बॉम्बे हाईकोर्ट : निषेधाज्ञा के अभाव में जैविक पिता बच्चे का 'अपहर्ता' नहीं
बॉम्बे हाईकोर्ट (नागपुर पीठ) ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि एक व्यक्ति, जिसने अपने नाबालिग बच्चे को अलग रह रही अपनी पत्नी से छीन लिया है, उस पर सक्षम अदालत में निषेधाज्ञा के अभाव में अपहरण का मामला दर्ज नहीं किया जा सकता। हाल के एक आदेश में न्यायमूर्ति विनय जोशी और न्यायमूर्ति वाल्मीकि एसए मेनेजेस ने नागपुर के गाडगे नगर पुलिस स्टेशन द्वारा 35 वर्षीय आशीष ए. मुले नामक व्यक्ति के खिलाफ अपने तीन वर्षीय बेटे का कथित तौर पर अपहरण करने के आरोप में दर्ज मामले को रद्द कर दिया। वह इस साल 29 मार्च को अलग हुई पत्नी मनीषा ए. मुले के पास से अपने बेटे को उठा ले गया।
नाबालिग बच्चे को उसकी मां से छीनने के कारण मुकदमा
न्यायाधीशों ने कहा कि सक्षम अदालत द्वारा किसी भी निषेधाज्ञा के अभाव में आवेदक-पिता पर केवल अपने ही नाबालिग बच्चे को उसकी मां से छीनने के कारण मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। न्यायाधीशों ने कहा कि नाबालिग बच्चे का स्वाभाविक पिता भी मां के साथ एक वैध अभिभावक है और इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि उसने अपहरण का अपराध किया है, जैसा कि आरोप लगाया गया है। अदालत ने कहा, आदमी की कार्रवाई का वास्तविक प्रभाव यह हुआ कि बच्चे को मां की वैध संरक्षकता से छीनकर पिता की किसी अन्य वैध संरक्षकता में सौंप दिया गया।
हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम
न्यायमूर्ति जोशी और न्यायमूर्ति मेनेजेस ने यहां हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 का उल्लेख किया जो एक बच्चे के स्वाभाविक अभिभावकों को परिभाषित करता है और कहा कि यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि वह नाबालिग (लड़के) का स्वाभाविक संरक्षक है। मुले दंपति के मामले में आवेदक-पिता और बच्चे की मां दोनों बच्चे के स्वाभाविक और वैध अभिभावक हैं, इसलिए मुले पर अपहरण का आरोप नहीं लगाया जा सकता, भले ही वह बच्चे को मां से छीन ले। न्यायाधीशों ने फैसला सुनाया कि आवेदक मुले के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता, इस तरह के अभियोजन को जारी रखना कानून का दुरुपयोग होगा। उन्होंने उस व्यक्ति के खिलाफ दायर एफआईआर को रद्द कर दिया। मुले का प्रतिनिधित्व वकील पवन दहत और बी.बी. मून ने किया। वकील वी.एन. मेट ने मनीषा ए. मुले की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक एस.एम. घोडेस्वर ने मामले में महाराष्ट्र राज्य का प्रतिनिधित्व किया