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नोबेल पुरस्कार से सम्मानित लेखिका लुईस ग्लिक दुःख और अकेलेपन की कला को शब्दों में पिरोने में माहिर

अपने माता-पिता से यूनानी पौराणिक कथाएं तथा अन्य प्रचलित कहानियां सुनकर बड़ी हुईं। उन्होंने बहुत छोटी उम्र से ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया था और समय के साथ उसमें सुधार आता रहा।

08:11 PM Oct 11, 2020 IST | Desk Team

अपने माता-पिता से यूनानी पौराणिक कथाएं तथा अन्य प्रचलित कहानियां सुनकर बड़ी हुईं। उन्होंने बहुत छोटी उम्र से ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया था और समय के साथ उसमें सुधार आता रहा।

साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमेरिका की बेमिसाल लेखिका लुईस एलिजाबेथ ग्लिक को दुख और अकेलेपन जैसी गहरी भावनाओं को बड़ी शिद्दत के साथ कागज पर उतारने में माहिर माना जाता है। बचपन से ही जिंदगी के कुछ स्याह तजुर्बात ने उन्हें कलम उठाने का सलीका सिखाया और फिर उन्हें जब-जब कोई गम मिला, उन्होंने दुनिया को कविताओं और निबंधों का एक नया संग्रह देकर अपने जैसे लोगों को राहत का माध्यम प्रदान किया।
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दुनियाभर में सराही जाने वाली लुईस का जन्म 22 अप्रैल 1943 को न्यूयॉर्क में हुआ था। वह डेनियल ग्लिक और वीटराइस ग्लिक की तीन बेटियों में सबसे बड़ी हैं। उनकी मां रूसी यहूदी हैं, जबकि उनके दादा-दादी हंगरी के यहूदी थे, जो उनके पिता के जन्म से पहले ही अमेरिका आ गए थे। ग्लिक के पिता लेखक बनना चाहते थे, लेकिन किन्हीं कारणों से उन्हें व्यवसाय करना पड़ा। उनकी मां वेलस्ली कॉलेज की ग्रेजुएट थीं और वह अपने माता-पिता से यूनानी पौराणिक कथाएं तथा अन्य प्रचलित कहानियां सुनकर बड़ी हुईं। उन्होंने बहुत छोटी उम्र से ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया था और समय के साथ उसमें सुधार आता रहा।
किशोरावस्था में ग्लिक को ‘एनोरेक्सिया नर्वोसा’ नामक बीमारी ने घेर लिया, जो कई साल तक उनकी पढ़ाई और सामान्य व्यवहार में बाधक बनी रही। उन्होंने एक मौके पर अपनी हालत के बारे में लिखा है, ‘‘मैं समझ रही थी कि किसी मोड़ पर मैं मरने वाली हूं, मैं स्पष्ट रूप से और बहुत स्पष्ट रूप से यह जानती थी कि मैं मरना नहीं चाहती हूं।’’
जीवन की इसी जिजीविषा ने उन्हें आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया और करीब सात साल के लंबे इलाज के दौरान उन्होंने अपनी बीमारी पर काबू पाने के साथ ही अपनी सोच को गढ़ना सीखा। इस दौरान भी कलम के साथ उनके प्रयोग चलते रहे। बीमारी के कारण वह स्कूली पढ़ाई तो जैसे-तैसे पूरी कर पाईं, लेकिन उनके व्यवहार की सख्ती और भावनात्मक स्थिति उनकी कॉलेज की पढ़ाई में सबसे बड़ी बाधा बन गई। उनकी हालत को देखते हुए जब किसी तरह की किताबी पढ़ाई मुमकिन न हुई तो उन्होंने सारा लॉरेंस कॉलेज में काव्य लेखन की कक्षाएं लेना शुरू कर दिया। 1963 से 1966 के बीच उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ जनरल स्टडीज में काव्य कार्यशालाओं में भाग लिया, जो गैर परंपरागत छात्रों को डिग्री प्रदान करता है।
इस दौरान वह लिओनी एडम्स और स्टेनली कुनित्ज के संपर्क में आईं। वह मानती हैं कि उन्हें एक कवि के रूप में आकार लेने में इन दोनों ने बड़ी सहायता की। बड़ी बहन की मौत, पिता की मौत और पति से तलाक जैसी घटनाओं ने उनकी कलम में दुख और अकेलेपन की स्याही भरी। लुईस की कविताएं प्राय: बाल्यावस्था, पारिवारिक जीवन, माता-पिता और भाई-बहनों के साथ घनिष्ठ संबंधों पर केंद्रित रहीं।
उन्हें आत्मकथात्मक कवयित्री के रूप में देखा जाता है। उनकी कविताएं और निबंध अंतर्मन के गहरे मनोभावों को बड़ी सादगी से व्यक्त करते हैं। अवसाद, इच्छाएं और प्रकृति के विविध पहलुओं से जुड़ी लुईस की कविताएं गम और अकेलेपन के सफर पर ले जाती हैं, जिसमें रिश्तों के पड़ाव भी हैं और जिंदगी से जुड़े उतार-चढ़ाव भी।
साहित्य जगत में लुईस के लिए पुरस्कार हासिल करने का यह पहला मौका नहीं है। इससे पहले उन्हें पुलित्जर पुरस्कार, नेशनल ह्यूमैनिटीज मेडल, नेशनल बुक अवार्ड, नेशनल बुक क्रिटिक्स सर्कल अवार्ड और बोलिंगेन अवार्ड मिल चुका है। वर्ष 2003 से 2004 के बीच वह अमेरिका की ‘पोएट लारिएट’ रहीं। अब उन्हें इस वर्ष का साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्रदान करने के साथ ही पुरस्कार समिति ने कहा कि लुईस को उनकी बेमिसाल काव्यात्मक आवाज के लिए यह सम्मान दिया गया है। उनकी आवाज की खूबसूरती व्यक्तिगत अस्तित्व को सार्वभौमिक बनाती है।
नोबेल साहित्य समिति के अध्यक्ष एंडर्स ओल्सन ने कहा कि ग्लिक के 12 कविता संग्रह हैं जिनमें शब्दों का चयन और स्पष्टता ध्यान आकर्षित करती है। इनमें ‘डिसेंडिंग फिगर’ और ‘द ट्राइंफ ऑफ एकिलेस’ जैसे संग्रह शामिल हैं। इसके अलावा उनकी रचनाओं में ‘फर्स्टबॉर्न’, ‘द हाउस आफ मार्शलैंड’ और ‘एवर्नो’ को भी बहुत मकबूलियत मिली। पिता की मौत के बाद उनके संग्रह ‘अरारात’ को अमेरिका की सबसे दुखभरी रचनाओं में से एक माना जाता है।
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