‘पाकिस्तान और बंगलादेश’
यह कैसी विडम्बना है कि जिस बंगलादेश का जन्म ही पाकिस्तानी शासकों के…
यह कैसी विडम्बना है कि जिस बंगलादेश का जन्म ही पाकिस्तानी शासकों के जुल्मों-सितम के खिलाफ हुआ वहीं बंगलादेश आज पाकिस्तान की गोदी में बैठने को लालायित हो रहा है। 1971 में भारत ने पूर्वी पाकिस्तान (बंगलादेश) को पाकिस्तानी हुक्मरानों के चंगुल से छुड़ाने के लिए नागरिक व सैनिक दोनों ही मोर्चों पर भरपूर मदद की जिसके परिणाम स्वरूप दुनिया के नक्शे पर एक नये देश बंगलादेश का उदय हुआ। इसी बंगलादेश में 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तान की तरफदारी करने वाले कट्टरपंथी इस्लामी स्वयंभू नेताओं को फांसी के तख्ते पर भी झुलाया मगर आज एेसा लग रहा है कि इन्हीं पाकिस्तान परस्त कट्टरपंथी ताकतों के हाथ में इस देश की बागडोर चली गई है। अब इसमें भी दो राय रखने की कोई गुंजाइश नहीं बची है कि बंगलादेश की चुनी हुई प्रधानमन्त्री श्रीमती शेख हसीना वाजेद की सरकार को उखाड़ने के लिए जनवरी 2024 से जो आन्दोलन ढाका की सड़कों पर शुरू हुआ था उसका सम्बन्ध भी पाक परस्त कट्टरपंथी ताकतों के साथ था। इस देश की जमाते इस्लामी पार्टी लगातार बंगलादेश में चरमपंथी तत्वों की सरपरस्त रही और विदेशी मदद के सहारे शेख हसीना के खिलाफ आन्दोलनों को हवा देती रही।
जनवरी 24 से जो छात्र आन्दोलन शुरू हुआ था उसकी बागडोर भी परोक्ष रूप से एेसे ही तत्व संभाले हुए थे। अगर 5 अगस्त 2024 को बंगलादेश में शेख हसीना का तख्ता पलट सेना की मदद से हुआ तो इसके पीछे केवल पाकिस्तान की शह को ही वजह नहीं माना जा सकता है बल्कि बंगलादेश में लोकतान्त्रिक राजनीति को मजबूत करने के पर्दे में कहीं न कहीं अमेरिकी मदद का भी हाथ रहा है। अमेरिका में राष्ट्रपति चुने जाने के बाद डोनाल्ड ट्रम्प जो तेवर भारत व बंगलादेश को लेकर दिखा रहे हैं उसका मन्तव्य भी यह लगता है कि अमेरिका भारतीय उपमहाद्वीप में अपने अनुकूल वातावरण चाहता है। दुनिया जानती है कि शेख हसीना के बंगलादेश के शासन प्रमुख रहते भारत के साथ उनके देश के सम्बन्ध इतने मधुर थे कि भारत की पूर्वी सीमाएं पूरी तरह सुरक्षित थीं जबकि पश्चिम में पाकिस्तान के साथ लगी उसकी सीमाएं हमेशा तनावपूर्ण ही रहीं। अतः भारत-बंगलादेश सम्बन्धों के कई आयाम हैं जिन पर हमें गंभीरता के साथ मनन करना होगा।
यह तथ्य अब उजागर हो चुका है कि बंगलादेश के छात्र आन्दोलन को अमेरिका का भी समर्थन था क्योंकि इसी आन्दोलन के चलते अमेरिका ने बंगलादेश के शेख हसीना विरोधी तत्वों को एक करोड़ 34 लाख डालर (लगभग 134 करोड़ टका) की धनराशि इस देश में होने वाले चुनावों में मतदान बढ़ाने व राजनैतिक प्रक्रिया को मजबूत करने के नाम पर ‘अमेरिकी सरकार के मदद अभियान’ के तहत दी गई। बंगलादेश के बारे में यह प्रसिद्ध है कि यहां चुनावी बाजियां या तो डालर की मदद से जीती जाती हैं या फिर रियाल (सऊदी अरब की मुद्रा) की मदद से। मगर पिछले वर्ष बंगलादेश में शेख हसीना के शासक रहते हुए जो राष्ट्रीय चुनाव हुए उसका विपक्षी दलों, खास कर बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी की मुखिया बेगम खालिदा जिया ने बहिष्कार किया। पश्चिमी यूरोपीय देशों ने भी इन चुनावों को जालसाजी से भरा हुआ कहा परन्तु चुनावों में शेख हसीना की नेशनल अवामी पार्टी विजयी रही और उसके बाद यहां छात्र आन्दोलन सरकारी नौकरियों में मुक्ति संग्राम के शहीदों के वारिसों को मिलने वाले आरक्षण के विरुद्ध शुरू हो गया। इस आन्दोलन के समर्थन में पाक परस्त कट्टरपंथी कितने सक्रिय थे इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1971 में बंगलादेश के मुक्तिदाता शेख मुजीबुर्रहमान की मूर्ति को भी आन्दोलकारियों ने तोड़ डाला और हाल ही में उनके ढाका में स्थित घासमंडी के निवास स्थान को भी फूंक डाला जिसे मुजीब संग्रहालय बना दिया गया था। इसके समानान्तर ही ढाका के नये हुक्मरानों ने पाकिस्तान के साथ अपने दौत्य सम्बन्ध बढ़ाने शुरू किये और पाकिस्तान से हथियार तक खरीदने की बात हुई।
अब ताजा खबर यह है कि बंगलादेश पाकिस्तान से 50 हजार टन चावल का आयात करेगा। 1971 के बाद यह पहला मौका होगा जब बंगलादेश व पाकिस्तान के बीच समुद्री मार्ग से व्यापार खुलेगा। इसका सीधा मतलब यही है कि बंगलादेश भारत को दरकिनार कर पाकिस्तान के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा है जिसके चलते हमारी पूर्वी सीमाएं भी बादलों में घिर सकती हैं। पाकिस्तान जो खुद भुखमरी से जूझ रहा है वह बंगलादेश को चावल निर्यात कर रहा है और बंगलादेश की अस्थायी मोहम्मद यूनुस सरकार मुस्करा रही है जबकि उनके देश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं को निशाना बनाया जा रहा है। मोहम्मद यूनुस एेसे राजनीतिज्ञ हैं जो सामाजिक कार्यकर्ता से राजनीतिज्ञ बने हैं मगर उन्हें अपने देश के उन कट्टरपंथी तत्वों का समर्थन मिल रहा है जो बंगलादेश में भारत विरोधी माहौल तैयार करते रहते हैं। पाकिस्तान से व्यापार शुरू करके उनकी सरकार ने साफ कर दिया है कि वह उस पाकिस्तान को अपना दोस्त बनाने को तैयार है जिसके चंगुल से 1971 में शेख मुजीबुर्रहमान ने छुड़ाया था। बंगलादेश की भौगोलिक स्थिति एेसी है कि वह भारत की जल सीमाओं के मुहाने पर बैठा हुआ है। शेख हसीना ने अपने देश के एक छोटे से टापू को अमेरिका को देने से मना कर दिया था। जाहिर है कि शेख हसीना के लिए अपने राष्ट्रहित सर्वोपरि थे। मगर नोबेल पुरस्कार प्राप्त मोहम्मद यूनुस के लिए कौन से हित सर्वोपरि हैं इसका फैसला तो बंगलादेश की जनता ही कर सकती है। जहां तक भारत का सवाल है तो वह बंगलादेश की मौजूदा राजनीति का अवलोकन अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप ही करेगा। पाकिस्तान के साथ मिल कर मोहम्मद यूनुस की अस्थायी सरकार दोनों देशों के नागरिकों के बीच में रंजिश की दीवार नहीं खींच सकती है। भारत को पूरे भारतीय उपमहाद्वीप की सुरक्षा के लिए भी आवश्यक कदम उठाने होंगे जिसमें पाकिस्तान ही सबसे बड़ा अड़ंगा है। यूनूस सरकार भी पाकिस्तान के मोह में जमीनी वास्तविकता की उपेक्षा कर रही है।