पाकिस्तान : अल्लाह, आर्मी और अमेरिका
एक अंग्रेजी की कहावत है ‘‘अगर इच्छाएं अश्व होती तो हर भिखारी शहसवार हो जाता।’’ इच्छाएं सचमुच इच्छाएं हैं अश्व नहीं परन्तु हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान फिर भी आजकल शहसवार बना हुआ है। उसके पास ‘‘उन्माद’’ नामक एक खतरनाक नस्ल का घोड़ा है जिसकी सवारी आज पाकिस्तान फिर कर रहा है। अपनी ओछी हरकताें के कारण यह मुल्क टूटकर दो फाड़ हो चुका है। आज भी वह टुकड़ों-टुकड़ों में बंटने का इंतजार कर रहा है। कारण वही है हिंसा, घृणा, अन्याय और उन्माद। हर देश में भीख का कटोरा लेकर जाने वाले पाकिस्तान ने अगर सही रास्ता अपनाया होता और भारत के महत्व को समझा होता तो शायद बात बन जाती परन्तु उसे आज तक होश नहीं आया। पाकिस्तान ने बंटवारे के बाद से ही उन्माद की फैक्ट्रियां खोल दीं। हर नस्ल के और हर तरह के आतंकवादी वहां पलते रहे। हाथ में एके-47 और होठों पर नारा-ए-तकबीर बस यहीं तक उसकी दुनिया सीमित हो गई, जिसके परिणाम स्वरूप आतंकवाद, पाकिस्तानी सेना और आईएसआई एक-दूसरे से मिलकर शैतानों की टोलियां तैयार करते रहे आैर भारत में खून की नदियां बहाते रहे। पाकिस्तान सेना ने हमेशा ही वहां के लोकतंत्र को अपने बूटों के तले रौंदा है। वहां के सेनाध्यक्ष कई बार राष्ट्रपति बन बैठे। चाहे वह याहिया खान हो, जिया-उल-हक हो या परवेज मुशर्रफ। सेना के जरनैलों ने वहां के संविधान को बार-बार बदला है। इतिहास साक्षी है कि हिंसक जरनैलों ने उन्माद के घोड़े पर सवारी तो की लेकिन उसका हश्र क्या हुआ यह सब जानते हैं।
आज भी एक ऐसा ही पाकिस्तान का सेनाध्यक्ष आसिम मुनीर उन्मादी घोड़े पर सवार है। पाकिस्तान की राजनीति में तीन ‘ए’ यानि अल्लाह, आर्मी और अमेरिका बहुत महत्व रखते हैं। अक्सर कहा जाता है िक यह तीनों ही पाकिस्तान को चलाते हैं। सत्ता के फैसलों से लेकर सत्ता परिवर्तन तक सब कुछ इनमें से किसी एक द्वारा निर्देिशत होता है। आज पाकिस्तान फिर से अमेरिका की गोद में बैठ गया है आैर डाेनाल्ड ट्रम्प उसे फिर दुलार रहा है। आसिम मुनीर अपने पूर्व के जरनैलों की तरह ही व्यवहार करने लगे हैं और तिकड़म भिड़ाकर ऑपरेशन सिंदूर में मुंह की खाने के बाद भी फील्ड मार्शल की उपाधि ले चुके हैं। ऐसा आभास हो रहा है कि पाकिस्तान में शहबाज शरीफ का तख्ता पलट कभी भी हो सकता है। क्योंकि मुनीर अमेरिका के समर्थन से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बन सकते हैं।
पाकिस्तान के सेना प्रमुख लंबे समय से मानते रहे हैं कि उनके शब्दों में एक तरह का जादू होता है। सही जगह पर कहे गए कुछ वाक्य अन्तर्राष्ट्रीय राय बदल सकते हैं, भारत के संकल्प को हिला सकते हैं और वाशिंगटन में अपनी प्रासंगिकता फिर से स्थापित कर सकते हैं। इस भ्रम में फंसने वाले सबसे नए व्यक्ति हैं फील्ड मार्शल असीम मुनीर। दो महीने से भी कम समय में उन्होंने अमेरिका की दो यात्राएं की हैं। टाम्पा की उनकी दूसरी यात्रा, अमेरिकी सैन्य अधिकारियों के शानदार स्वागत और व्यापक रणनीतिक खेल में एक खिलाड़ी के रूप में देखे जाने की स्पष्ट उत्सुकता के साथ हुई। प्रवासी दर्शकों के सामने उन्होंने कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए दावा किया कि अगर भारत सिंधु नदी पर बांध बनाएगा तो पाकिस्तान उन्हें 10 मिसाइलों से नष्ट कर देगा। मानो यह नाटकीयता काफी नहीं थी, उन्होंने आगे कहा कि अगर पाकिस्तान को अस्तित्व का संकट झेलना पड़ा तो वह आधी दुनिया को अपने साथ ले जा सकता है। ये कोई निजी तौर पर कही गई बातें नहीं हैं -ये किसी आधिकारिक यात्रा के दौरान विदेशी धरती पर सार्वजनिक रूप से दिए गए, सोच-समझकर रचे गए उकसावे हैं।
मुनीर की धमकियां कोई नई नहीं हैं। पाकिस्तान का हर नया सेना प्रमुख फिल्मी खलनायक की तरह डायलॉग बोलते रहता है। कश्मीर पाकिस्तान के गले की नस है। यह शब्द सुनते-सुनते भारत के कान पक चुके हैं। पाकिस्तान के हुकमरानों की परमाणु बम की धमकियां भी कोई नई नहीं हैं। भारत भी लगातार पाकिस्तान की धमकियों का मुंहतोड़ जवाब देता रहा है और लगातार कहता रहा है िक वह पाकिस्तान की परमाणु बम की धमकी के आगे नहीं झुकेगा। मुनीर की अमेरिका यात्रा का कूटनीतिक पहलू भी है। मुनीर की यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में अमेरिका भारत के रूस से तेल आैर हथियार खरीदने और स्वतंत्र विदेश नीति अपनाने के रुख से चिढ़ा हुआ है। ट्रम्प के अमेरिका को गले लगाने का उद्देश्य भारत पर दबाव डालना ही है। पाकिस्तान की समस्या यह है िक उसे कुछ याद नहीं रहता। पाकिस्तान के हुकमरान नेहरू-लियाकत अली समझौता भूल गए। 1965 की जंग के बाद ताशकंद समझौता भूल गए। 1971 के युद्ध में करारी हार को भूल गए। उसे यह भी याद नहीं कि भारत ने पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को रस्सियों से बांध कर रखा था और शिमला समझौते के बाद उन्हें छोड़ा गया था। आसिम मुनीर अपनी इच्छाओं के चलते पाकिस्तान को अमेरिका के हाथों में गिरवी रख रहे हैं। पाकिस्तान को गले लगाने के पीछे अमेरिका की अपनी विवशताएं हैं, इसलिए वह लगातार पाकिस्तान पर डॉलरों की बरसात करता रहा।
वास्तव में पाकिस्तान ऐतिहासिक रूप से अमेरिकी सहायता प्राप्त करने वाले शीर्ष देशों में से एक रहा है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान को अमेरिकी सहायता में भारी गिरावट आई है। खासकर 2019 के बाद से, जब तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने आतंक को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने के लिए इस्लामिक देश पर हमला बोला था। 2020 में जब बाइडेन ने पदभार संभाला तो संबंध और भी अधिक खराब हो गए। यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद इमरान को पारंपरिक फोन कॉल तक नहीं मिली।
दोनों के संबंधों में ठहराव आया। डोनाल्ड ट्रम्प का पाकिस्तान की तरफ झुकना नाटकीय परिवर्तन है। इसे एक सामरिक बदलाव माना जाए या ट्रम्प की नौटंकी, इसका पता तो बाद में चलेगा। अमेरिका को भारतीय बाजार की उतनी ही जरूरत है जितनी कि अन्य देशों को। अमेरिका का हिन्द प्रशांत गणित भी भारत पर ही निर्भर करता है, इसलिए भारत को अपने अडिग रास्ते पर ही चलना होगा। कोई भी ताकत भारत को झुकाने में समर्थ नहीं है। भारत शांति का समर्थक है लेकिन शांति के पौधों को सींचने के लिए कभी-कभी रक्त की जरूरत भी पड़ती है और भारत इसके लिए हमेशा तैयार है।