Top NewsIndiaWorld
Other States | Delhi NCRHaryanaUttar PradeshBiharRajasthanPunjabJammu & KashmirMadhya Pradeshuttarakhand
Business
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

कभी लाहौर भी हमारा ही था...

02:38 AM Jul 31, 2024 IST | Shera Rajput

एक समय था कि लाहौर भी हमारा था, कराची भी अपना था और मुल्तान भी भारत का था। स्वतंत्रता से पूर्व भारत की सरहदें अफगानिस्तान, ईरान और म्यांमार से मिला करती थीं, मगर धर्म की वीभत्सपूर्ण राजनीति के कारण एक देश को दो भागों में विभाजित कर दिया गया। आज भी बसंत पंचमी के अवसर पर अटारी-वाघा बॉर्डर पर भारत-पाकिस्तान की ओर से 85-90 वर्ष से ऊपर के वृद्ध सांझ को मोमबत्तियां जला कर एक-दूसरे को फ्लाइंग किस देते हुए कहते हैं, ‘‘ओ साढ्डा पिंड सी, ओ साढ्डा बंदा सी’’ पाकिस्तान वाले पंजाब के लोग अपने पंजाब वालों की तुलना में शुद्ध और ख़ालिस पंजाबी बोलते हैं। वैसे आजकल दिल्ली में असगर वजाहत द्वारा लिखा नाटक, ‘जिस ने लाहौर नहीं देखा, वह जन्मा ही नहीं’ दिल्ली के मंडी हाउस में चल रहा है, जिसे काफी पसंद किया जा रहा है।
लाहौर नगर का प्राचीन नाम लवपुर या लवपुरी था और इसे श्री रामचन्द्र के पुत्र लव ने बसाया था। लाहौर पाकिस्तान के प्रांत पंजाब की राजधानी है एवं कराची के बाद पाकिस्तान में दूसरा सबसे बड़ा आबादी वाला शहर है। इसे पाकिस्तान का दिल नाम से भी संबोधित किया जाता है क्योंकि इस शहर का पाकिस्तानी इतिहास, संस्कृति एवं शिक्षा में अत्यंत विशिष्ट योगदान रहा है। इसे अक्सर पाकिस्तान के बागों के शहर के रूप में भी जाना जाता है।
भारत रत्न, मौलाना आज़ाद ने कहा था कि दरिया को दो भागों में नहीं बांटा जा सकता। वैसे आज़ाद भारत के विभाजन को लेकर महात्मा गांधी से क्षुब्ध थे क्योंकि उन्होंने यह वायदा किया था मौलाना से कि यदि विभाजन हुआ तो उनकी लाश पर होगा। मगर गांधी जी पंडित नेहरू के बहलावे में ऐसे आए कि भारत के जिगर के टुकड़े को काट कर पाकिस्तान बना दिया गया। गांधी जी द्वारा भारत के विभाजन पर ठप्पा लगाए जाने पर उनका मन इतना विचलित था कि आज़ादी वाले दिन की 14 अगस्त की रात को मौलाना आज़ाद दरबार हॉल (गणतंत्र मंडप) के एक खंभे की आड़ में जार-ओ-कतार, आंसुओं से रो रहे थे। स्वतंत्रता सेनानी, अरुणा आसिफ अली ने मौलाना से कहा कि आज का अवसर तो उत्सव का अवसर है और वे रो रहे हैं तो क्यों। उस पर मौलाना ने कहा कि इसे वे आजादी नहीं बल्कि बर्बादी मानते हैं क्योंकि भारत को छिन्न-भिन्न कर उसके टुकड़-टुकड़े कर दिए गए। बाद में मौलाना आज़ाद ने "इंडिया विन्स फ्रीडम" के अंतिम पन्नों में लिखा कि भारत को किस प्रकार से विभाजित किया गया, जिसमें गांधी और नेहरू की रज़ामंदी शामिल थी। यही कारण था उनकी आब्दीदा आंखों का।
दिल्ली से 485 किलोमीटर या 256 मील दूर, लाहौर पाकिस्तान के प्रांत पंजाब की राजधानी है एवं कराची के बाद पाकिस्तान में दूसरा सबसे बड़ा आबादी वाला शहर है। इसे पाकिस्तान का दिल नाम से भी संबोधित किया जाता है क्योंकि इस शहर का पाकिस्तानी इतिहास, संस्कृति एवं शिक्षा में अत्यंत विशिष्ट योगदान रहा है।
लाहौर खान-पान की जन्नत है, जहां ‘‘सॉल्ट एंड पैपर’’, जायका, मोनल, वीरा, हवेली, अर्कादियन कैफे पैकेज आदि जैसे सैंकड़ों होटल हैं जहां भारतीय क्रिकेटर महेंद्र अमरनाथ, फारूख इंजीनियर, बिशन सिंह बेदी, मनोज प्रभाकर, धोनी, अनिल कुंबले, रवि शास्त्री, वीरेंद्र सहवाग, विराट कोहली आदि तो चटखारे ले ही चुके हैं। भारतीय फिल्म जगत के कई बड़े सितारे भी यहां की शोभा बढ़ा चुके हैं, जैसे दिलीप कुमार, मनोज कुमार, अशोक कुमार, विनोद खन्ना, वहीदा रहमान, हेमा मालिनी, ऋषि कपूर आदि। यदि बॉर्डर पर टेंशन समाप्त हो तो दोनों देशों के लोगों के फिर दिल से दिल जुड़ सकते हैं।
यदि यह कहा जाए कि लाहौर दिल्ली जैसा ही अनूठा व विलक्षण शहर है तो अतिशयोक्ति न होगी। लाहौर की कपड़ा मार्केट, अनारकली के किसी दुकानदार से पूछा गया कि इस नगर में जीवन कैसा है तो वह बोले, ‘‘मस्त जीवन है, खाना, पीना और सोना। वैसे लाहौर एक ऐतिहासिक शहर है और कहा जाता है कि इसका नाम लव-कुश के नाम पर रखा गया है। यहां पर प्राचीन कटास राज मंदिर भी है जो लाहौर-कराची हाईवे पर है, जिसके बारे कहा जाता है कि यहां सनातन धर्म के आराध्य शिवजी ने पार्वती जी के लिए दो स्थानों पर आंसू दो बहाए थे, जिनमें से पहला, कटास राज मंदिर का कुंड भर गया था और दूसरा पुष्कर, अजमेर में भरा था। इसके अतिरिक्त लाहौर में जाने पर उत्तरी भारतीय लोगों को लगेगा कि वे तो भारत के दिल्ली, आगरा, इलाहाबाद, कानपुर आदि में हैं। चूंकि लाहौर में पंजाबी बोली जाती है तो पंजाब वालों को लगता है कि वे अमृतसर, फगवाड़ा या लुधियाना में आ गए हैं।
आज भी लाहौर में बहुत से स्थान ऐसे हैं जो हिंदू सनातनी नाम हैं, जैसे, भगत सिंह चौक, लहना सिंह मार्केट, दिल्ली दरवाज़ा, गंगा राम अस्पताल, गली सुरजन सिंह, गली राजा नरेंद्रनाथ, कूचा शंकर नाथ, कूचा भैया हरि सिंह, कटरा रोहन लाल, गली मेला राम, गली देवी दत्ता, कूचा बेली राम, गली माता रानी, कूचा कल्याणी माता, कूचा गोगी मिश्रा आदि। इन्हीं माैहल्लों में से एक में ‘दैनिक पंजाब केसरी दिल्ली’ के संपादक स्वर्गीय अश्विनी जी की पुश्तैनी हवेली भी थी, जिसे वे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर बस में भी देखने गए थे और अख़बार में इसका बड़ा लुभावना विवरण भी दिया था। जब एक एक्सचेंज कार्यक्रम के अंतर्गत, मॉडर्न स्कूल के छात्रों को लाहौर के एचिसन कॉलेज ले जाया गया था तो पता चला कि अंग्रेज़ों के समय स्थापित इस स्कूल के अंदर प्रवेश करते ही ऐसा लगा कि मानो हम भारत के अजमेर के मेयो कॉलेज या दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में हैं।
एक बार ऐसा हुआ कि तालिबानी विचारधारा के कुछ लोगों ने लाहौर की मुंसिपल्टी से कहा कि लाहौर के सभी हिंदू स्मारकों, भवनों, सड़कों, गलियों आदि के नामों को बदल कर इस्लामी नामकरण करना चाहिए तो इस पर लाहौर के इतिहासकार, सामाजिक कार्यकर्ता आगे आए और उन्होंने इसको रोकने के लिए सड़कों पर मार्च निकला कि इतिहास से जुड़ी घटनाएं चाहे सुखद हों या दुखद, उन पर किए नामकरण पर कोई बदलाव इतिहास के साथ खिलवाड़ होगा। कुछ ऐसा ही हमारी सरकार करे तो ठीक होगा।

Advertisement
Advertisement
Next Article