एक राष्ट्र एक चुनाव: JPC की बैठक में बांसुरी स्वराज का बैग चर्चा में
भाजपा नेता बांसुरी स्वराज आज जेपीसी की बैठक में शामिल
नई दिल्ली लोकसभा सीट से सांसद बांसुरी स्वराज जेपीसी की बैठक में एक काले रंग का बैग लेकर पहुंचीं, जिस पर ‘नेशनल हेराल्ड की लूट’ लिखा था। यह बैग गांधी परिवार पर तंज था। जेपीसी की पहली बैठक ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ के मसौदे पर चर्चा के लिए आयोजित की गई थी। इसे लागू करने के लिए जिस प्रकार के बहुमत की आवश्यकता है, सत्ता पक्ष के पास वह नहीं है। ऐसे में सत्ता पक्ष भी चाहेगा कि कोई मध्यमार्ग तलाशा जाए।
नई दिल्ली लोकसभा सीट से सांसद और भाजपा नेता बांसुरी स्वराज आज जेपीसी की बैठक में शामिल होने पहुंचीं। बांसुरी ने एक काले रंग का बैग टांग रखा था। बैग पर रोमन लिपि में “नेशनल हेराल्ड की लूट” लिखा था। आज “एक राष्ट्र एक चुनाव” के मसौदे पर जेपीसी की पहली बैठक है। जेपीसी में कुल 39 सदस्य हैं, जिनमें कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी भी शामिल हैं। जब से ईडी ने सोनिया और राहुल गांधी का नाम “नेशनल हेराल्ड” मामले से जुड़े आरोप पत्र में डाला है, गांधी परिवार पर लगे आरोप चर्चा में हैं। सरकार “एक राष्ट्र एक चुनाव” के मसौदे को लागू करने पर ज़ोर दे रही है। केंद्र सरकार ने 2023 में, पूर्व राष्ट्रपति कोविंद के नेतृत्व में “एक राष्ट्र एक चुनाव” पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक कमिटी बनाई थी। 17 दिसंबर को इसी रिपोर्ट पर आधारित “एक राष्ट्र एक चुनाव” को लागू करने के लिए सरकार संविधान का 129वां संशोधन लाई थी। बाद में 20 दिसंबर को सभापति ने बिल को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया।
देश में “बैग राजनीति” की शुरुआत?
बांसुरी स्वराज का “नेशनल हेराल्ड की लूट” लिखा बैग सीधे तौर पर गांधी परिवार और “नेशनल हेराल्ड” मामले पर तंज है। पूरी संभावना है कि उनका यह बैग काफी सुर्खियां बटोरने वाला है। मगर यह राजनीतिक विरोध और तंज जाहिर करने के लिए बैग का इस्तेमाल करने वाली बांसुरी पहली नहीं हैं। पिछले साल संसद के शीत सत्र में प्रियंका गांधी भी पहले फिलस्तीन और फिर बांग्लादेशी हिंदुओं का समर्थन करता हुआ बैग लेकर आई थीं। प्रियंका के बाद अब विरोध प्रदर्शन के लिए बांसुरी का बैग इस्तेमाल करना देश में एक नई “बैग राजनीति” की शुरुआत हो सकती है।
“एक राष्ट्र एक चुनाव” पर निकलेगा मध्यमार्ग?
“एक राष्ट्र एक चुनाव” पर सत्ता पक्ष और विपक्ष काफी समय से उलझे हैं। इसे लागू करने के लिए जिस प्रकार के बहुमत की आवश्यकता है, सत्ता पक्ष के पास वह नहीं है। ऐसे में सत्ता पक्ष भी चाहेगा कि कोई मध्यमार्ग तलाशा जाए।