एन आर सी, असम व बांग्लादेश
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि शेख हसीना को विगत वर्ष दिसम्बर में हुए राष्ट्रीय चुनावों में जबर्दस्त जन समर्थन मिला और वह पुनः पांच वर्ष के लिए भारी बहुमत से सत्ता पर बैठीं।
04:42 AM Oct 05, 2019 IST | Ashwini Chopra
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बांग्लादेश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना के भारत आगमन से दोनों देशों के बीच सम्बन्धों में प्रगाढ़ता और आयेगी इसमें किसी को सन्देह नहीं होना चाहिए क्योंकि बांग्लादेश व भारत ऐसी डोर से बन्धे हुए हैं जिसके सिरे दोनों देशों की जनता के दिलों से जुड़े हुए हैं। बेशक बांग्लादेश एक स्वतन्त्र व सार्वभौम राष्ट्र है परन्तु इसके उदय के साथ ही इसकी राजनीतिक नींव उसी गांधीवाद पर रखने की कोशिश इस देश के निर्माता स्व. शेख मुजीबुर्रहमान ने की जिसे सर्वधर्म समभाव की लोकतान्त्रिक धर्म निरपेक्ष प्रणाली कहा जाता है।
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हालांकि 1971 में इसके निर्माण के बाद जिस तरह इस्लामी कट्टरपंथियों ने इस देश में खून-खराबा और मजहबी जेहाद छेड़ कर बन्गबन्धु शेख मिजीबुर्रहमान की हत्या का षड्यन्त्र वहां की फौज के साथ मिलकर रचाया उससे बांग्लादेश की बंगाली अस्मिता को गहरा धक्का लगा किन्तु जमाते इस्लामी जैसी रूढ़िवादी तंजीमों को भी इसी दौर में फलने-फूलने का अवसर मिला। यह सत्य है कि शेख हसीना की अवामी लीग जैसी राजनैतिक पार्टी ने स्व. शेख मुजीबुर्रहमान के सिद्धान्तों को बांग्लादेशी जनमानस में पुनर्जागृत करके भारत के साथ अपने सम्बन्धों को मजबूत करने की दिशा में निर्णायक कदम उठाये जिससे पाकिस्तान परस्त जमाते इस्लामी जैसी तंजीमों को हाशिये पर डाला जा सके।
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सबसे महत्वपूर्ण यह है कि शेख हसीना को विगत वर्ष दिसम्बर में हुए राष्ट्रीय चुनावों में जबर्दस्त जन समर्थन मिला और वह पुनः पांच वर्ष के लिए भारी बहुमत से सत्ता पर बैठीं। अपने पिछले पांच वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने अपने देश की चहुंमुखी प्रगति के लिए कार्य किया और दक्षिण एशिया में इसे तेज गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था का देश बनाया और आर्थिक क्षेत्र में भारतीय हितों से टकराने का कभी भी रास्ता अख्तियार नहीं किया। इसकी वजह यह भी थी 2014 में सत्ता पर काबिज हुए भाजपा के प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी बांग्लादेश के साथ दोस्ताना सम्बन्धों पर जोर दिया और आपसी बातचीत के द्वारा वह समस्या हल की जो पिछले 45 वर्षों से ज्यादा समय से चली आ रही थी।
यह समस्या भारत व बांग्लादेश के सीमा क्षेत्र के कुछ इलाकों की अदला-बदली का था। दुनिया के इतिहास में ऐसे बहुत कम उदाहरण मिलते हैं जहां एक- दूसरे के इलाके में बसी नागरिक बस्तियों में रहने वाले लोगों की राष्ट्रीय नागरिकता बिना किसी टकराव या तनाव के बदल जाये। इसी से पता चलता है कि भारत-बांग्लादेश किस प्रकार ऐसी डोर से बन्धे हुए हैं जिसे हम प्रेम का धागा कहते हैं। अतः भारत आगमन पर शेख हसीना का यह कहना कि उन्हें भारत में हो रहे राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से कोई समस्या नहीं है, बताता है कि बांग्लादेश की प्रधानमन्त्री को भारतीय सरकार से किसी प्रकार की शिकायत नहीं है क्योंकि एनआरसी का सम्बन्ध भारत की संवैधानिक नागरिकता प्रणाली से है।
उन्होंने साफ किया कि न्यूयार्क में जब राष्ट्र संघ की सभा में भाग लेने दुनिया के तमाम देशों के राज प्रमुख गये हुए थे तो उनकी भेंट श्री नरेन्द्र मोदी से हुई थी और उन्होंने उन्हें आश्वासन दिया था कि एनआरसी पर बांग्लादेश को चिन्तित होने की कोई जरूरत नहीं है। अतः वह निश्चिन्त हैं कि सब कुछ ठीक ठाक होगा। इससे स्पष्ट है कि भारत में एनआरसी को लेकर जिस प्रकार की राजनीतिक ले-दे हो रही है उसे शेख हसीना ने कोई महत्व नहीं दिया है किन्तु असम में एनआरसी के मामले में यह जरूर सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी जायज भारतीय का नाम इससे न छूटे और इसमें उसका धर्म किसी भी स्तर पर आड़े न आये।
इसके साथ ही नागरिकता अधिनियम (संशोधन) विधेयक की तरफ भी हमें देखना होगा जिसमें गैर मुस्लिम शरणार्थियों के लिए नागरिकता शर्तों मे छूट दी गई है। हालांकि यह विधेयक 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था और बाद में जनवरी 2019 में पारित हो गया था परन्तु राज्यसभा में इसका जिक्र न होने से जून में नई लोकसभा गठित होने की वजह से यह निरस्त हो गया।
अब इस प्रक्रिया को पुनः शुरू करना पड़ेगा। इस विधेयक के पारित होने में संवैधिक अड़चनें बहुत आएंगी क्योंकि भारतीय संविधान में नागरिकता प्रदान करने के मामले में धर्म को विचार में नहीं लिया गया है किन्तु हकीकत तो यही रहेगी कि भारत में अवैध रूप से विदेशी नागरिकता वाले नागरिकों की संख्या लाखों में है, विशेष रूप से बांग्लादेशी नागरिक रोजी-रोटी की तलाश में भारत में आते रहे हैं। बेहतर होगा कि दोनों देशों के बीच इस बारे में स्पष्ट समझौता वर्तमान सन्दर्भों में हो जिससे आपसी रिश्तों पर जरा भी आंच न आ पाये और बांग्लादेश में सक्रिय कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों को पनपने का मौका न मिल सके।
दोनों देशों को बांग्ला संस्कृति विशेषरूप से बांग्ला भाषा बहुत कस कर जोड़ती है जिससे पाकिस्तान जैसा मुल्क हमेशा खौफ में रहता है और वह ढाका में अपने उच्चायोग तक को मजहबी तास्सुब फैलाने में इस्तेमाल करने तक से नहीं चूका है। अतः अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए हमें भारतीय उपमहाद्वीप में इबारत लिखनी होगी जिससे कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान द्वारा छेड़ा गया राजनैतिक मजहबी जेहाद दम तोड़ता नजर आये।
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