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पाकिस्तान, पानी और खून

पाकिस्तान की तरफ से कितने आतंकी हमले हुए हैं उनकी गिनती नहीं है। पहलगाम में…

10:39 AM Apr 30, 2025 IST | Chander Mohan

पाकिस्तान की तरफ से कितने आतंकी हमले हुए हैं उनकी गिनती नहीं है। पहलगाम में…

पाकिस्तान  पानी और खून

पाकिस्तान की तरफ से कितने आतंकी हमले हुए हैं उनकी गिनती नहीं है। पहलगाम में बैसरन पर हमले से पहले 2000 में छतीसिंहपुरा, 2001 में संसद, 2002 में कालूचक, 2006 डोडा, 2008 में मुम्बई, उरी 2016, नगरोटा सेना मुख्यालय 2016, 2018 संजुवान सेना कैम्प, पुलवामा 2019, के बड़े हमले हो चुके हैं। छोटे हमले तो नियमित चल रहे हैं। हर हमले के बाद पाकिस्तान संलिप्तता से इंकार करता है जबकि सब जानते हैं कि आतंकवादियों को सीमा पार ट्रेनिंग मिलती है। पाकिस्तान ने सदा ही राज्य प्रायोजित आतंकवाद को अपनी रणनीति का हिस्सा समझा है। 2019 में बालाकोट पर स्ट्राइक के बाद कुछ देर चैन रहा था। समझा गया कि हमने आतंकवाद के खिलाफ अपनी लाल रेखा स्पष्ट कर दी है और अब कश्मीर में शान्ति क़ायम करने का प्रयास आगे बढ़ सकता है। लेकिन बैसरन हमला, और जिस तरह यह किया गया, से पता चलता है कि रोक अब प्रभावी नहीं रही। जिस तरह निस्सहाय हिन्दू टूरिस्ट को अलग कर मारा गया वह भारी उत्तेजना देने के बराबर है। एक तरफ़ कश्मीर की अर्थव्यवस्था और कश्मीरियों की रोज़ी रोटी पर चोट की गई तो दूसरी तरफ़ देश के अंदर साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने की शरारत की गई।

अभी तक भारत सरकार ने जो कदम उठाए हैं उनमें सबसे बड़ा और प्रभावी कदम सिंधु जल संधि को निलम्बित करना है। पाकिस्तान के नेता बार-बार कहते तो हैं कि ‘कश्मीर उनके गले की नस है’, पर हक़ीक़त है कि उनके गले की असली नस भारत से तीन नदियों में बहता पानी है। इस पानी पर भारत ने हाथ डाला है और अगर और जकड़ दिया तो पाकिस्तान मारा जाएगा। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पानी की निरंतरता पर निर्भर करती है। पाकिस्तान की 90 प्रतिशत फसलों की सिंचाई सिंधु प्रणाली से होती है। 70 प्रतिशत से अधिक आबादी इस पर निर्भर करती है। अगर फसल के मौसम में पानी रोक दिया गया या कम कर दिया गया तो उनकी कृषि बर्बाद हो जाएगी। उल्लेखनीय है कि 1965 और 1971 के युद्धों के दौरान भी इस संधि पर हाथ नहीं लगाया गया। अब संदेश भेजा गया है कि हमारी बर्दाश्त की बस हो चुकी है। इस निर्णय से वह तड़प रहे हैं। पहले कहा कि अगर पानी रोका गया तो यह ‘एक्ट ऑफ वॉर’ अर्थात युद्ध जैसी कार्यवाही होगी। अब बिलावल भुट्टो का कहना है कि “अगर पानी रोका गया तो खून बहेगा”। बिलावल का कहना था कि “सिंधु हमारी है और हमारी ही रहेगी। या तो हमारा पानी उसमें बहेगा या उनका खून”।

बिलावल भूल गया कि किस तरह उसका नाना ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो समझौते के लिए भागा भागा शिमला आया था। लेकिन उसके वज़ीर-ए-आज़म शाहबाज़ शरीफ़ अधिक सियाने हैं। पहले पाकिस्तानी की संलिप्तता से पूरी तरह इंकार करने के बाद अब उनका कहना है किवह किसी भी ‘तटस्थ जांच’ के लिए तैयार हैं। वह समझदार हैं और जानते हैं कि जो देश केवल दवाइयों के लिए ही 40 प्रतिशत भारत पर निर्भर है, और जिसके फटेहाल है, वह युद्ध नहीं झेल सकता। जिस टीआरएफ ने पहले गर्व से ‘हिन्दुओं को मारने’ की ज़िम्मेवारी ली थी, वह भी मुकर गए हैं। अब कहना है कि हमने नहीं किया। पाकिस्तान के अख़बार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने बताया है कि नवाज़ शरीफ़ ने अपने छोटे भाई शाहबाज़ शरीफ़ को सलाह दी है कि वहआक्रामकता छोड़ भारत के साथ तनाव कम करने का प्रयास करें।

सिंधु जल समझौता सितंबर 1960 में हुआ था। सिंधु घाटी की छह नदियों के पानी का बंटवारा किया गया जिससे सिंधु, चेनाब और झेलम का पानी पाकिस्तान को और सतलुज, रावी और ब्यास का पानी भारत को दिया गया था। यह समझौता जिसे ‘गुड फ़ेथ’ कहा जाता है, में किया गया था। यह नहीं मालूम था कि समय के साथ पाकिस्तान आतंकी-स्तान में परिवर्तित हो जाएगा। इसीलिए काफ़ी देर से यह मांग उठ रही थी कि इस समझौते पर पुनर्विचार किया जाए। जलवायु से लेकर जनसंख्या तक बहुत परिवर्तन हो चुके हैं। सबसे बड़ी बात है कि पाकिस्तान शरारत से बाज नहीं आ रहा। 2016 के उरी हमले के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि ‘खून और पानी साथ साथ नहीं बह सकते’। पाकिस्तान ने धमकी दी है कि वह शिमला समझौते को निलम्बित कर देगा। समझौते में कहा गया था कि कोई पक्ष भी नियंत्रण रेखा का उल्लंघन नहीं करेगा लेकिन 1999 में पाकिस्तान ने कारगिल में नियंत्रण रेखा का भारी उल्लंघन किया था। अर्थात शिमला समझौते तो पहले ही मृतप्राय: है। पहलगाम में तो बर्दाश्त की सीमा पार हो गई है। इसीलिए भारत ने उनके गले की नस पर हाथ डालने का इशारा किया है। भारत इसे और दबाता है या नहीं, यह कई फ़ैक्टर पर निर्भर करता है जिनमें सबसे बड़ा पाकिस्तान का रवैया है। अगर वह परमाणु हमले और खून बहाने की धमकी देते रहे तो मामला और बिगड़ जाएगा क्योंकि नरेन्द्र मोदी को भी लोकराय का सामना करना है। सीधा करने के लिए पानी अच्छा हथियार है पर सवाल है कि क्या हम ऐसा कर भी सकते हैं? कड़वी सच्चाई है कि इस समय हमारे पास वह इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है कि हम उनका पानी तत्काल रोक सकें। अभी तक तो हम अपने हिस्से वाले पानी का भी पूरा इस्तेमाल नहीं कर सके और कुछ मात्रा में यह पाकिस्तान की तरफ़ बह रहा है। अगर पाकिस्तान को सीधा करना है तो हमें पाकिस्तान में जाने वाली नदियों सिंधु, झेलम और चेनाब का पानी रोकना है। इसके लिए पहाड़ी क्षेत्र में या तो डैम बनाने पड़ेंगे या कई सौ किलोमीटर लम्बी नदी बनानी पड़ेगी, लाखों करोड़ रुपए लगेंगे। इसके लिए बहुत समय और पैसा लगेगा। इस संधि को निलम्बित कर हम उनके लिए अनिश्चितता ज़रूर पैदा कर सकते हैं। इन्हें संदेश दिया जाएगा है कि हम ऐसा कर सकते हैं। इससे उन्हें डंक लगेगा पर इस वक्त हम उनका पूरा पानी बंद करने की स्थिति में नहीं है। एक रिसर्च पेपर के मुताबिक़ अगर अब पानी रोका गया तो कश्मीर वादी पानी में डूब जाएगी। वर्तमान डैम में गाद निकालने से भी पानी जमा करने की क्षमता बढ़ जाएगी पर यहां भी समय लेगा। चेनाब बेसिन में कई परियोजना चल रही हंै पर इन्हें पूरा करने में पांच से सात साल लग जाएंगे। इसके अतिरिक्त हमें चीन की प्रतिक्रिया देखनी है। उसने तिब्बत पर क़ब्ज़ा किया हुआ है। सतलुज, सिंधु, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियां वहां से निकलती हैं।

इस संधि के निलम्बन का मनोवैज्ञानिक फ़ायदा यह हुआ है कि पाकिस्तान दबाव में आगया है। इसीलिए ‘खून’,‘खून’ कर रहे हैं। पर संधि का निलम्बन ही पर्याप्त नहीं है, प्रतिकार वह होना चाहिए जो सामने दिखाई भी दे जैसे पुलवामा के बाद हुआ था। 2008 के मुम्बई हमले के बाद ऐसा स्पष्ट प्रतिकार नज़र नहीं आया जिसके लिए देश ने तत्कालीन सरकार को माफ़ नहीं किया था। ऐसा अब नहीं होना चाहिए। मोहन भागवत ने भी कहा हैकि जनता की रक्षा करना और गुंडों को सबक़ सिखाना राजा का धर्म है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि “हम धरती के आख़िरी छोर तक उनका पीछा करेंगे…आतंकियों को मिट्टी में मिलाने के समय आ गया है। मिलेगी कल्पना से भी अधिक सजा”। यह भी समाचार है कि सरकार ने सेना को फ्री हैंड दे दिया है। यह समझदारी है, सेना का काम सेना ही जानती है। देश सरकार के साथ है, पर एक्शन के इंतज़ार में है। पाकिस्तान की सेना को सेक पहुंचना चाहिए। यह अच्छी बात है कि सर्वदलीय बैठक बुलाई गई जिस में विपक्ष ने सरकार का पूरा समर्थन किया। सरकार ने माना की चूक हुई है। पाकिस्तान में पूर्व राजदूत शरत सभ्रवाल ने भी लिखा है कि “यह बड़ी चूक है कि टूरिस्ट स्थल तक आतंकी पहुंचने में सफल रहे और किसी को पता नहीं चला”। यह अफ़सोस की बात है कि प्रधानमंत्री इस सर्वदलीय बैठक में शामिल नहीं हुए। वह साऊदी अरब की राजकीय यात्रा छोड़ कर तो लौट आए पर सर्वदलीय बैठक में नहीं पहुंचे।

अंत में: सब स्वीकार कर रहे हैं कि पहलगाम पर हमले का एक मक़सद देश में साम्प्रदायिक तनाव पैदा करना है। हमें इस चाल में नहीं फंसना। अगर हम अपनी साम्प्रदायिक सौहार्द की परम्परा को बनाए रखें तो यह आतंकियों और उनके उस्तादों को सही जवाब होगा। पर उल्टा कई सौ सोशल मीडिया हैंडलर धार्मिक उन्माद पैदा करने में लगे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि एक धर्मांध मूर्ख सेना खड़ी हो गई है जो देश को ग़लत दिशा में धकेलने में लगी हुई है।सत्तारूढ़ लोग इसे रोकने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। एक तरफ़ पहली बार कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर रहे हैं तो दूसरी तरफ़ बहुत से लोग देश में नफ़रत बढ़ाने में लगे हैं। उनका नवीनतम शिकार नीरज चोपड़ा है। टोक्यो ओलम्पिक में स्वर्ण पदक और पेरिस ओलम्पिक नें रजत पदक जीतने वाले नीरज चोपड़ा को नफ़रत और अपमान झेलना पड़ा क्योंकि उन्होंने पाकिस्तानी खिलाड़ी अरशद नदीम को बैंगलोर में एक प्रतियोगिता के लिए बुलाया था।

यह निमंत्रण पहलगाम की घटना से पहले दिया गया पर फिर भी सोशल मीडिया पर उन्हें अपमानित किया गया यहां तक कि उनके परिवार को भी बख्शा नहीं गया। नीरज चोपड़ा एक राष्ट्रीय आईकॉन हैं, राष्ट्रीय ख़ज़ाना है। आदर्श हैं। उनसे लाखों युवक प्रेरित होते हंै। पर आज के भारत में वह भी सुरक्षित नही। जो ऐसा ज़हर फैला रहें हैं वह आतंकियों के उद्देश्य की ही पूर्ति कर रहे हैं।

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Chander Mohan

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