फांसी के खिलाफ निर्भया का एक और दोषी पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, दाखिल किया क्यूरेटिव पिटीशन
पूरे देश को दहला देने वाले निर्भया सामूहिक दुष्कर्म एवं हत्या मामले के चार दोषियों में से एक विनय शर्मा के बाद अब दूसरे दोषी मुकेश कुमार ने भी उच्चतम न्यायालय में गुरुवार को संशोधन (क्यूरेटिव) याचिका दायर की।
06:54 PM Jan 09, 2020 IST | Shera Rajput
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पूरे देश को दहला देने वाले निर्भया सामूहिक दुष्कर्म एवं हत्या मामले के चार दोषियों में से एक विनय शर्मा के बाद अब दूसरे दोषी मुकेश कुमार ने भी उच्चतम न्यायालय में गुरुवार को संशोधन (क्यूरेटिव) याचिका दायर की।
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मुकेश कुमार की ओर से वृंदा ग्रोवर ने संशोधन याचिका दायर की, जबकि विनय की ओर से सदाशिव ने याचिका पर हस्ताक्षर किये हैं। विनय के बाद अब मुकेश ने भी अपनी याचिका में फांसी नहीं दिये जाने की मांग की है।
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पटियाला हाउस कोर्ट से चारों अपराधियों को फांसी पर लटकाये जाने के लिए मंगलवार को ‘ब्लैक वारंट’ (डेथ वारंट) जारी किये जाने के बाद यह दूसरी याचिका है। सुबह में विनय ने याचिका दायर की थी, जबकि मुकेश की याचिका देर शाम दायर की गयी।
पटियाला हाउस अदालत ने सभी चारों दोषियों को 22 जनवरी को सुबह सात बजे तिहाड़ जेल में फांसी देने का आदेश दिया था। फैसले के बाद सभी दोषियों ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष क्यूरेटिव याचिका दायर करने की बात कही थी।
निचली अदालत में सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने कहा था कि अब किसी भी दोषी की कोई भी याचिका किसी भी अदालत में या राष्ट्रपति के समक्ष लंबित नहीं है। सभी दोषियों की पुनर्विचार याचिकाएं शीर्ष अदालत ने खारिज कर दी थी।
अभियोजन पक्ष ने अदालत से डेथ वारंट जारी करने का आग्रह करते हुए कहा था, ‘‘डेथ वारंट जारी करने और तामील करने की अवधि के बीच दोषी सुधारात्मक याचिका दायर करना चाहते हैं तो कर सकते हैं।’’
निर्भया के साथ 16 दिसम्बर 2012 को सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसे बुरी तरह से जख्मी करने के बाद सड़क पर फेंक दिया गया था। बाद में उपचार के दौरान उसकी मौत हो गयी थी। इस मामले में छह आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें एक नाबालिग आरोपी भी था। उसे तीन साल के लिए सुधारगृह में रखा गया था, जहां से वह रिहा हो चुका है।
एक आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में फांसी लगा ली थी, जबकि शेष चार आरोपियों-विनय, पवन गुप्ता, मुकेश कुमार एवं अक्षय कुमार को दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनायी गयी थी, जिसे दिल्ली उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ने सही ठहराया है।

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