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लोकतंत्र में विपक्ष

04:50 AM Aug 05, 2025 IST | Aditya Chopra

एक मजबूत लोकतंत्र के लिए एक मजबूत पक्ष और विपक्ष की जरूरत होती है क्योंकि जब-जब सत्ता की कार स्टेयरिंग के बिना ढलान पर चलने लगती है तो मजबूत विपक्ष ही उसे रोकने का काम करता है। संविधान निर्माताओं ने मूल अधिकार, संघीय ढांचा और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर विशेष रूप से ध्यान दिया और संविधान भी यह अपेक्षा करता है कि सभी अपनी सीमाओं में रहकर काम करें। आजादी के बाद से ही हर सरकारों में विपक्ष की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण रही है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। आज विपक्ष किस स्थिति में है यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है। इतिहास के पन्ने पलटिये और देखिए सरकार में विपक्ष कितना महत्वपूर्ण था और आज कहां है। 1947 के बाद से 2025 तक भारत ने एक से बढ़कर एक प्रधानमंत्री (शासक) देखे हैं जिन्होंने अपने शासनकाल में भारत के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

आप चाहे देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी को देख लें जिन्होंने भारत को शून्य से शिखर तक ले जाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया, या फिर चाहे पाकिस्तान को दो टुकड़ों में करने वाली और उन्हें घुटने टेकने पर मजबूर करने वाली श्रीमती इंदिरा गांधी जी हों, या जब पूरे विश्व की नजरें हम पर गड़ी थीं तब ऐसी स्थिति में पोखरण में परमाणु परीक्षण करने वाले अदम्य साहस महान प्रतिभा के धनी श्री अटल बिहारी वाजपेयी हों या फिर 1992 हो या 2008 की आर्थिक मंदी जिससे पूरा विश्व जूझ रहा था, ऐसे हालात में भारत की अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने वाले महान अर्थशास्त्री डा. मनमोहन सिंह हों या फिर कोई और। हर शासक का अपने दौर में महत्वपूर्ण योगदान रहा है और इन हर शासकों में एक समानता थी और वो थी विपक्ष की भूमिका। ये शासक विपक्ष की हर बात को सालीनता से सुनते थे, मशविरा करते, सवाल-जवाब करते और जो निर्णय देश और सबके हित में होता फैसला लेते थे। सरकार और विपक्ष एक-दूसरे के पूरक थे।

लोग आज भी डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और अटल बिहारी वाजपेयी को याद करते हैं। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में विपक्ष सरकार पर सवाल उठाता है कि उन्हें अपनी बात रखने का मौका नहीं ​दिया जाता। सरकार और विपक्ष में ऐसी समरसता नहीं है जो पहले कभी देखने को मिलती थी। अब सवाल यह है कि क्या विपक्ष कमजोर है और केवल भ्रम फैला रहा है। एक दौर था जब सरकार और विपक्ष दोनों में ऐसा सामंजस्य था भले दोनों की पार्टियां और विचार अलग थे लेकिन मंजिल एक थी। आप उस समय को देखिए जब देश में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पहली सरकार बनाई तो विपक्ष के उन नेताओं को मंत्रिमंडल सौंपा जो अच्छे जानकार थे। उनमें कानून के अच्छे जानकार और हमें संविधान जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथ देने बाले डॉ. भीमराव अंबेडकर जी को कानून मंत्री बनाया, फिर कश्मीर से परिचित पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी को कश्मीर मामले का मंत्री बनाया, इस समय सिर्फ एक दो नहीं पांच मंत्री बनाये जो गैर कांग्रेसी थे और इतना ही नहीं जब 1992 में पी.वी. नरसिम्हा राव जी की कांग्रेस की पूर्ण बहुमत वाली सरकार थी और हमें कश्मीर मामले में संयुक्त राष्ट्र संघ में अपनी बात रखनी थी तब नरसिंम्हा राव जी ने अपने दल से किसी को नहीं भेजा, बल्कि उस समय के विपक्ष के नेता अटल विहारी वाजपेयी को भारत का प्रतिनिधित्व सौंप दिया था और हम विजय होकर लाेटे थे। ये था हमारा भारत, ये थी हमारी सरकारें और ऐसा था हमारा विपक्ष।

यह भी वास्तविकता है कि नरेन्द्र मोदी शासनकाल में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल अपनी भूमिका ठीक ढंग से नहीं निभा पाए। लोकसभा चुनाव लगातार हार जाने और कई राज्यों में पराजय का मुंह देखने के बाद विपक्ष चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों, कभी ईवीएम, मतदाता सू​चियों में गड़बड़ी, चुनावी डाटा देने में विलंब आदि के मुद्दे उठा रहा है। बिहार में एसआईआर, पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर विपक्ष ने एकजुटता दिखाई है और लगातार संसद को ठप्प किया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 7 अगस्त को अपने आवास पर विपक्षी इंडिया गठबंधन के नेताओं की बैठक बुलाई है ​जिसमें अहम बिन्दुओं पर विचार होगा।

राहुल गांधी ने हाल ही में आरोप लगाया था कि 2024 के लोकसभा चुनावों में करीब 70-80 सीटों पर धांधली हुई है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री बहुत मामूली बहुमत से जीते हैं और यदि 15 सीटाें भी सही तरीके से वोटिंग हुई होती तो वो प्रधानमंत्री नहीं बन पाते। इसके साथ ही बैठक में कई मुद्दे उठाए जा सकते हैं। जिसमें बिहार में चल रही विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया, महाराष्ट्र में फर्जी वोटर जोड़ने का आरोप, ऑपरेशन सिंदूर, भारत-अमेरिका व्यापार समझौता और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से संभावित टैरिफ (शुल्क) धमकी शामिल है। विपक्ष के नेता लगातार ऐसी बयानबाजी कर रहे हैं जो न केवल हास्यस्पद है बल्कि इनसे उनकी छवि अपरिपक्व नेता की बनती जा रही है। दूसरों को लपेटने के चक्कर में वे खुद ही अपने बुने जाल में फंस रहे हैं।

लोकतंत्र का अर्थ लोगों का शासन होता है। यह समझना तो आसान है कि लोकतंत्र में मजबूत ​विपक्ष कितना जरूरी है। विपक्षी गठबंधन मजबूत हो तो यह भी लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत होते हैं लेकिन अगर विपक्ष मजबूत न हो तो क्या होता है। यह बहुत बड़ा मसला है। केवल संविधान की प्रतियां लहराकर संविधान खतरे में है का ढिंढोरा पीटना फायदेमंद नहीं होगा जब तक विपक्ष ठोस नीतियां लेकर सामने नहीं आता। केवल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विरोध करने से कुछ नहीं होगा। जब तक विपक्ष खुद को सत्ता के ठोस विकल्प के रूप में स्वयं को पेश नहीं करता। कभी राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि विपक्ष उस दर्पण की तरह साफ और उज्ज्वल होता है जो हमें अपनी नाकामियां दिखाता है। बेहतर होगा विपक्ष अपना दर्पण साफ करे। अनर्गल आरोपों से बचे। संसद में सकारात्मक बहस करे और स्वयं को गतिशील और जवाबदेह बनाए और सियासत के नैतिक मूल्यों की रक्षा करे।

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