BSP में नहीं बन रही सेकंड लीडरशिप लाइन, राजभर और लालजी के निष्कासन के साथ नहीं बचा कोई बड़ा चेहरा
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में सेकंड लीडरशिप लाइन के नेता एक-एक करके पार्टी छोड़ गये या तो उन्हें निकाल दिया गया।
02:44 PM Jun 04, 2021 IST | Desk Team
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में सेकंड लीडरशिप लाइन के नेता एक-एक करके पार्टी छोड़ गये या तो उन्हें निकाल दिया गया। अब सिर्फ सतीश मिश्रा ही मायावती के बाद बड़े नेता बचे हैं। वह राष्ट्रीय महासचिव व राज्यसभा के सदस्य हैं। उनका दखल राष्ट्रीय राजनीति में होता है। लेकिन बसपा में दूसरी लाइन की बड़ी जमात शुरू से ही नहीं बन पा रही है।
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बसपा संस्थापक कांशीराम के मूवमेंट व उसके बाद जुड़े ज्यादातर नेता अब पार्टी में नहीं है। रामअचल राजभर और लालजी वर्मा के निष्कासन के साथ बसपा स्थापना से लेकर संघर्ष से जुड़े अधिकतर नेता बसपा से बाहर हैं। इनमें से कई नेता ऐसे थे जिनका प्रदेश स्तर पर अच्छा प्रभाव होता था। मायावती के बढ़ते प्रभाव के बाद एक-एक नेता बाहर हो गये हैं।
शुरूआत के दिनों से देखें तो राजबहादुर, आरके चौधरी, नसीमुद्दीन, स्वामी प्रसाद मौर्या, दद्दू प्रसाद, दीनानाथ भाष्कर, सोनेलाल पटेल, रामीवर उपाध्याय, जुगुल किशोर, ब्रजेश जयवीर सिंह,रामअचल राजभर, लालजी वर्मा, इन्द्रजीत सरोज जैसे कई नेताओं की लंबी सूची है जो कि बसपा में दूसरी लाइन के बड़े नेता हुआ करते थे। यह वह लोग है जो समाज में बसपा मूवमेंट को आगे बढ़ाने का काम करते थे। लेकिन आज यह लोग पार्टी में नहीं है और इनमें से कुछ दूसरी पार्टी में स्थापित होकर बडे पदों पर हैं।
वरिष्ठ राजनीतिक विष्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं, ” बसपा जबसे बनी है, उसके एक साल बाद ही जिनको शुरूआत में मायावती ने सिपाहसलार बनाया था उसमें राजबहादुर और आरके चौधरी बहुत विश्वासपात्र थे। यह लोग बसपा मिशन को आगे बढ़ाने में लगे थे। लोग इनकी बात सुनते थे। यह लोग ऐसे थे जिन्होंने बसपा की जड़ो से लोगों को जोड़ा था। इनके हटते ही लोगों बड़ा झटका लगा था।
इस पार्टी में जितने भी लोग ऊपर चढ़े है, उनको तुरंत पार्टी से बाहर किया जाता है। 2012 के पहले वाली सरकार के जितने मंत्री थे, वह बाहर हो गये। चाहे बाबू सिंह कुशवाहा हों चाहे नसीमुद्दीन सिद्दकी हों, स्वामी प्रसाद मौर्या हों। रामवीर उपाध्याय, ब्रजेष पाठक भी अब पार्टी में नहीं है। धीरे-धीरे ऊपर चढ़ने वालों को निकाल दिया जाता है। लालजी वर्मा और रामअचल राजभर तो कांशीराम के जमाने के हैं जिन्हें बाहर निकाल दिया गया है।”
उन्होंने बताया कि ” इन सब की वजह से पार्टी जहां पहुंची है। कैडर भी जुड़ता है। जितने भी नेता हटाए गये होंगे उनके समर्थक भी तो नाराज हुए होंगे। इसके बाद पार्टी में बचता क्या है यह देखना होगा। मायावती की पार्टी में आज तक सेकंड पार्टी लाइन बन ही नहीं पा रही है। इस घटना के बाद बसपा को बड़ा नुकसान हो सकता है।
मायावती के लिए अब निर्णायक मोड़ आ गया है। वह किसके दम पर पार्टी चलाएंगी। हो सकता है आने वाले समय में नए चेहरे को शामिल करें। नयी लीडरशिप पर भी मायावती की नजर होगी। जिसमें मुस्लिम की भूमिका के अलावा सवर्ण हों जिसमें सतीश मिश्रा की भूमिका हो। कुछ और जतियां जो कि सपा में असहज होने के कारण इनके साथ जुड़े। मायावती किसी नई जगह की तलाश कर रही हों। ”
वरिष्ठ राजनीतिक विष्लेषक पीएन द्विवेदी कहते हैं कि ”बसपा पार्टी ने चुनाव से ठीक पहले अपने दो बड़े सिपाहसलार निकालकर बड़ा जोखिम लिया है। उनके सामने इनके स्तर के नेताओं को तैयार करने की एक बड़ी चुनौती होगी। प्रदेश की राजनीति में अन्य पिछड़े और पिछड़े वर्ग को नए सिरे से नेतृत्व खड़ा करना होगा। हो सकता है मायावती विधानसभा चुनाव से पहले नई लीडरशिप डेवलप करने की सोच रही हो, इससे उनको कितना फायदा हो, यह सभी भविष्य के गर्त में है।”
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