसका वजन कैदी के वजन से डेढ़ गुना ज्यादा होता है। ऐसे में जल्लाद फांसी देने से एक दो दिन पहले जेल में आता है और वहीं पर रहता भी है।
बता दें कि जल्लाद दो दिन पहले से ही जेल में इस वजह से आता है ताकि वो ठीक तरीके से फांसी देने की तैयारी और रिहर्सल दोनों कर ले। वहीं फांसी वाले दिन यदि मजरिम भले मजरिम चाहे तो उसकी फांसी के समय पंडित,मौलवी या पादरी मौजूद हो तो जल c इसका वेट करते हैं।
अगर फांसी की बात करें तो मार्च,अप्रैल,सितंबर से अक्टूबर तक के महीने में फांसी सुबह 7 बजे करीब होती है और मई से अगस्त के बीच फांसी सुबह 6 बजे होती है। वहीं नवंबर से फरवरी के महीने में फांसी सुबह 8 बजे लगाई जाती है। सुपरिटेंडेंट और डेप्युटी सुपरिटेंडेंट फांसी से पहले कैदी की पहचान करते हैं और उसकी मातृभाषा में वॉरंट पढ़कर पहले सुनाया जाता है और इन्हीं की उपस्थिति में फांसी भी दी जाती है।
साथ ही गर्दन जकडऩे से धीरे-धीरे कैदी की मौद हो जाती है। इसके बाद डेड बॉडी को करीब आधे घंटे तक फांसी के फंदे पर लटकाए रहते हैं और फिर डॉक्टर उसे मृत घोषित कर देते हैं। जिसके बाद मृत बॉडी का पोस्टमार्टम होता है और वॉरंट को वापस कोर्ट में ले जाया जाता है कि फांसी ठीक तरह से हो गई है।
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