हमारा दोस्त और हमसफर
जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अप्रत्याशित नीतियों ने पूरी दुनिया को अस्थिर कर दिया है, ऐसे समय में सभी देशों के लिए अपने संबंधों को नया रूप देना और मौजूदा रिश्तों को और मजबूत करना आवश्यक हो गया है। साथ ही, नए गठजोड़ बनाना भी समय की मांग है। यही कारण है कि हर देश अपने कूटनीतिक “रीसेट बटन” को दबा रहा है।
भारत भी इससे अलग नहीं है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया, तो वे भी यही कर रहे थे और यह रणनीति सफल साबित हुई, क्योंकि इससे ट्रंप को अपना रुख बदलने पर मजबूर होना पड़ा।
पिछले वर्ष सितंबर में प्रधानमंत्री मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी नेता शी चिनफिंग के बीच बनी निकटता ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेष ध्यान आकर्षित किया था। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए ट्रंप ने टिप्पणी की थी, “लगता है हमने भारत और रूस को चीन की गहराइयों में खो दिया है।”
हालांकि, ट्रंप ने भी जल्द ही चीन के साथ संबंध सुधारने की दिशा में कदम बढ़ाया, जिस पर अमेरिका ने पहले भारी शुल्क लगाए थे। हाल में दक्षिण कोरिया में हुई मुलाकात के दौरान दोनों देशों के नेताओं के बीच हाथ मिलाना, मुस्कानें और धीमी बातचीत देखने को मिलीं, इस बैठक को ट्रंप ने रिपोर्टों के अनुसार “12 में से 12 अंक” वाला बताया था।
इसी पृष्ठभूमि में भारत को भी ट्रंप की ही भाषा में कहें तो “12 में से 12 अंक” वाले दोस्ताना रिश्तों की जरूरत है। इसी संदर्भ में भारत और मोरक्को के बीच बढ़ते संबंध महत्त्वपूर्ण हैं।
भारत और मोरक्को की साझेदारी रक्षा और सैन्य सहयोग, खाद्य और स्वास्थ्य सुरक्षा, ऊर्जा रूपांतरण और स्थायित्व जैसे कई अहम क्षेत्रों तक फैली हुई है। दोनों देश नवीकरणीय ऊर्जा को प्राथमिकता देते हैं -मोरक्को अफ्रीका में हरित ऊर्जा का अग्रणी बनना चाहता है, जबकि भारत वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिरता की छाप को मजबूत करने के प्रयास में है।
इसके अलावा, दोनों देश संयुक्त सैन्य अभ्यास और खुफिया जानकारी साझा करने जैसे प्रयासों के माध्यम से क्षेत्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ कर रहे हैं तथा आतंकवाद जैसी साझा चुनौतियों से निपटने के लिए सहयोग बढ़ा रहे हैं।
इसलिए जब भारत में मोरक्को के राजदूत मोहम्मद मलिकी भारत-मोरक्को द्विपक्षीय संबंधों को लेकर उत्साहित नजर आते हैं, तो यह स्वाभाविक है। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा, “भारत हमारा रणनीतिक साझेदार है, और मेरा मानना है कि खाद्य एवं स्वास्थ्य सुरक्षा ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें हम बहुत निकटता से मिलकर कार्य कर सकते हैं। हमारे बीच संबंध वास्तव में उससे कहीं अधिक गहरे हैं, जितना लोग समझते हैं। इसके अलावा, आतंकवाद-रोधी सहयोग, समुद्री सुरक्षा और साइबर सुरक्षा जैसे संवेदनशील विषयों पर भी हमारे बीच मजबूत साझेदारी है। इन सभी क्षेत्रों में दोनों देशों की ओर से दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई देती है, और मुझे विश्वास है कि हम रक्षा और औषधि उद्योग जैसे क्षेत्रों में भी उत्कृष्ट प्रगति कर सकते हैं।”
कई राजनयिकों के विपरीत, मोहम्मद मलिकी अपने शब्दों को नापतोल कर नहीं बोलते, वे बेबाक, स्पष्ट और जीवन के हर पहलू का पूरे उत्साह से आनंद लेने वाले व्यक्ति हैं। राजनयिक होने के साथ-साथ लेखक भी, मलिकी एक बहुआयामी व्यक्तित्व हैं, उन गिने-चुने लोगों में से एक, जिन्होंने शक्ति और जीवन के दबावों के बीच संतुलन साधने की कला विकसित की है, चाहे वह उनके राजनयिक जीवन से पहले हो या बाद में।
भारत से इतर, उनकी बातचीत कई विषयों को छूती है| कराची में हुए बम विस्फोट से लेकर राजनीतिज्ञ शशि थरूर और उद्योगपति रतन टाटा तक, जिन्हें वे “कई भारतीयों के लिए देवता समान” मानते हैं। वे अपने छात्र जीवन की याद भी साझा करते हैं, जब उन्होंने “आइसक्रीम बेचकर पैसे कमाए”।
भारत में रहकर उन्होंने एक दिलचस्प बात सीखी - “भारतीयों को खाने पर बुलाइए, लेकिन कभी मंगलवार को नहीं।” अपने व्यक्तित्व को आकार देने वाले वर्षों में उन पर सबसे बड़ा प्रभाव उनके पिता का रहा, जिन्हें वे “अपने समय से आगे का व्यक्ति” बताते हैं। जहां उनकी मां सामान्य माताओं की तरह संरक्षण देने वाली थीं, वहीं पिता ने उन्हें अनुशासन सिखाया - “कभी-कभी ज्यादा कठोर, लेकिन अब पीछे मुड़कर देखता हूं तो वही सबसे सही तरीका था,” वे कहते हैं। पैसे को लेकर मलिकी का दृष्टिकोण भी अनोखा है , “मैं यह नहीं पूछता कि हमारे पास खर्च करने के लिए पैसा है या नहीं। अगर मुझे किसी कार्य की उपयोगिता पर विश्वास है, तो मैं पहले निर्णय लेता हूं और फिर उसके लिए जरूरी धन की व्यवस्था करता हूं। आम तौर पर लोग पहले बजट देखते हैं, फिर काम शुरू करते हैं, लेकिन मेरा तरीका उलटा है। पहले काम शुरू कीजिए, पैसा अपने आप निकल आता है। यही कारण है कि अंततः आप अपेक्षा से अधिक कार्य कर पाते हैं, क्योंकि सीमाओं से बंधे नहीं होते।” यह सिद्धांत उन्होंने राजदूत रहते हुए भी अपनाया और छात्र जीवन में भी।
“विश्वविद्यालय के दूसरे वर्ष के बाद मैंने माता-पिता से एक पैसा भी नहीं लिया,” वे बताते हैं। “गर्मियों की छुट्टियों में मैं फ्रांस जाता था, समुद्र तटों का आनंद लेता और साथ में आइसक्रीम बेचता था। आइसक्रीम खुद बनाता था और हर बार अच्छी कमाई करके लौटता था।” वे हंसते हुए जोड़ते हैं, “शुरूआत में मैंने पिता से उधार लिया था, लेकिन बाद में उन्हें उसकी दुगुनी-तिगुनी रकम लौटा दी।”
उनकी सफलता का रहस्य क्या था? “जब बाकी विक्रेता दोपहर में आराम करने चले जाते थे, मैं धूप में बेचने निकल जाता था। मैं न तो ज्यादा चालाक था, न ही होशियार। बस मोरक्को से आया था और सूरज की आदत थी। दोपहर के एक से तीन बजे के बीच बाकी सब चले जाते और मैं उस वक्त दोगुनी बिक्री कर लेता। मैंने समुद्र तट पर बच्चों से भी दोस्ती कर ली थी। वे अपने माता-पिता से कहते कि हम मोहम्मद से ही आइसक्रीम लेंगे। इस तरह मुझे अक्सर अतिरिक्त इनाम भी मिलते।”
उन्होंने आइसक्रीम बनाना भी एक रेसिपी बुक से सीखा, जिसने उनकी कमाई और बढ़ा दी। “जब मैं मोरक्को लौटता था, तब मेरे पास इतना पैसा होता कि एक नहीं, कभी-कभी दो साल तक भी आराम से गुजारा हो जाता,” वे मुस्कुराते हुए याद करते हैं।
गंभीरता से बात करें तो मलिकी दोस्ती में गहरा विश्वास रखते हैं। वे कहते हैं, “मैं हर दिन इसे जीता हूं, हर दिन इसे देखता हूं, और अपनी मित्रताओं को सहेजता और महत्व देता हूं।”
लेखक होने के नाते दर्शनशास्त्र उनके जीवन, समय और कार्यों में गहराई से रचा-बसा है। “मैं कौन हूं? मैं कहां से आया हूं? पीड़ा क्या है?” ये वे प्रश्न हैं, जिनका उत्तर उन्होंने अपनी आगामी पुस्तक में खोजने का प्रयास किया है। वे बताते हैं, “यह एक परंपरागत आत्मकथा नहीं, बल्कि एक गैर-परंपरावादी आत्मकथा है, जिसमें उन घटनाओं का उल्लेख है जिन्होंने मुझे गहराई से प्रभावित किया। इनमें सीखें भी थीं, गलतियां भी, और कुछ ऐसे क्षण जो जीवन बदल देने वाले साबित हुए।” हालांकि, वे पुस्तक के प्रकाशन से पहले अधिक विवरण साझा करने से बचते हैं।
फिर भी वे कुछ अनुभवों का जिक्र करते हैं , “घर में चोरी”, “कराची में बम धमाका जिससे मैं बाल-बाल बचा”, और “एक भूकंप” का सामना। वे बताते हैं, “कैमरून में चोरी मेरी शादी से कुछ महीने पहले हुई थी। उस समय मेरे पास अच्छी-खासी रकम और खरीदी हुई ज्वेलरी थी। कराची में बम धमाका उस समय हुआ जब अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश वहां आए हुए थे, और मैं उसी इलाके के एक होटल में ठहरा था।” वह कहते हैं, “वहीं मैंने आतंकवाद को करीब से देखा। आम तौर पर हमें लगता है कि ऐसा दूसरों के साथ होता है, हमारे साथ नहीं। हम आतंकवाद के बारे में पढ़ते हैं, फिल्मों में देखते हैं, लेकिन खुद को उससे अलग मानते हैं। पर जब आप खुद उसके बीच में होते हैं, तब बहुत से सवाल उठते हैं।”
यहीं वे रुक जाते हैं और आगे की बातों पर मुस्कुरा कर कहते हैं, “बाकी सब जानने के लिए आपको मेरी किताब पढ़नी होगी।” अंत में वे जोड़ते हैं, “जब आप किसी आपदा से बच जाते हैं, तब समझ में आता है कि ईश्वर ने आपको अतिरिक्त समय दिया है और फिर सवाल उठता है कि उस समय का उपयोग सबसे बेहतर तरीके से कैसे किया जाए।”
उनकी भारत यात्रा पहली बार 1990 के दशक में हुई थी, जब उनका मुख्य उद्देश्य आगरा में ताजमहल देखना था। तब से बहुत कुछ बदल चुका है- ट्रैफिक भी। वे मुस्कुराते हुए कहते हैं, “लेकिन मैंने हमेशा यहां के लोगों की संतुष्टि में आकर्षण पाया है, तब भी और अब भी। यह उस गरीबी के बावजूद है जो आंखों से दिखती है। मंदिरों में सोना था, पर कोई उसे छूता नहीं था। मुझे हमेशा भारत की इमारतों की भव्यता (जैसे जामा मस्जिद) ने भी मोहित किया है। और जो बात तब थी, वह अब भी है यहां के लोगों की आत्मीयता।”
कमियों की बात करें तो मलिकी मानते हैं कि स्वच्छता की कमी और अधूरे पड़े बुनियादी ढांचे के प्रोजेक्ट्स जैसी बातें सुधारी जा सकती हैं।
रतन टाटा और शशि थरूर दोनों को वे अपने मित्र बताते हैं। “रतन टाटा से मेरा रिश्ता किसी व्यावसायिक कारण से नहीं, बल्कि पूरी तरह मानवीय मूल्यों पर आधारित था। मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं कि उन्होंने मुझे अपना मित्र कहा,” वे कहते हैं।
थरूर से जुड़ी एक मजेदार “मंगलवार डिनर” कहानी वे साझा करते हैं “मैंने शशि थरूर और कुछ अन्य मित्रों को डिनर पर बुलाया। वह मंगलवार का दिन था, और मुझे नहीं पता था कि भारत में मंगलवार को लोगों को बुलाना मुश्किल होता है। आठ लोगों की मेज पर छह-सात तरह के मेन्यू थे, कोई बिना लहसुन का, कोई बिना प्याज का, कोई शाकाहारी, कोई अंडा नहीं खाता। आखिर में मैंने हाथ खड़े कर दिए,” वे हंसते हुए याद करते हैं।
बड़ी तस्वीर की बात करें तो मलिकी कहते हैं कि उनका सफर अब तक “काफी सहज” रहा है और कोई बड़ी बाधा नहीं आई “टच वुड,” वे कहते हैं, और पास रखी महोगनी की साइड-टेबल पर जोर से दस्तक देते हैं।

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