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पाकिस्तान : करतारपुर में 75 साल बाद एक-दूसरे से मिले 1947 में बिछड़े भाई-बहन

गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर में भाई-बहन के पुनर्मिलन के पलों को देखकर सभी की आंखें नम हो गईं। अमरजीत सिंह अपनी मुस्लिम बहन से मिलने और उनके मेहमान के रूप में रहने के लिए वीजा के साथ वाघा सीमा के रास्ते पाकिस्तान पहुंचे।

03:39 PM Sep 10, 2022 IST | Desk Team

गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर में भाई-बहन के पुनर्मिलन के पलों को देखकर सभी की आंखें नम हो गईं। अमरजीत सिंह अपनी मुस्लिम बहन से मिलने और उनके मेहमान के रूप में रहने के लिए वीजा के साथ वाघा सीमा के रास्ते पाकिस्तान पहुंचे।

पाकिस्तान   करतारपुर में 75 साल बाद एक दूसरे से मिले 1947 में बिछड़े भाई बहन
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साल 1947 में न सिर्फ भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ बल्कि कई परिवार बिछड़ गए। इन दो देशों के बीच खींची सीमा ने कई परिवारों को तोड़ दिया। लेकिन करतारपुर कॉरिडोर परिवारों को फिर से जोड़ने का काम कर रहा है। कई बार दोनों देशों में रहने वाले एक ही परिवार के लोगों के मिलने की खबरें आती रहती हैं। अब 1947 में बिछड़े भाई-बहन कई साल बाद फिर मिले हैं। इस बार अमरजीत सिंह और उनकी बहन कुलसुम 75 साल बाद एक-दूसरे से मिले हैं।
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जियो न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर में भाई-बहन के पुनर्मिलन के पलों को देखकर सभी की आंखें नम हो गईं। अमरजीत सिंह अपनी मुस्लिम बहन से मिलने और उनके मेहमान के रूप में रहने के लिए वीजा के साथ वाघा सीमा के रास्ते पाकिस्तान पहुंचे। उनकी बहन 65 वर्षीय कुलसुम अख्तर अमरजीत को देखकर अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाईं। दोनों एक-दूसरे को गले लगाकर रोते रहे। वह अपने बेटे शहजाद अहमद और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अपने भाई से मिलने के लिए फैसलाबाद आई थीं।
एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने बताया कि कुलसुम ने कहा कि उनका परिवार 1947 में भारत के राज्य पंजाब के जालंधर शहर से पाकिस्तान आया था, लेकिन उनके एक भाई और एक बहन पंजाब में रह गए थे। कुलसुम ने कहा कि वह पाकिस्तान में पैदा हुई थी और अपनी मां से अपने खोए हुए भाई और एक बहन के बारे में सुनती थी। उन्होंने कहा कि उनकी मां हमेशा भारत में रहने वाले उनके भाई-बहन को याद करते हुए रोने लगती थीं।
कुलसुम ने कहा कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि वह कभी अपने भाई और बहन से मिल पाएंगी। हालांकि कुछ साल पहले उनके पिता सरदार दारा सिंह का एक दोस्त भारत से पाकिस्तान आया और अपने बच्चों के बारे में बात करने लगा। इस दौरान इस उनका पता लगा। कुलसुम की मां ने सिंह को अपने बेटे और बेटी के बारे में बताया, जिन्हें वह भारत में छोड़ गई है। उन्होंने उसे अपने गांव का नाम और पड़ोसी देश में अपने घर का पता भी बताया।
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 इसके बाद अमरजीत ने जालंधर के पडावां गांव में उसके घर का दौरा किया और उसे बताया कि उसका बेटा जिंदा है, लेकिन उसकी बेटी मर चुकी है। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, उनके बेटे का नाम अमरजीत सिंह है, जिसे 1947 में एक सिख परिवार ने गोद लिया था। भाई की जानकारी के बाद अमरजीत और कुलसुम अख्तर ने व्हाट्सएप पर संपर्क किया और करतारपुर कॉरिडोर के जरिए मुलाकात की।
अमरजीत ने कहा कि जब उन्हें पहली बार पता चला कि उनके असली माता-पिता पाकिस्तान में हैं और मुसलमान हैं, तो यह उनके लिए एक सदमा था। हालांकि, उन्होंने अपने दिल को दिलासा दिया कि उनके अपने परिवार के अलावा कई परिवार एक-दूसरे से अलग हो गए थे। एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, कई मुस्लिम बच्चे सिख बने और कई सिख बच्चे मुसलमान बने।
उन्होंने कहा कि वह हमेशा से अपनी सगी बहन और भाइयों से मिलना चाहते थे। उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि उनके तीन भाई जीवित हैं। हालांकि, एक भाई जो जर्मनी में था, का निधन हो गया है। उन्होंने कहा कि वह अपने परिवार को भारत ले जाएंगे ताकि वे अपने सिख परिवार से मिल सकें। दोनों भाई-बहन एक-दूसरे के लिए ढेर सारे तोहफे लाए थे। शहजाद ने कहा कि उन्हें खुशी है कि 75 साल बाद उनकी मां ने अपना खोया हुआ भाई पाया है।
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