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पाकिस्तानी और खालिस्तानी बड़ी साजिश की फिराक में

पाकिस्तानी और खालिस्तानी मिलकर किसी बड़ी साजिश की तैयारी में लगे हैं जिसका खुलासा…

04:19 AM Jun 12, 2025 IST | Sudeep Singh

पाकिस्तानी और खालिस्तानी मिलकर किसी बड़ी साजिश की तैयारी में लगे हैं जिसका खुलासा…

पाकिस्तानी और खालिस्तानी मिलकर किसी बड़ी साजिश की तैयारी में लगे हैं जिसका खुलासा सूत्रों के हवाले से हुआ है। असल में कैनेडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने 15 से 17 जून तक अल्बर्टा में होने वाले जी-7 शिखर सम्मेलन के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया, जो खालिस्तानी समर्थकों को पसंद नहीं आया जिसके चलते उनके द्वारा पाकिस्तानियों के साथ मिलकर वहां प्रदर्शन भी किए जा रहे हैं। कुछ प्रदर्शनकारी ‘‘मोदी मारो’’ नारे लगाते भी दिखाई दिये। मगर अफसोस कि कैनेडा का पुलिस प्रशासन मूक रहकर सब देखता आ रहा है, जबकि उन्हें चाहिए था कि ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाती। इस बीच भारत द्वारा प्रतिबंधित संगठन सिख फार जस्टिस के मुखिया गुरपतवंत सिंह पन्नू ने जी-7 शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी की यात्रा के दौरान कैनेडा लैंडिंग से लेकर टेकऑफ करने तक 48 घंटे के विरोध कार्यक्रम की घोषणा की है जो कि पन्नू की मानसिक प्रवृति को दर्शाती है कि वह कितनी घटिया बयानबाजी कर सकता है।

भाजपा से जुड़े सिख नेता रविन्दर सिंह रेहन्सी का कहना है कि खालिस्तानियों का जन्मदाता पाकिस्तान है यह किसी से छिपा हुआ नहीं है, क्योंकि पाकिस्तान के द्वारा ही समय-समय पर खालिस्तानियों को आर्थिक सहायता मिलती रही है और अब जब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की योग्य अगुवाई के अन्दर भारतीय सेना ने आपरेशन सिन्दूर को सफल करते हुए एक बार पुनः पाकिस्तान को सबक सिखाया उसके बाद से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। उसके द्वारा खालिस्ता​िनयों को मोहरा बनाकर भारत की एकता और अखण्डता पर प्रहार करने की नापाक कोशिशें की जा रही हैं जिसके चलते कई खालिस्तानी समर्थकों की पंजाब सहित अन्य शहरों से धरपकड़ भी की गई है। वैसे देखा जाए तो गुरपतवंत सिंह पन्नू जैसे लोगों को शर्म आनी चाहिए जो कि एक ऐसे प्रधानमंत्री के खिलाफ जहर उगल रहे हैं जिनके द्वारा सिख गुरुओं और उनके साहिबजादों के इतिहास को घर-घर तक पहुंचाकर वह कार्य किया गया, जो कि आज तक सिख समाज की अपनी धार्मिक कमेटियां भी नहीं कर पाईं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दिल में सिख गुरु साहिबान के प्रति कितनी आस्था है जिसके चलते वह सिख समाज के आजादी के बाद से लम्बित मसलों के समाधान को पहल के आधार पर करने की कोशिश कर रहे हैं, मगर दूसरी ओर पन्नू जैसे लोग चन्द टुकड़ों के लिए पाकिस्तान जैसे देशों की कठपुतली बनकर अपने ही देश के खिलाफ कार्यरत हैं। कैनेडा की सरकार और प्रशासन को चाहिए कि खालिस्तानी और पाकिस्ता​िनयों पर शिकंजा कसे, क्योंकि अगर जी-7 सम्मेलन के दौरान किसी भी तरह की कोई अप्रिय घटना घटती है तो उसकी जिम्मेवार पूरी तरह से कैनेडा की सरकार होगी।

दिल्ली की सिख राजनीति में सरकारी दखलअंदाजी के आरोप : देखा जाए तो दिल्ली की सिख राजनीति में सरकारी दखलअंदाजी कोई नई बात नहीं है जो भी सरकार सत्ता पर काबिज होती है उसके द्वारा अपने समर्थकों को लाभ पहुंचाने हेतु कार्य किए जाते रहे हैं फिर वह सरकार कांग्रेस की हो, आप या भाजपा की सभी के द्वारा समय-समय पर ऐसा किया जाता रहा है। मगर अक्सर जो लोग विपक्ष में बैठे हों उन्हें सरकार की दखलअंदाजी बर्दाश्त नहीं होती और उनके द्वारा हमेशा ही सरकारों को कोसा जाता रहा है। अभी हाल ही में लाटरी से निकलने वाले दो सदस्यों की सदस्यता को लेकर दिल्ली की सिख राजनीति पुनः गर्मा गई है। साल 2021 में जब दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के चुनाव हुए तो उस समय दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव निदेशालय के द्वारा लाटरी से निकलने वाले सिंह सभा के प्रधानों की 2 के बजाए 4 पर्चियां निकाल दी गई, जो कि शायद इससे पहले कभी नहीं हुआ हमेशा से ही केवल 2 लोगों के नाम ही लाटरी से निकाले जाते रहे। 2 सदस्य बादल गुट जो मौजूदा समय में अकाली दल दिल्ली स्टेट है और 2 सरना गुट जो मौजूदा समय में बादल गुट है की थी। उस समय दिल्ली में आप की सरकार थी जिसके द्वारा सरकारी दखलअंदाजी करते हुए महिन्दर सिंह और दारा सिंह को सदस्य नियुक्ति कर दिया जिनकी लाटरी 4 और 5 नम्बर की थी। जिसके चलते 1 और 2 नम्बर वाले कश्मीर सिंह और मलकीत सिंह ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया दिल्ली में भाजपा की सरकार आने के बाद समीकरण बदल गए और मौजूदा सरकार के अधीन कार्यरत गुरुद्वारा चुनाव निदेशालय के द्वारा कोर्ट में स्वीकारा की बीते समय में हुई नियुक्ति सही नहीं थी जिसके बाद कश्मीर सिंह और मलकीत सिंह ने अपना केस वापिस ले लिया और गुरुद्वारा चुनाव निदेशालय ने उन्हें मान्यता देते हुए सदस्य नियुक्ति कर दिया। इसके बाद तो मानो दिल्ली की राजनीति में भुचाल सा आ गया। विपक्षी नेता परमजीत सिंह सरना और मनजीत सिंह जीके ने इस फैसले का जमकर विरोध ही नहीं किया बल्कि डायरेक्टर गुरुद्वारा चुनाव और दिल्ली की मुख्यमंत्री के पुतले तक दहन करने निकल गए हालांकि प्रशासन के दखल के बाद ऐसा नहीं किया गया, केवल प्रदर्शन कर अपने रोष को प्रकट किया। राजनीति के माहिर मानते हैं कि दिल्ली की सिख राजनीति हमेशा से ही सरकार के इर्द गिर्द घूमती रही है और इसमें कोई हैरानी वाली बात नहीं है सत्ता में जिस भी पार्टी की सरकार रहती है वह अपने समर्थकों को हर संभव मदद मुहैया करवाती ही है।

अरदास में सन्देश देने पर सिख पंथ में बवाल: गुरु साहिबान ने सिख धर्म के लोगों को अरदास करने की शिक्षा देते समय यह साफ किया था कि अरदास में हम प्रमात्मा के समक्ष अपने मन की बात रख सकते हैं, प्रमात्मा से अपने, परिवार, समाज यां समुची मानवता के लिए मांग सकते हैं पर कहीं भी यह नहीं कहा गया कि हम अरदास के दौरान किसी भी तरह का कोई सन्देश दे सकते हैं। इस बात को हर सिख भलि भान्ति जानता है और जब भी अरदास की जाती है इसी आधार पर की जाती है मगर इतिहास में पहली बार देखने को मिला कि श्री अकाल तख्त साहिब के विवादित जत्थेदार जो कि तख्त पटना साहिब के पांच सिंह साहिबान के द्वारा तनखाईया भी हैं उनके द्वारा जून 1984 के शहीदों की याद में हुए समागम में पहुंचकर अरदास की गई और इतना ही नहीं अरदास में ही सिख समाज को सन्देश दिया गया जो कि पूरी तरह से सिख मर्यादा का अपमान है। जिसके चलते सिख समाज के दिलों में रोष है। सिख बुद्धिजीवि इस बात को मानते हैं कि पहली बात तो तख्त पटना साहिब से तनखाईया होने के चलते जत्थेदार कुलदीप सिंह को अरदास समागम में भाग ही नहीं लेना चाहिए था और अगर आ भी गए तो उन्हें इस प्रकार अरदास कर सिख मर्यादा और परंपरा की धज्जियां नहीं उड़ानी चाहिए थी ऐसा करके उन्होंने एक और विवाद को जन्म दे दिया है। इस समागम में शिरोम​िण गुरुद्वारा कमेटी के अध्यक्ष हरजिन्दर सिंह धामी ने भी शहीद परिवारों को सम्मान देकर मर्यादा का उल्लंघन किया है, क्योंकि अभी तक यह सम्मान केवल श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार या श्री दरबार साहिब के ग्रन्थी साहिबान के द्वारा ही दिया जाता है।

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