एक बार फिर उड़ेंगे मुनीर के होश! भारतीय सेना के बेड़े में शामिल हुआ ये खतरनाक हथियार
भारतीय रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने एक नया और पूरी तरह स्वदेशी माउंटेड गन सिस्टम (MGS) विकसित किया है. यह सिस्टम भारतीय सेना की ताकत को और बढ़ाएगा. यह सिस्टम अब सेना के परीक्षण के लिए तैयार है और जल्द ही अलग-अलग इलाकों में इसकी जांच शुरू होगी.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, MGS एक भारी तोप प्रणाली है जिसे एक मजबूत वाहन (8x8 टाट्रा HMV) पर लगाया गया है. यह 155mm/52 कैलिबर की ATAGS तोप पर आधारित है, जिसे DRDO की ARDE संस्था ने तैयार किया है. इसकी सबसे खास बात है "शूट एंड स्कूट", यानी गोली चलाकर तुरंत जगह बदलने की क्षमता.
खास विशेषताएं
लंबी रेंज और सटीकता: MGS की अधिकतम मारक दूरी 45 किलोमीटर तक है (गोला-बारूद के अनुसार). यह दुश्मन के एयरबेस, रडार या कमांड पोस्ट जैसे सटीक लक्ष्य को नष्ट कर सकता है.
तेज़ तैनाती: यह केवल 80 सेकंड में फायरिंग के लिए तैयार हो जाता है और 85 सेकंड में अपनी जगह बदल सकता है.
फायरिंग क्षमता: यह एक मिनट में 6 गोले दाग सकता है. यह एक बार में लगभग 50 वर्ग मीटर क्षेत्र को कवर कर सकता है.
मोबिलिटी और गति: रेगिस्तान, पहाड़ी और बर्फीले इलाकों में चल सकता है. यह समतल सड़कों पर 90 किमी/घंटा और कठिन इलाकों में 60 किमी/घंटा की रफ्तार से चल सकता है.
वजन और डिजाइन: इसका कुल वजन करीब 30 टन है, लेकिन यह 40 टन तक भार सहने वाले पुलों से आसानी से गुजर सकता है.
क्रू की सुरक्षा: इसमें 7 लोगों के लिए बुलेटप्रूफ केबिन है, जिससे उन्हें दुश्मन के हमले से बचाया जा सके.
तकनीकी और इंडस्ट्रियल सहयोग
इस सिस्टम का विकास DRDO के VRDE अहमदनगर में हुआ है. इसमें 80% से ज्यादा उपकरण भारत में ही बने हैं. निर्माण में भारत फोर्ज, TASL, AWEIL, और BEML जैसी कंपनियों का योगदान है.
अन्य आधुनिक सुविधाएं
- ऑटोमैटिक गोला-बारूद लोडिंग सिस्टम, जो 24 गोले और चार्जिंग यूनिट ले जा सकता है.
- फायर कंट्रोल सिस्टम, जो सेना के कमांड सिस्टम से जुड़कर फायरिंग को और अधिक सटीक बनाता है.
- आर्मर्ड केबिन, जो भविष्य में स्टील की जगह कंपोजिट से बनेगा.
सेना के लिए क्यों ज़रूरी?
MGS की तेज़ी और हर इलाके में काम करने की क्षमता इसे आधुनिक युद्ध के लिए आदर्श बनाती है. यह सियाचिन से लेकर रेगिस्तान तक हर जगह प्रभावी रहेगा. यह ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को भी मजबूती देता है.
भविष्य की योजना और निर्यात
सेना को लगभग 800 MGS यूनिट्स की ज़रूरत है. मार्च 2025 में भारत फोर्ज और टाटा को 307 यूनिट्स का ऑर्डर मिला. 2026 तक इसके ट्रायल पूरे होने की उम्मीद है. भारत पहले ही इसे आर्मेनिया को निर्यात कर चुका है और भविष्य में अन्य देशों में भी इसकी मांग हो सकती है.