‘या मेरे मौला रहम’
भारत के ऑपरेशन सिन्दूर से स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान एक ऐसा आतंकवादी देश…
भारत के ऑपरेशन सिन्दूर से स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान एक ऐसा आतंकवादी देश है जिसमें दहशतगर्द तंजीमों के सरगनाओं की मौत पर न केवल मातम मनाया जाता है बल्कि इनके जनाजे में सेना व पुलिस के बड़े अफसरों के साथ हुकूमत में बैठे हुक्मरान भी खिराजे अकीदत यानि गमी पेश करते हैं। अतः प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 12 मई को अपने राष्ट्र के नाम सन्देश में जो यह कहा है कि भारत अब आतंकपरस्त सरकार और आतंक के आकाओं को अलग-अलग रखकर नहीं देखेगी, बताता है कि पाकिस्तान की हुकूमत में भी आतंकवादियों की पकड़ है। श्री मोदी ने साफ कर दिया है कि आतंकवाद का मुकाबला भारत हर स्तर पर करेगा और इसे मात देगा। इसमें जरा भी सन्देह नहीं है कि भारत की सेना के तीनों अंगों ने आॅपरेशन सिन्दूर को सफल बनाने में पूरी जांबाजी दिखाई और पाकिस्तान में सक्रिय नौ आतंकवादी ठिकानों को नेस्तनाबूद कर दिया। दरअसल श्री मोदी ने साफ कर दिया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच औपचारिक वार्तालाप तभी संभव है जबकि सीमा पार का यह पड़ोसी आतंकवाद को पनाह देना बन्द कर दे और दुर्दान्त आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करे। उनका यह कहना कि भारत ने आॅपरेशन सिन्दूर अभी केवल स्थगित किया है, एेलान करता है कि भारत आतंकवाद को जड़-मूल से नष्ट करना चाहता है।
श्री मोदी जब यह कहते हैं कि, पाकिस्तान अपने परमाणु देश होने के नाम पर भारत को ब्लैकमेल नहीं कर सकता और इसकी आड़ में आतंकवादियों के सरगनाओं का सुरक्षित घर नहीं बन सकता, सन्देश देता है कि पूरी दुनिया इस सच को समझकर ही पाकिस्तान की हैसियत का आंकलन करे। दरअसल पाकिस्तान एेसा मुल्क है जो कालान्तर में आतंकवाद खत्म करने के नाम पर ही अमेरिका समेत पश्चिमी यूरोपीय देशों को रिझाता रहा है मगर भारत की कार्रवाई देखकर इन देशों को पाकिस्तान के बारे में अपने नजरिये को परिमार्जित करना चाहिए और आतंक के खिलाफ भारत का पूरा समर्थन करना चाहिए। प्रधानमन्त्री का यह कहना कि आतंकवाद और वार्तालाप एक साथ संभव नहीं हैं, बताता है कि पाकिस्तान जब तक आतंकवाद को मिटाने में तत्पर नहीं होगा तब तक भारत उससे बातचीत कैसे कर सकता है। भारत पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को पिछले तीस सालों से ढोह रहा है मगर वह कश्मीर के नाम पर दुनिया को गुमराह करने से भी पीछे नहीं हट रहा है। अतः श्री मोदी ने साफ कर दिया है कि अगर कश्मीर के मामले में पाकिस्तान से कभी कोई बातचीत होगी भी तो वह केवल उस कश्मीर के बारे में होगी जिसे पाकिस्तान ने अपने कब्जे में लिया हुआ है। जाहिर है कि पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों को पाकिस्तान ने अपना गुलाम बनाकर रखा हुआ जबकि भारत के जम्मू-कश्मीर के लोग भारत के खुले लोकतन्त्र में सांस ले रहे हैं और सभी प्रजातान्त्रिक नागरिक अधिकारों से लैस हैं।
भारत ने 7 मई को आॅपरेशन सिन्दूर शुरू किया था और 10 मई को पाकिस्तान के गिड़गिड़ाने पर भारत की वीर सेनाओं ने इसे स्थगित किया। भारत किसी तीसरे देश की भूमिका पाकिस्तान के सन्दर्भ में नहीं चाहता है और वह 1972 के शिमला समझौते से बन्धा हुआ है जिसमें दोनों देशों के सभी विवादों को वार्तालाप की मेज पर बैठ कर सुलझाने की शर्त है। मगर आॅपरेशन सिन्दूर से घबराकर पाकिस्तान ने इस समझौते को मुल्तवी कर दिया और अमेरिका व पश्चिमी देशों से गुहार लगाई कि या खुदा वे उसे भारत के रणबांकुरे सैनिकों से बचायें। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस बारे में जो बयानबाजी कर रहे हैं उसे भारतवासी गंभीरता से नहीं लेते हैं क्योंकि ट्रम्प तो मानते हैं कि भारत पाकिस्तान के बीच कश्मीर समस्या एक हजार साल पहले से चल रही है। जरा कोई ट्रम्प साहब को बताये कि पाकिस्तान का निर्माण ही 78 साल पहले 1947 में हुआ है तो कश्मीर समस्या हजार साल पुरानी कैसे हो गई? दुनिया जानती है कि भारत व पाकिस्तान को एक तराजू पर रखकर नहीं तोला जा सकता है क्योंकि पाकिस्तान का गठन ही इस्लामी धर्मांधता के साये में हुआ है। अतः पाकिस्तान जिस तरह आतंकवाद की जकड़ में आया है उसके पीछे जेहादी मानसिकता ही रही है। इसके बावजूद भारत की हर चन्द कोशिश रही है कि पाकिस्तान के साथ उसके सम्बन्ध मधुर बने रहें मगर पाकिस्तान शुरू से ही हिन्दू विरोध का ध्वजवाहक रहा है।
दूसरी तरफ भारत ने धर्मनिरपेक्षता का सिद्धान्त स्वीकार किया और पूरे भारत को एक भौगोलिक सीमा का राष्ट्र स्वीकार किया जिसमें किसी भी धर्म के नागरिकों को बराबर के अधिकार दिये गये। इस मामले में यह सनद रहनी चाहिए कि पाकिस्तान की सेना अपने मुल्क के नाम पर नहीं बल्कि इस्लाम के नाम पर लड़ती है। जबकि भारत की सेना देश के संविधान की कसम उठाकर राष्ट्र के लिए लड़ती है। अतः श्री मोदी का यह कहना कि भारत के लोगों की एकजुटता इसकी सबसे बड़ी शक्ति है, इंगति करता है कि जब देश की बात आती है तो हर भारतवासी पहले भारतीय हो जाता है और हर राजनैतिक दल राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखता है। हमारे लोकतन्त्र की यह अन्तर्निहित शक्ति भारत की सेनाओं के मनोबल को सर्वदा बढ़ाती रही है। हकीकत यह भी है कि भारत ने अभी तक पाकिस्तान के खिलाफ जो लड़ाइयां लड़ी हैं उनसे यह लड़ाई पूरी तरह अलग है क्योंकि पाकिस्तान अपनी सीमाओं का इस्तेमाल अपने पाले-पोसे हुए आतंवादियों की मदद के लिए कर रहा है जबकि 2004 में भारत व पाकिस्तान के बीच समझौता हुआ था कि वह अपनी जमीन का इस्तेमाल भारत के विरुद्ध आतंकवाद फैलाने में नहीं करने देगा। इसे लाहौर घोषणापत्र कहा जाता है लेकिन इसके बावजूद पाकिस्तान की भूमि से चलकर ही 2008 नवम्बर में मुम्बई में आतंकवादी आये और इसके बाद उरी, पठानकोट व पुलवामा हमले हुए। मगर विगत 22 अप्रैल को तो पहलगाम में सारी हदें ही आतंकवादियों ने तोड़ डालीं और 26 लोगों का कत्ल उनका धर्म पूछ-पूछ कर उनके परिवारजनों के सामने ही किया। इसके जवाब में की गई भारत की कार्रवाई से केवल तीन दिन में पाकिस्तान इतना थरथरा गया कि वह रहम की भीख मांगने लगा और कहने लगा ‘या मेरे मौला रहम।’