W3Schools
For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

मजदूरों की रेल यात्रा पर ‘शोर-शराबा’

प्रश्न उठना लाजिमी है कि लॉकडाउन के तीसरे चरण में प्रवासी मजदूरों की घर वापसी तब क्यों की जा रही है जबकि पूरे देश में अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए प्राथमिक प्रयास शुरू हो चुके हैं

12:01 AM May 06, 2020 IST | Aditya Chopra

प्रश्न उठना लाजिमी है कि लॉकडाउन के तीसरे चरण में प्रवासी मजदूरों की घर वापसी तब क्यों की जा रही है जबकि पूरे देश में अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए प्राथमिक प्रयास शुरू हो चुके हैं

मजदूरों की रेल यात्रा पर ‘शोर शराबा’
Advertisement
प्रश्न उठना लाजिमी है कि लॉकडाउन के तीसरे चरण में प्रवासी मजदूरों की घर वापसी तब क्यों की जा रही है जबकि पूरे देश में अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए प्राथमिक प्रयास शुरू हो चुके हैं और कृषि क्षेत्र में सामान्य ढंग से कामकाज हो रहा है? देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी होने के नाते कांग्रेस को यह पूछने का अधिकार भारत का बहुदलीय लोकतन्त्र देता है कि सरकार ने कोरोना वायरस से निपटने के लिए जिस लॉकडाउन की घोषणा की थी उसके समानान्तर ही आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए राष्ट्रीय योजना की घोषणा क्यों नहीं की? इन सवालों में कहीं भी कुछ गलत नहीं है क्योंकि पूर्व में आज की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा भी कांग्रेस के शासनकाल में सरकार से तीखे और सीधे सवाल पूछती रही है। हमारी लोकतान्त्रिक प्रणाली का दारोमदार लोक कल्याण और जन चेतना पर है जिसका प्रतिनिधित्व सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्षी पार्टी दोनों ही करती हैं क्योंकि दोनों के सदस्यों को संसद में चुन कर भेजने का काम आम जनता ही करती है। अतः कांग्रेस पार्टी को यह हक है कि वह आम जनता के कल्याण के हक में सवाल पूछे और भाजपा को यह अधिकार है कि वह उसी के कल्याण के लिए योजनाएं बना कर विपक्षी आलोचना को नाकारा करार दे।
Advertisement
भाजपा के स्वर्गीय नेता श्री अरुण जेतली ने अपनी अमेरिका यात्रा के बारे में वहां पूछे गये एक सवाल के जवाब में कहा था कि ‘भारत का लोकतन्त्र शोर-शराबे का लोकतन्त्र है।’ 2014 में वित्त मन्त्री बनने से पहले वह राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे। अतः भली-भांति जानते थे कि शोर-शराबे का मन्तव्य क्या होता है?  इसका उद्देश्य जन चेतना को जागृत करने के अलावा और कुछ नहीं होता। स्वतन्त्र भारत के लोकतान्त्रिक इतिहास में यह कार्य नेहरू काल में समाजवादी नेता आचार्य कृपलानी व डा. राम मनोहर लोहिया बखूबी किया करते थे और इन्दिरा काल में स्वतन्त्र पार्टी के स्व. पीलू मोदी से लेकर भाजपा के स्व. अटल बिहारी वाजपेयी तक। उस दौर में शोर-शराबे की हद तो यहां तक थी कि 1970 के करीब राजा-महाराजाओं के प्रिवीपर्स उन्मूलन के इदिरा गांधी के फैसले का विरोध श्री वाजपेयी ने जम कर किया था।
Advertisement
इसी तरह  भारत- रूस सन्धि और शिमला समझौते का विरोध भी बहुत शोर-शराबे के साथ किया गया था और सवाल पूछे गये थे कि भारत ने अपना आत्म सम्मान कहां गिरबी रख दिया है? इसी प्रकार भारत जब चीन की किसी कार्रवाई पर विरोध पत्र दर्ज कराता था तो सरकार की जम कर खिंचाई की जाती थी। दस साल तक चली मनमोहन सरकार के दौरान तो इतना शोर-शराबा हुआ कि संसद के सत्र के सत्र ही बिना कोई कामकाज किये ही उठते-बैठते रहे, परन्तु इससे हमारे लोकतन्त्र की ताकत का ही इजहार हुआ और तय हुआ कि जन चेतना पर केवल सत्तारूढ़ दल का एकाधिकार नहीं होता। अतः लॉकडाउन से निपटने के लिए कांग्रेस द्वारा रखा गया यह प्रस्ताव, कि देश के आधे परिवारों के जन-धन खातों में पांच-पांच हजार रुपए की धनराशि डालने से वे मुश्किलें आसान हो सकती हैं जो इस दौरान  गरीब आदमी को पेश आयेंगी, लोगों की तवज्जो का मोहताज हो सकता है।
Advertisement
कांग्रेस इसे लेकर शोर मचाती है तो वह अपने विपक्ष धर्म को ही निभाने का काम करती है और अब प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के बारे में उनके रेल टिकट की अदायगी के बारे में वह जो सवाल खड़ा कर रही है उसे भी नाजायज नहीं कहा जा सकता क्योंकि आम जनता की परवाह करना सत्तारूढ़ दल की भांति उसका भी कर्त्तव्य है, परन्तु  भाजपा का भी पूरा अधिकार है कि वह कांग्रेस पार्टी के प्रचार को असत्य साबित करे और तथ्यों  के साथ गलत साबित करे। प्रवासी मजदूरों के लिए उन्हें उनके मूल राज्यों तक पहुंचाने के लिए जो विशेष रेलगाड़ियां चलाने का फैसला रेल मन्त्रालय ने लिया है उसके लिए मजदूरों से किराया वसूलने को लेकर श्रीमती सोनिया गांधी ने प्रतिक्रिया दी कि मुसीबत में फंसे लोगों से किराया लेना अनुचित है और उनकी पार्टी यह किराया सरकार को देने के लिए तैयार है। बेशक यह राजनैतिक पैंतरा हो सकता है मगर लोकतन्त्र में राजनैतिक दल नीतिगत पैंतरेबाजी की चालें दिखा कर ही एक-दूसरे को शह और मात देते हैं।
इसका माकूल जवाब भाजपा ने जब दिया तो कांग्रेस के पत्ते पिटते से लगे। सरकार की तरफ से कहा गया कि मजदूरों से किराया वसूलना पहले से ही मना था और इस बाबत कोई गफलत नहीं रहनी चाहिए क्योंकि जो भी विशेष रेलगाड़ियां चलेंगी उनका 85 प्रतिशत खर्चा केन्द्र सरकार और 15 प्रतिशत खर्चा राज्य सरकारें वहन करेंगी। गृह मन्त्रालय ने पहले ही ये निर्देश जारी कर दिये थे और रेल मन्त्रालय को इसकी जानकारी दे दी गई थी मगर पूरे मामले में रेल मन्त्रालय से ही गफलत हुई है क्योंकि उसने राज्य सरकारों से इस बाबत राब्ता बनाने में गफलत दिखा दी। रेलवे को यात्री टिकट का किराया मजदूरों के सम्बन्धित राज्यों की सरकारों से वसूलना था। साथ में यह भी ध्यान रखना था कि केवल वे लोग ही रेल में मुफ्त सफर करें जिनकी सिफारिश  राज्यों के अधिकृत संस्थान करें। इन संस्थानों से टिकट की राशि वसूल कर टिकट उनके हवाले करें।
मजदूरों से कहीं-कहीं टिकट की राशि वसूलने की खबरें आयीं। अब सवाल यह है कि उनसे यह राशि किसने ली और क्यों ली जबकि मुफ्त सफर की नीति पहले से ही तैयार थी। भाजपा ने कांग्रेस की शंकाओं का समाधान किया और मजदूरों काे सीधा लाभ हुआ। अब जो भी रेलगाड़ियां मजदूरों को ले जायेंगी उनमें बैठने वाले मजदूरों को यह पता होगा कि उन्हें किराया नहीं देना है। यह है शोर-शराबे का लोकतन्त्र जिसमें जन चेतना को जागृत करने का काम राजनैतिक दल ही करते हैं मगर यह सवाल अपनी जगह पर स्थिर है कि लॉकडाउन के तीसरे चरण में मजदूरों की घर वापसी किस तरह अर्थव्यवस्था के सुचारू होने में मदद कर सकती है?
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
Advertisement
×