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पाक आतंकवाद और कांग्रेस

04:55 AM Oct 10, 2025 IST | Aditya Chopra
पाक आतंकवाद और कांग्रेस
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा
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प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 26 नवम्बर 2008 के मुम्बई आतंकवादी हमले की याद दिलाकर पाकिस्तान की भारत के खिलाफ की गई कारस्तानियों की फैहरिस्त खोल दी है। अपने जन्म से लेकर आज तक पाकिस्तान का भारत के प्रति रुख दुश्मनी भरा ही रहा है जबकि भारत का नजरिया अपने सभी पड़ोसियों के प्रति प्रेम भाव का रहा है। वर्ष 2008 में तो पाकिस्तान ने सारी सीमाओं को लांघ दिया था और मुम्बई शहर में खुलेआम कत्लोगारत का बाजार गर्म कर दिया था, जिसमें 167 देशी- विदेशी नागरिक मारे गये थे। इस घटना से केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्व सकते में आ गया था क्योंकि जिन लोगों ने इस नृशंस हत्याकांड को अंजाम दिया था वे पाकिस्तान से ही जल मार्ग से कराची से मुम्बई पहुंचे थे।
श्री मोदी का कहना है कि इस जघन्य कांड का विरोध तब भारत ने सैनिक जवाब देकर नहीं किया जबकि इसकी वक्ती जरूरत थी। बेशक पाकिस्तान की इस कार्रवाई के जवाब में भारत मुंहतोड़ सैनिक कार्रवाई वैसी ही कर सकता था जैसी कि श्री मोदी ने 2014 में सत्ता संभालने के बाद हुई पाक की आतंकवादी गतिविधियों के खिलाफ की और पाकिस्तान के घर में घुस कर उसे कई बार सबक सिखाया। 2008 नवम्बर महीने में जब पाकिस्तानी आतंकवादियों ने मुम्बई में यह जघन्य कांड किया तो इसके विदेश मन्त्री महमूद कुरैशी भारत की चार दिन की राजकीय यात्रा पर आये हुए थे। उनकी भारत की सरजमीं पर मौजूदगी के दौरान ही मुम्बई में यह घटना घटी थी। तब भारत के विदेश मन्त्री भारत रत्न स्व. प्रणव मुखर्जी थे। श्री मुखर्जी ने महमूद कुरैशी को बैरंग इस्लामाबाद वापस लौटा दिया था। कुरैशी ने तब कहा था कि इस काम में पाकिस्तान का सीधा हाथ नहीं है, बल्कि कुछ गैर सरकारी लोगों (नान स्टेट एक्टर) का यह काम है। भारत ने पाकिस्तान के इस कथन को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया था और कहा था कि उसकी फौज के साये में पाकिस्तान में आतंकवादी फलफूल रहे हैं जो समय–समय पर भारत में आतंकवाद फैलाते रहते हैं और निरीह नागरिकों की जान लेते रहते हैं। सवाल यह है कि क्या उस समय 2008 में हुकूमत पर काबिज मनमोहन सरकार मुम्बई हमले का सै​िनक कार्रवाई करके जवाब देना चाहती थी? तो इसका जवाब हमें ‘हां’ में मिलेगा परन्तु कांग्रेस पार्टी के भीतर ही कुछ तत्व एेसे थे जो पाकिस्तान के खिलाफ सैनिक कार्रवाई नहीं चाहते थे। उस समय के अखबारों में इस तरह की खबरें भी छपी थीं कि तत्कालीन प्रधानमन्त्री डा. मनमोहन सिंह सैनिक कार्रवाई के प्रबल पक्षधर थे मगर उन्हें एेसा करने से रोक दिया गया था और विदेश मन्त्री प्रणव मुखर्जी पर यह जिम्मेदारी डाल दी गई थी कि वह कूटनीतिक मोर्चे पर यह लड़ाई लड़ें। स्व. मुखर्जी ने तब इस मोर्चे पर एेसा समां बांध दिया था कि पाकिस्तान के एक आतंकवादी देश घोषित होने की नौबत आ गई थी। इस्लामी दुनिया के देशों से लेकर राष्ट्रसंघ तक में पाकिस्तान अकेला पड़ गया था। तब श्री मुखर्जी ने अपने कनिष्ठ सहयोगी विदेश राज्य मन्त्री श्री ई. अहमद को राष्ट्रसंघ में भेजकर यह एेलान कराया था कि पाकिस्तान में आतंकवादी संगठन अपना नाम बदल कर दहशतगर्दी में लगे रहना चाहते हैं। स्व. ई. अहमद केरल मुस्लिम लीग के सदस्य थे जिसका तब कांग्रेस से केन्द्र में गठबन्धन था। श्री मुखर्जी ने अपना काम पूरी निष्ठा के साथ किया था।
मगर कांग्रेस नेता श्री पी. चिन्दम्बरम ने पिछले दिनों एक साक्षात्कार में कहा कि उस समय विदेश मन्त्रालय की सलाह पर पाकिस्तान पर सैनिक कार्रवाई को टाल दिया गया जो पहली नजर में सही नहीं लगता है। सैनिक कार्रवाई न करने का फैसला विदेश मन्त्रालय का नहीं था क्योंकि प्रधानमन्त्री खुद चाहते थे कि पाकिस्तान को सबक सिखाया जाये। जाहिर है कि कार्रवाई न करने का फैसला कांग्रेस में ही कहीं बहुत ऊपर से लिया गया था। तब इस प्रकार की खबरें भी छपी थीं कि यदि पाकिस्तान को सैनिक जवाब दिया गया तो प्रधानमन्त्री डा. मनमोहन सिंह की लोकप्रियता बहुत बढ़ जायेगी। मगर श्री चिदम्बरम ने सारी बात विदेश मन्त्रालय पर ही डाल दी। तब से लेकर आज तक कोई इस सच को नहीं जानता कि 26 नवम्बर 2008 के बाद कांग्रेस के आला नेताओं के बीच क्या हुआ था? हां इतना जरूर हुआ था कि तत्कालीन गृहमन्त्री श्री शिवराज पाटील का इस्तीफा ले लिया गया था और उनके स्थान पर श्री पी. चिदम्बरम को गृह मन्त्रालय सौंप दिया गया था तथा श्री मुखर्जी को वित्त मन्त्री बना दिया गया था। इसके बाद 2009 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस पार्टी को अच्छी विजय मिली और इसके 206 सांसद जीते। इन चुनावों में अमेरिका के साथ हुआ परमाणु समझौता एक मुद्दा बना जिसके असली कर्णधार श्री मुखर्जी ही थे। मगर यह सवाल अपनी जगह खड़ा रहा कि पाकिस्तान को 26 नवम्बर की घटना का मुंहतोड़ सैनिक जवाब क्यों नहीं दिया गया। जबकि विदेश मन्त्री रहते हुए श्री मुखर्जी ने ये सबूत पूरी दुनिया को दे ​िदये थे कि पाकिस्तान की सरकार और उसकी फौज पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकवादी शिविर चला रहे हैं और वहां दहशतगर्दों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। श्री चिदम्बरम का यह कहना कि अमेरिका और कुछ अन्य विश्व शक्तियों के कहने पर भारत ने सैनिक कार्रवाई नहीं की, भारत की संप्रभुता पर समझौता करने की भाषा मानी जायेगी।

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