हमास की गोद में बैठे हैं पाक आतंकी
पहलगाम के बैसरण घाटी में 26 निर्दोष व मासूम लोगों को मौत के घाट उतारने के…
‘जानो यह बुद्ध की धरती है,
यहां का जर्रा-जर्रा अमन पुकारता है
पलटवार भी यह जानती है, जब कोई बिना वजह इसे ललकारता है’
पहलगाम के बैसरण घाटी में 26 निर्दोष व मासूम लोगों को मौत के घाट उतारने के बाद पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी इसके ऊपर अवस्थित जंगलों व पहाड़ों में कैसे एक पल में गुम हो गए, इस गुत्थी को हमारे सुरक्षा बलों ने सुलझा लिया है। इस घटना के तुरंत बाद से ही हमारे सुरक्षा बल बैसरण घाटी के ऊपर अवस्थित जंगलों का चप्पा-चप्पा छान रहे थे, सूत्र बताते हैं कि जहां उन्हें 70 से ज्यादा आतंकी ठिकानों के ठौर मिले हैं। ये ठिकाने कुछ तो प्राकृतिक गुफाओं में बनाए गए थे और कुछ ठिकाने बड़ी सफाई से तैयार किए गए हैं। इन ठिकानों के निर्माण के तरीकों व इसके लोकेशंस को देख कर इतना तो पता चल ही जाता है कि इन्हें तैयार करने में यकीनन सैन्य विशेषज्ञों, स्थानीय लोगों और हमास जैसे बड़े आतंकी संगठन के अनुभव व नेटवर्क का इस्तेमाल हुआ होगा। सो, इस जघन्य वारदात को अंजाम देने के बाद इन तीनों आतंकवादियों को वहां से सुरक्षित निकालने का भी पूरा इंतजाम किया गया था।
भारत ने जवाबी कार्यवाही को सफलतापूर्वक अंजाम देते पाक अधिकृत कश्मीर में अवस्थित जिन आतंकी ठिकानों को ’ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पूरी तरह नेस्तनाबूद कर दिया था, उसमें जैश-ए-मोहम्मद का निजी संचार नेटवर्क भी शामिल था। मिली जानकारियों के अनुसार वहां के कोहदा कलां गांव के एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से जैश-ए-मोहम्मद अपना यह गुप्त संचार नेटवर्क संचालित करता था, जिसमें हाई फ्रीक्वेंसी तरंगों का इस्तेमाल किया जाता था। विशेषज्ञों को लगता है यह पूरा मॉडल ठीक वैसा ही है जैसा अमूमन हमास भी अपने विभिन्न ऑपरेशंस में इस्तेमाल करता है।
संघ प्रमुख भागवत की मोदी से पेशकश
’ऑपरेशन सिंदूर’ से दुश्मनों के हौसले पस्त कर देने वाली भारतीय सेना के जांबाज इरादों को सलामी देने के लिए संघ भी सामने आया है। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि पिछले दिनों संघ प्रमुख ने पीएम मोदी से बात कर उनसे एक पेज का प्रस्ताव शेयर किया है। कहते हैं इस प्रस्ताव में मूलतः 8 बिंदुओं पर संघ नेतृत्व का फोकस है। संघ ने अपनी ओर से पीएम मोदी से पेशकश की है कि ‘संघ के देशभर में फैले स्वयंसेवक खुलेमन से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने को तैयार हैं।’
अपने प्रस्ताव के 8 बिंदुओं में क्रमवार रूप से संघ नेतृत्व ने साफ किया है कि कैसे इस संक्रमण काल में संघ के स्वयंसेवक देश और सरकार के बीच एक समन्वय सेतु का काम कर सकते हैं। संघ स्वयंसेवक सीमावर्ती इलाकों में जाकर लोगों को ‘सेल्फ डिफेंस’ की ट्रेनिंग दे सकते हैं, युद्ध के हालात में उन्हें सुरक्षित रहने का गुर सिखा सकते हैं। देश के जनमानस को इन प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझने का हुनर बता सकते हैं। जवानों के लिए और उनके परिवारों के लिए ‘क्राउड फंडिंग’ कर सकते हैं।
राजनाथ को पीएम क्यों दे रहे हैैं महत्व?
कहते हैं ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को उसके मुकाम तक ले जाने में अगर पीएम मोदी के बाद किसी की अहम भूमिका है तो वे है देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह। जो इन दिनों सरकार व सेना के बीच समन्वय की सबसे अहम कड़ी हैं। सूत्र बताते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने ही सबसे पहले पीएम मोदी से राजनाथ सिंह को लेकर आग्रह किया कि ‘प्लीज़ कीप हिम इन द् मिडल’ इसके पीछे डोभाल का तर्क था कि ऐसी परिस्थितियों को हेंडल करने के लिए राजनाथ सिंह ही सबसे उपयुक्त पात्र हैं।
राजनाथ की दो प्रमुख विशेषताएं उन्हें औरों से अलग करती हैं। एक तो हर परिस्थिति में वे शांत रहते हैं, कभी धैर्य नहीं खोते, दूसरा उनका बात व्यवहार का तरीका, वे अप्रिय से अप्रिय बात भी सहज़ता व मधुरता से कह देते हैं। सो जब मामला सैन्य बलों के प्रमुखों से तारतम्य बिठाने का हो तो राजनाथ इसके लिए सबसे उपयुक्त पात्र हैं। कहते हैं पीएम ने डोभाल की बातों पर कान धरे और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की शुरूआत से ही वे राजनाथ को इतना ज्यादा महत्व देने लगे।
स्मृति में बने रहने का हुनर कोई मैडम ईरानी से सीखे
भाजपा की तेज-तर्रार नेत्री स्मृति ईरानी का राज्यसभा में जाने का मामला फिलहाल खटाई में पड़ता लग रहा है। नहीं तो अब से पहले इस बात के खूब चर्चे थे कि स्मृति ईरानी को आंध्र प्रदेश से राज्यसभा में लाया जा रहा है। यह सीट तेलुगुदेशम सांसद विजय साईं रेड्डी के इस्तीफे से खाली हुई है और माना जाता है कि टीडीपी सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू ने यह सीट भाजपा को ऑफर कर दी है। पर सूत्रों की मानें तो भाजपा नेतृत्व ने स्मृति को पार्टी संगठन में कोई अहम पद देने का वादा किया है। वहीं स्मृति की चाहत राज्यसभा प्राप्त करने के उपरांत केंद्रीय कैबिनेट में आने की बताई जाती है।
स्मृति से जुड़े सूत्र दो बातों की तस्दीक करते हैं कि एक तो यह कि स्मृति ईरानी अपने पॉपुलर शो ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ की लिमिटेड सीरीज में एक बार फिर से तुलसी के रोल में दिख सकती हैं। वहीं कहीं उन्होंने आने वाले जुलाई माह में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया बर्कले में 29 वर्षीय सहायक प्रोफेसर यानीव कोनतीच्की के सान्निध्य में लेक्चर देने जा रही हैं। सनद रहे कि अप्रैल माह में भी स्मृति ने स्टेनफोर्ड समेत कई अन्य अमेरिकी विश्वविद्यालयों में भी अपना व्याख्यान दिया था। इस कार्य में उन्हें येल यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर रोहिणी पांडे का साथ मिला था, जहां स्मृति ‘फ्यूचर ऑफ वर्क फॉर वीमेन समिट’ में बोली थीं।
महाराष्ट्र की बहनें किधर जाएंगी?
कोर्ट के आदेश के बाद तीन सालों से लगातार लंबित पड़े वृहन मुंबई महापालिका (बीएमसी) चुनाव की तैयारियों का शंखनाद हो चुका है। जिसके लिए रोज-बरोज सियासी दल नए पैंतरे चल रहे हैं, कभी उद्धव व राज दो बिछड़े भाईयों के मिलन की बात हो रही है तो कभी चाचा शरद व भतीजे अजीत के एक होने की संभावना जताई जा रही है। बीएमसी चुनाव में वैसे भी महिला वोटर हमेशा से एक गेमचेंजर साबित होती रही हैं। पीएम मोदी ने भी महाराष्ट्र की अपनी चुनावी रैलियों में वादा किया था कि ‘अगर राज्य में भाजपा की सरकार बनी तो, लाडकी बहन योजना’ के तहत महिलाओं को मिल रही 1500 रुपयों की सहायता रािश को बढ़ा कर 2100 रुपए प्रतिमाह कर दिया जाएगा।’
गौरतलब हो कि तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने यह योजना जुलाई 2024 में शुरु की थी, यह सहायता राशि वैसे परिवार की महिलाओं को दी जाती थी जिनकी सालाना पारिवारिक आय ढाई लाख रूपयों से कम हो। फडणवीस सरकार के सत्ता में आने के बाद सहायता राशि तो नहीं बढ़ी अपितु इस सूची में से महिलाओं के नाम की छंटनी जरूर शुरू हो गई।
राज्य सरकार ने जो मार्च में अपना बजट पेश किया उसमें भी इस राशि में बढ़ोतरी का कोई जिक्र नहीं था। वहीं इस योजना से लाभार्थी महिलाओं की संख्या में 10-15 लाख की छंटनी अवश्य हो गई। इन आंकड़ों के मुताबिक जहां अक्टूबर 2024 में लाभार्थी महिलाओं की संख्या 2.63 करोड़ थी, यह संख्या मार्च 2025 में घट कर अब 2.46 करोड़ रह गई है। वहीं झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने राज्य में ‘मंईयां सम्मान योजना’ में ऐसी महिलाओं को 2100 रुपए प्रति माह देने का वादा किया था, जिसे वे बखूबी निभा रहे हैं।
…और अंत में
इसी हफ्ते राहुल को विदेश छुट्टियां मनाने जाना था, पर ताजा हालात ने उन्हें अपना प्रोग्राम बदलने पर मजबूर कर दिया है। राहुल के एक मुंहलगे महासचिव जयराम रमेश ने उनसे दो टूक कह दिया कि ‘अभी उचित समय नहीं है कि आप निजी छुट्टी पर जाएं, अगर विदेश में छुट्टियां मनाते वहां की एक भी तस्वीर यहां छप जाएगी तो यहां लोग उसका बुरा मानेंगे, सोशल मीडिया पर आपको ट्रोल किया जाएगा।’ सो, अब राहुल नहीं जा रहे, वे देश में रह कर ही देशवासियों व सेना का मनोबल बढ़ाते नज़र आएंगे।