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कश्मीरी पंडितों का दर्द

जम्मू-कश्मीर में परिसीमन का कार्य पूरा हो चुका है और राज्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू होने का मार्ग प्रशस्त हो चुका है। अब 2018 के बाद राज्य में सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली के साथ अब इसे राज्य का दर्जा भी बहाल होने की उम्मीदें भी कायम हो गई हैं।

03:28 AM May 14, 2022 IST | Aditya Chopra

जम्मू-कश्मीर में परिसीमन का कार्य पूरा हो चुका है और राज्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू होने का मार्ग प्रशस्त हो चुका है। अब 2018 के बाद राज्य में सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली के साथ अब इसे राज्य का दर्जा भी बहाल होने की उम्मीदें भी कायम हो गई हैं।

जम्मू-कश्मीर में परिसीमन का कार्य पूरा हो चुका है और राज्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू होने का मार्ग प्रशस्त हो चुका है। अब 2018 के बाद राज्य में सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली के साथ अब इसे राज्य का दर्जा भी बहाल होने की उम्मीदें भी कायम हो गई हैं। संभवतः इस साल के अंत में हिमाचल व गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराए जा सकते हैं लेकिन सेना और सुरक्षाबलों के तमाम प्रयासों के बावजूद राज्य में सुरक्षा चुनौतियां बनी हुई हैं। आतंकवादी और अलगाववादी नहीं चाहते कि जम्मू-कश्मीर का आवाम राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़े इसलिए वह राज्य में अशांति फैलाने की साजिशें रचते रहते हैं। आतंकवादियों ने बड़गाम में तहसीलदार कार्यालय में घुसकर कश्मीरी पंडित कर्मचारी राहुल भट्ट की हत्या कर दी। उससे जम्मू-कश्मीर फिर उबल उठा है। बड़गाम से श्रीनगर तक लोगों ने जमकर प्रदर्शन किए। कश्मीरी पंडित कर्मचारियों ने बिना सुरक्षा के काम पर जाने से इंकार कर दिया। इस हत्या की जिम्मेदारी कश्मीर टाइगर नाम के कम चर्चित आतंकी संगठन ने लेते हुए भविष्य में भी कश्मीरी हिंदुओं को निशाना बनाने की धमकी दी है। राहुल पंडित अपने परिवार में इकलौता कमाने वाला शख्स था। उन्हें प्रवासी कश्मीरी पंडित समुदाय के लिए प्रधानमंत्री के विशेष पैकेज के तहत 2010 में राजस्व विभाग में नियुक्त किया गया था। 
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जम्मू-कश्मीर में प्रवासी कामगारों व स्थानीय अल्पसंख्यकों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है ता​कि दहशत का माहौल पैदा हो और घाटी में फिर साम्प्रदायिक जहर फैल जाए। आतंकवादी टारगेट किलिंग कर रहे हैं। आतंकवादियों ने शुक्रवार को तड़के पुलिस कांस्टेबल रियाज अहमद ठाकोर को पुलवामा में उसके घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी। इस तरह पिछले 12 घंटों में कश्मीर घाटी में आतंकवादियों द्वारा की गई यह दूसरी साफ्ट टारगेट किलिंग है। पिछले आठ महीनों में कई कश्मीरी पंडितों और प्रवासियों को टारगेट किलिंग के मामले सामने आ चुके हैं। अनुच्छेद 370 हटने के बाद 5 अगस्त 2019 से अल्पसंख्यक हिंदुओं तथा गैर कश्मीरियों पर हमले की घटनाएं  बढ़ गई हैं। लगभग तीन साल में आतंकियों ने कम से कम 14 गैर मुस्लिमों, गैरकश्मीरियों तथा कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी है। जिन कश्मीरी पंडितों की हत्या इस अवधि में की गई है उनमें शोपियां के दवा कारोबारी सोनू कुमार, मशहूर कैमिस्ट कश्मीरी पंडित एम.एल. बिंदु त​था कश्मीरी पंडित सरपंच अजय पंडित भी शा​मिल हैं। आतंकवादियों ने पंजाब, उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासी मजदूरों को भी अपनी गोलियों का ​निशाना बनाया। जब भी हम यह उम्मीद करते हैं कि कश्मीर में आतंकवाद खत्म होने की कगार पर है तभी आतंकवादी वारदातें कर अपनी मौजूदगी का संकेत दे देते हैं। पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी आईएसआई और अन्य आतंकी संगठन नहीं चाहते कि कश्मीर में अमन चैन स्थापित हो। कश्मीर में अशांति फैलाने के लिए आईएसआई की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। अब आईएसआई ने पंजाब को भी टारगेट करना शुरू कर दिया है। पंजाब की सीमाएं पाकिस्तान से सटी हुई हैं इसलिए पंजाब सुरक्षा को लेकर काफी संवेदनशील राज्य माना जाता है। पंजाब को लेकर भी चिंताएं इस​लिए बढ़ गई हैं कि पिछले कुछ दिनों में वहां पुराने अलगाववादी संगठन सक्रिय नजर आ रहे हैं। पंजाब के सीमांत इलाकों में ड्रोन के ​जरिए हथियार और ड्रग्स भेजे जा रहे हैं। मोहाली रॉकेट हमले में भी साजिशों के तार पाकिस्तान से जुड़ रहे हैं। सुरक्षाबलों के लिए यह चिंता का विषय है कि जिन अलगाववादी संगठनों को निष्क्रिय मान लिया था वो फिर से सक्रिय हो रहे हैं। एक तरफ कश्मीर और पंजाब को लेकर सीमा पार की सा​जिशों को विफल किया जा रहा है वहीं आतंकवादी संगठनों के स्लीपर सैल से निपटना सुरक्षाबलों के लिए बड़ी चुनौती है। स्लीपर सैल के कार्यकर्ता समाज में रहकर काम करते हैं और किसी को यह भनक भी नहीं लगने देते कि उनके तार किससे जुड़े हैं ऐसी ​स्थिति में सुरक्षाबलों को नई रणनीति बनानी होगी। 30 जून से अमरनाथ यात्रा भी शुरू होने वाली है और आतंकवादी ताकतें अमरनाथ यात्रा को भी अपना निशाना बना सकती हैं। कश्मीरी ​पंडितों में इस बात को लेकर आक्रोश है ​कि उनकी सुरक्षा के कोई ठोस प्रबंध नहीं ​किए जा रहे। राहुल भट्ट का परिवार भी 1990 के दशक में घाटी छोड़ गया था। राहुल भट्ट की हत्या ने जमीन पर ​स्थिति को तनावपूर्ण बना दिया है। परिवार कह रहा है कि उन्होंने अपने बेटे को वापस घाटी भेजकर गलती की। आतंकवादी ताकतें कतई नहीं चाहती कि कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी हो।
अमित पांडे की पंक्तियों में कश्मीरी पंडितों का दर्द झलकता है-
मुझसे मेरा दर्द न पूछो मैं कश्मीरी पंडित हूं।
अपने घर में मारा गया टुकड़ों-टुकड़ों में खंडित हूं।
बेदर्द हवाओं ने देखा घाटी में धोखा खाया है।
खामोश खड़ी दुनिया अपनों की लाशें पाया हूं।
शोर वक्त में जिंदा है चीत्कारों से मैं मंडित हूं।
मुझसे मेरा दर्द न पूछो मैं कश्मीरी पंडित हूं।
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