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ऑपरेशन सिन्दूर और संसद

04:22 AM Jul 31, 2025 IST | Aditya Chopra
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

ऑपरेशन सिन्दूर पर संसद के दोनों सदनों में चली लम्बी बहस का निष्कर्ष यह निकाला जा सकता है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प असत्य या झूठ बोल रहे हैं। अब तक ट्रम्प 29 बार यह कह चुके हैं कि उनकी मध्यस्थता के कारण ही भारत-पाकिस्तान में हुई लड़ाई पर विराम लगाया गया। हर देशवासी जानता है कि विगत 7 मई से लेकर 10 मई तक दोनों देशों के बीच सैनिक संघर्ष हुआ था। यह युद्ध चल ही रहा था कि ट्रम्प साहब ने 10 मई की शाम को यह ट्वीट कर दिया कि भारत व पाकिस्तान दोनों युद्ध पर विराम लगाने के लिए राजी हो गये हैं। हालांकि इसके कुछ समय बाद ही भारत की ओर से विदेश सचिव श्री विक्रम मिसरी ने एक प्रेस कान्फ्रैंस करके युद्ध विराम की घोषणा यह कहते हुए की कि पाकिस्तान के आला सैनिक अफसर (डीजीएमओ) ने इसकी याचना भारत के समकक्ष सैनिक अफसर से की थी। मगर यह भी हकीकत है कि ट्रम्प ने युद्ध विराम की घोषणा भारत की घोषणा से पहले ही कर दी थी। लोकसभा में 16 घंटे और राज्यसभा में 9 घंटे चली बहस में युद्ध विराम का मुद्दा ही सबसे ज्यादा संजीदा था। अतः प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा में दिये गये अपने बयान से इसकी धुंध को छांटा और घोषणा की कि विश्व के किसी भी नेता के हस्तक्षेप की वजह से युद्ध विराम नहीं हुआ, बल्कि भारत ने पाकिस्तान की याचना को स्वीकार किया है।
विपक्ष के नेता श्री राहुल गांधी ने लोकसभा में अपने बयान से इस मुद्दे पर मोदी सरकार को घेर लिया था और कहा था कि यह युद्ध अकेले पाकिस्तान ने नहीं लड़ा, बल्कि चीन ने भी पाकिस्तान के कन्धे पर बन्दूक रखकर लड़ा है। कूटनीति में विपक्ष के सांसद होने की वजह से राहुल गांधी एेसा बयान दे सकते हैं परन्तु सरकार में बैठा कोई भी जिम्मेदार मन्त्री इसका समर्थन नहीं कर सकता क्योंकि सरकार देश की सुरक्षा और इसकी संप्रभुता की रक्षक होती है। इसे केन्द्र में रखकर ही कोई भी सरकार द्विपक्षीय मामलों में अपना नपा-तुला पक्ष रखती है। जाहिर है कि जब पाकिस्तान अपनी तरफ से भारत में आतंकवादियों की घुसपैठ कराता है तो सरकार ने उसी का नाम लेकर आॅपरेशन सिन्दूर आतंकवादियों और उनके आकाओं के खिलाफ चलाया था।
लोकतन्त्र में विपक्ष को यह खुली छूट होती है कि वह सरकार से तीखे से तीखे सवाल पूछे और हर कोशिश करे कि सरकार को बेनकाब किया जाये। हम यदि पिछले ताजा राजनैतिक इतिहास पर नजर डालें तो पायेंगे कि स्वयं भारतीय जनता पार्टी जब विपक्ष में थी तो वह क्या और कैसे पैंतरे कांग्रेस सरकारों को घेरने के लिए बदला करती थी। 1971 में जब तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने सोवियत संघ से 20 वर्षीय सैनिक सन्धि की थी तो भाजपा (जनसंघ) के नेता स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में दिल्ली के रामलीला मैदान में एक जनसभा करके इसकी प्रतियां जलाई थीं। एेसा ही 1972 में पाकिस्तान के साथ हुए शिमला समझौते के साथ भी किया गया था परन्तु जब 1998 व 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमन्त्री 2004 तक बने तो उन्होंने लोकसभा में ही स्वीकार किया कि विपक्ष में रहते हुए आपको बहुत छूट होती है मगर सरकार में आने पर पूरे देश की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। श्री वाजपेयी के इस बयान ने साफ कर दिया था कि विपक्षी दलों को अपनी राजनीति चलाने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है। आॅपरेशन सिन्दूर पर बहस का स्तर ठीक-ठाक ही कहा जायेगा। मगर यह कहना गलत नहीं होगा कि सरकार की ओर से इस सवाल का जवाब नहीं आया कि इस आॅपरेशन के दौरान भारत के कितने लड़ाकू विमान गिरे। यह सवाल सीधे हमारी सेनाओं के मनोबल से जुड़ा हुआ है और सेना की रणनीति का हिस्सा है।
प्रश्न यह है कि क्या हम आॅपरेशन सिन्दूर में सफल रहे? इसका उत्तर है कि शत-प्रतिशत रूप से हमारी विजय हुई है क्योंकि हमने केवल चार दिनों के भीतर ही पाकिस्तान के 11 हवाई सैनिक अड्डों को तहस-नहस कर डाला और आतंकवादियों के नौ ठिकानों को जमींदोज कर डाला। प्रधानमन्त्री ने जब लोकसभा में यह कहा कि पाकिस्तान की तरफ से एक हजार ड्रोनों और मिसाइलों से हमला किया गया था और भारतीय सेनाओं ने इन सभी को हवा में ही नष्ट करके पाकिस्तान के 11 हवाई सैनिक अड्डों को निशाना बनाते हुए पाकिस्तान की वायुसेना सुरक्षा प्रणाली को नाकारा बना दिया था तो प्रत्येक भारतवासी का सिर गर्व से ऊंचा उठ गया था। अतः विपक्ष की हताहत लड़ाकू विमानों की संख्या जानने की जिद राष्ट्रहितों के विपरीत है। इस बहस में पाकिस्तान के साथ 1960 में हुए सिन्धु नदी जल समझौते का भी मुद्दा उठा। प्रधानमन्त्री मोदी ने इस पर छायी हुई धुंध को भी साफ किया और कहा कि भारत ने यह समझौता इसलिए बरतरफ कर दिया है क्योंकि यह राष्ट्रहितों के खिलाफ है। इसमें तीन नदियों का ही पानी पाकिस्तान को 80 प्रतिशत देने का प्रावधान है। श्री मोदी ने भरी संसद में इसका खुलासा करते हुए जो तथ्य सामने रखे उससे कोई भी देशवासी आश्चर्य में पड़ सकता। मगर अब 21वीं सदी चल रही है और भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में आतंकवाद की वजह से गुणात्मक परिवर्तन आ चुका है तथा वैश्विक परिदृश्य भी पूरी तरह बदल चुका है। बदली हुई अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों की रोशनी में ही हमें अपने राष्ट्रीय सुरक्षित रखने हैं, वर्ना क्या मजाल है कि पाकिस्तान जैसा नामुराद और नाजायज मुल्क हमें आतंकवाद का शिकार बनाये। भारत जैसे लोकतान्त्रिक राष्ट्र को सभी अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए ही अपना रास्ता तय करना होगा। हमें इस मोर्चे पर दूरगामी परिणाम देने वाले कदम राष्ट्रीय हितों को संरक्षित करते हुए उठाने होंगे। जहां तक चीन व पाकिस्तान की गलबहियों का मुद्दा है तो यह काम आज ही नहीं हुआ है, बल्कि पिछले 25 सालों में दोनों देशों के बीच चल रहे घटनाक्रम का नतीजा है जैसा कि विदेश मन्त्री श्री एस. जयशंकर ने राज्यसभा में बताया।

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