मलिक-देशमुख को वोट देने की अनुमति नहीं मिलना उनके अधिकारों को ‘रौंदने’ के समान : शिवसेना
शिवसेना ने कहा, इस महीने की शुरुआत में गंभीर बीमारियों से जूझ रहे बीजेपी के दो विधायकों को महाराष्ट्र से राज्यसभा चुनाव के दौरान वोट देने के लिए एम्बुलेंस में लाया गया था। शिवसेना ने इसे बीजेपी की “भेदभाव की राजनीति” करार दिया।
12:38 PM Jun 20, 2022 IST | Desk Team
बॉम्बे हाई कोर्ट ने अनिल देशमुख और नवाब मलिक की उस याचिका को ख़ारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने राज्य विधान परिषद चुनाव में वोट देने की अपील की है। कोर्ट द्वारा अनुमति नहीं दिए जाने पर शिवसेना ने कहा कि वोट देने की अनुमति नहीं दिया जाना इन दोनों निर्वाचित प्रतिनिधियों के अधिकारों को रौंदने के समान है।
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शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के एक संपादकीय में सोमवार को कहा गया है कि इस महीने की शुरुआत में गंभीर बीमारियों से जूझ रहे बीजेपी के दो विधायकों को महाराष्ट्र से राज्यसभा चुनाव के दौरान वोट देने के लिए एम्बुलेंस में लाया गया था। शिवसेना ने इसे बीजेपी की “भेदभाव की राजनीति” करार दिया।
जेल में बंद है नवाब मलिक और अनिल देशमुख
मनी लॉन्ड्रिंग के अलग-अलग मामलों में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तार किए गए महाराष्ट्र के मंत्री मलिक और राज्य के पूर्व गृह मंत्री देशमुख दोनों फिलहाल जेल में हैं। बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र विधान परिषद चुनाव में मतदान करने के लिए जेल से अस्थायी रिहाई का अनुरोध करने वाली दोनों नेताओं की याचिकाएं शुक्रवार को खारिज कर दी थीं।
विधान परिषद की 10 सीटों के चुनाव के लिए सोमवार को मतदान हो रहा है। सत्तारूढ़ सहयोगी दलों शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस ने दो-दो उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे हैं, जबकि बीजेपी के पांच उम्मीदवार मैदान में हैं। राज्य की छह सीट पर 10 जून को हुए राज्यसभा चुनाव में शिवसेना के दूसरे उम्मीदवार बीजेपी से हार गए थे।
‘सामना’ के संपादकीय में कहा गया है कि देशमुख और मलिक की विधानसभा सदस्यता अभी बरकरार है और उन्हें सभी आवश्यक सुरक्षा व्यवस्था के साथ मतदान के वास्ते एक घंटे के लिए लाया जा सकता था। मराठी प्रकाशन ने दावा किया, ‘‘उन्हें वोट देने के अधिकार से वंचित करना दो निर्वाचित प्रतिनिधियों के अधिकारों को कुचलने के समान है।’’ उन्होंने कहा कि यह ‘‘भेदभाव की राजनीति’’ है। प्रवर्तन निदेशालय ने अदालत में इन दोनों नेताओं की याचिकाओं का विरोध किया था, जिस पर शिवसेना ने कहा कि ‘‘केंद्रीय एजेंसी सुप्रीम कोर्ट नहीं है’’।
पार्टी ने कहा, ‘‘लेकिन मुक्ता तिलक और लक्ष्मण जगताप (दोनों बीजेपी से) गंभीर बीमारी की स्थिति में होने के बावजूद (राज्यसभा चुनाव में) मतदान के लिए लाए गए… जब राजनीतिक स्वार्थ की बात आती है, तो मानवता को कुचल दिया जाता है और उन्हें (तिलक और जपताप को) मतदान के लिए स्ट्रेचर पर लाया जाता है। बीजेपी अपने राजनीतिक लक्ष्य को हासिल करने के लिए किसी भी स्तर तक गिर सकती है।’’
संपादकीय में कहा गया है, ‘‘केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है, लेकिन अगर अदालत भी होश खो देगी तो क्या होगा?’’ शिवसेना ने कहा कि दूसरी ओर, जेल की सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम को एक महीने की पैरोल दी गई थी। उसने कहा कि उसे पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले भी इसी तरह की रियायत दी गई थी।
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