Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

व्यापमं : महाभ्रष्टाचार का खेल

NULL

11:52 PM Nov 24, 2017 IST | Desk Team

NULL

अन्ततः सीबीआई ने मध्य प्रदेश के व्यापमं घोटाले की अपनी जांच के सिलसिले में 592 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर कर दी है, जिसमें अनेक रसूखदारों के नाम शामिल हैं। सीबीआई की चार्जशीट में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम शामिल नहीं है क्योंकि सीबीआई पहले ही उन्हें क्लीनचिट दे चुकी है। चार्जशीट में एजैंसी ने कहा है कि मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल के एक अधिकारी द्वारा बरामद हार्डडिस्क ड्राइव में मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा कराए गए फॉरेंसिक विश्लेषण से स्पष्ट हुआ है कि उसमें ऐसी कोई फाइल स्टोर नहीं थी जिसमें ‘सीएम’ अक्षर थे। हालांकि विपक्ष के नेता और व्हिसल ब्लोअर का आरोप था कि 2013 में बरामद हार्डडिस्क में छेड़छाड़ की गई थी ताकि रिकॉर्ड में ‘सीएम’ शब्द हटाए जा सकें।

आरोप-प्रत्यारोपों के बीच चार्जशीट पेश होने के बाद भोपाल की अदालत में देर रात 2 बजे तक सुनवाई हुई। 12 घंटे सुनवाई कर सीबीआई अदालत ने इतिहास रच डाला। सीबीआई की निष्पक्षता को लेकर सवाल उठना कोई नई बात नहीं है लेकिन जांच एजैंसी ने 245 नए चेहरों को भी आरोपी बनाया है। इसमें भोपाल के कई बड़े चेहरे शामिल हैं। इन चेहरों में भोपाल के प्रतिष्ठित पीपुल्स ग्रुप के सुरेश एन. विजयवर्गीय, चिरायु के डा. अजय गोयनका आैर एल.एन. मेडिकल कॉलेज के जयनारायण चौकसे भी शामिल हैं। सीबीआई से पहले पीएमटी घोटाले की जांच मध्य प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स के पास थी। चौंकाने वाली बात यह है कि एसटीएफ की जांच रिपोर्ट में जिन बड़े लोगों का जिक्र तक नहीं था अब उन पर ही सीबीआई ने घोटाले के आरोप लगाए हैं। ऐसे में एसटीएफ की जांच पर सवाल खड़े हो गए हैं कि क्या किसी दबाव के चलते इन आरोपियों के नाम दबाए गए थे या जांच गलत दिशा में की गई। चार्जशीट ने परत-दर-परत उनकी कलई खोली है। व्यापमं घोटाला दरअसल प्रवेश एवं भर्ती घोटाला है जिसके पीछे कई नेताओं, व​िरष्ठ अधिकारियों अैर व्यावसायिकों का हाथ है। मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल राज्य में कई प्रवेश परीक्षाओं का संचालन करता है और यह राज्य सरकार द्वारा गठित एक स्व-वित्तपोषित और स्वायत्त निकाय है। इन प्रवेश परीक्षाओं में तथा नौकरियों में अपात्र परीक्षार्थियों और उम्मीदवारों को बिचौलियों, उच्चपदस्थ अधिकारियों और राजनेताओं की मिलीभगत से रिश्वत के लेन-देन आैर भ्रष्टाचार के माध्यम से प्रवेश दिया गया और बड़े पैमाने पर अयोग्य लोगों की भर्तियां की गईं। इन प्रवेश परीक्षाओं में अनियमितताओं के मामलों को 1990 के मध्य के बाद से सूचित किया था लेकिन पहली एफआईआर 2007 में दर्ज की गई।

2013 में इन्दौर में मामले दर्ज किए गए। 2015 में सीबीआई ने शिक्षा जांच शुरू की थी। इस मामले में शिवराज सिंह चौहान सरकार में मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा और कई अन्य अधिकारी पहले ही जेल जा चुके हैं। घोटाले की जांच के सिलसिले में एक के बाद एक छापों के बीच घोटाले से जुड़े अब तक लगभग 50 लोगों की संदिग्ध मौत हो चुकी है। इस घोटाले को खूनी व्यापमं घोटाला भी कहा जाता है। क्या इन संदिग्ध मौतों के पीछे कोई संगठित गिरोह काम कर रहा था? क्या इनमें सरकारी या राजनी​तिक साजिश का हाथ रहा है? यह सब सवाल वैसे ही मुंह बाये खड़े हैं। घोटाले के चलते मेडिकल की परीक्षा कोई और देता था, दाखिला किसी और को मिलता था। इसके चलते 634 मुन्नाभाइयों को फर्जी डाक्टर बनाया गया। व्यापमं घोटाले के तार इस कदर उलझे हुए थे कि पता ही नहीं चलता कि कौन किसके लिए काम कर रहा है और किसके माध्यम से काम हो रहा है। ऐसा संगठित गिरोह काम कर रहा था जिसके इशारे पर कठपुतलियां नाच रही थीं आैर उनकी डोर अदृश्य ताकतों के हाथ में बंधी थी। चार्जशीट से पता चलता है कि परीक्षाओं में सामूहिक नकल के ज​िरये परीक्षा पास करने वाला छात्र तो मेडिकल कॉलेज में प्रवेश हासिल कर लेता था लेकिन नकल कराने में मदद करने वाले स्कोरर काे भी अच्छे नम्बर मिलते थे, लेकिन वह मेडिकल में प्रवेश नहीं लेता था। स्कोरर के जरिये दो सीटों का सौदा कि​या जाता था जिससे कथित तौर पर करीब सवा करोड़ कमाई होती थी। व्यापमं के तीन गिरोह काम करते थे। यह एजैंटों पर अन्य माध्यमों से ऐसे छात्रों की तलाश करते थे जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी होती थी।

गिरोह के एजैंट उनसे सम्पर्क करते थे और उन्हें पीएमटी परीक्षा में पास होने में मदद से लेकर मेडिकल कॉलेज में प्रवेश की गारंटी लेते थे। इसलिए 50 से 80 लाख की डील होती थी। इस घोटाले में मेडिकल कॉलेजों का प्रबन्धन भी जुड़ा था। व्यापमं या अन्य प्रवेश परीक्षाओं में मुन्नाभाई बनकर किसी और की जगह परीक्षा देने के कई मामले सामने आते रहे हैं। व्यापमं के जादूगरों ने परीक्षा में नकल के सारे पुराने तरीकों को पीछे छोड़ ऐसी साजिश रची जिसने हर किसी को हैरान कर दिया। सॉफ्टवेयर से छेड़छाड़ कर नकल का पूरा प्लान सिरे चढ़ाया जाता था। चार्जशीट से सब कुछ साफ हो गया है कि घोटाले में प्राइवेट मेडिकल कॉलेज संचालक, मेडिकल एजुकेशन के अधिकारी, व्यापमं के अधिकारी और दलाल सब ​​मिले हुए थे। सब एक-दूसरे को जानते थे। व्यापमं घोटाले का पर्दाफाश करने वाले डाक्टर आनन्द राय का कहना है कि इस मामले में असली संरक्षक अब भी जांच एजैंसी के शिकंजे से बाहर है। आरोप पत्र में इन चिकित्सा माफियाओं के पोषक शामिल क्यों नहीं हैं, जिनके संरक्षण में महाभ्रष्टाचार का खेल रचा गया। सवाल तो उठते रहेंगे। देखना है अदालत कितनों को सजा सुनाती है और कितने बच निकलते हैं?

Advertisement
Advertisement
Next Article