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पाकिस्तान की ‘युवा पीढ़ी’

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पड़ोेसी देश पाकिस्तान की युवा पीढ़ी को आतंकवाद…

04:36 AM May 28, 2025 IST | Aditya Chopra

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पड़ोेसी देश पाकिस्तान की युवा पीढ़ी को आतंकवाद…

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पड़ोेसी देश पाकिस्तान की युवा पीढ़ी को आतंकवाद के घेरे से बाहर आने का जो आह्वान किया है उसमें पूरे भारतीय उप-महाद्वीप की सुख-शान्ति छिपी हुई है। पाकिस्तान पिछले तीन दशकों से भी अधिक समय से जिस तरह आतंकवाद का पर्याय बन चुका है उससे इस देश की युवा पीढ़ी का भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है और समूचे विश्व में उसकी पहचान सन्देह के दायरे में सिमटती जा रही है। 1947 में भारत का बंटवारा होने पर पाकिस्तान के सियासतदानों ने जिस तरह अपने देश की पहचान सिर्फ हिन्दू विरोध पर खड़ी की है उससे इस मुल्क की नई पीढि़यां जहालत के अंधेरे में ही फंसती जा रही हैं क्योंकि उन्हें पाकिस्तान के इतिहास तक के बारे में स्कूल-कालेजों में गलत-सलत पढ़ाया जाता है और बताया जाता है कि पाकिस्तान की जड़ें भारत में मुस्लिम आक्रमण की शुरूआत से बंधी हुई हैं जबकि हकीकत यह है कि इस देश का इतिहास वही है जो हिन्दोस्तान का है।

यह कैसे संभव है कि केवल 78 वर्षों के भीतर ही किसी देश का इतिहास बदल जाये? इसकी वजह यह है कि पाकिस्तान के हुक्मरान अपनी पहचान हिन्दू विरोध से जोड़ते हैं और इस क्रम में आठवीं सदी तक चले जाते हैं जब भारत पर पहला मुस्लिम आक्रमण 714 ईस्वी के करीब अरब देशों की तरफ से सिन्ध प्रान्त में हुआ था। इसका प्रमाण यह है कि जब 1972 में पूर्वी पाकिस्तान के बंगलादेश बन जाने पर पाकिस्तान ने भारत से शिमला समझौता किया तो इसे करने वाले पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपने देश में पहुंच कर कराची में एक विशाल जनसभा को सम्बोधित किया। उस जनसभा में जो मरहूम भुट्टो ने कहा उसे पाकिस्तान की आज की नौजवान पीढ़ी को ध्यान से सुनने की जरूरत है। भुट्टो ने कहा कि ‘‘मैं मानता हूं कि हमारी हिन्दुओं से शिकस्त हुई है। पिछले एक हजार साल की तारीख में हिन्दुओं से हमारी यह करारी शिकस्त है।’’ भुट्टो पाकिस्तान की 1971 के युद्ध में भारत से हुई हार को एक देश की हार नहीं बता रहे थे बल्कि मुसलमानों की हार बता रहे थे और पाकिस्तानियों को हिन्दुओं के खिलाफ लामबन्द करने की कोशिश कर रहे थे परन्तु आज 1972 नहीं बल्कि 2025 चल रहा है और इस दौरान पाकिस्तान ने 1999 में कारगिल युद्ध भी भारत से हारा। पाकिस्तान से चार-चार युद्ध लड़ने के बावजूद भारत आज विश्व की चौथी अर्थव्यवस्था है जबकि पाकिस्तान के हाथ में भीख का कटोरा है। इसकी अर्थव्यवस्था अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष से मिलने वाले कर्ज के बूते पर चल रही है। अतः पाकिस्तान के नौजवानों को सोचना चाहिए कि केवल हिन्दू विरोध के चलते उनके देश की हालत इतनी दयनीय क्यों हो गई है? इसका कारण यही है कि इस देश के हुक्मरानों ने सिर्फ हिन्दू विरोध को ही पाकिस्तान के वजूद की शर्त बना दिया है और युवाओं को कश्मीर के सपने में उलझा कर रखा है। कश्मीर का मुद्दा दूसरी तरफ पाकिस्तान की सेना के वजूद का सवाल बना हुआ है। इस देश की सेना कश्मीर के नाम पर अपने देश में आतंकवाद को पनपाती रही है। मगर इससे भी बड़ा सवाल श्री मोदी ने जो खड़ा किया है वह यह है कि पाकिस्तान के हुक्मरानों के लिए आतंकवाद आमदनी का जरिया बन गया है। पहले अफगानिस्तान में दहशतगर्दी समाप्त करने के नाम पर पाकिस्तान ने अमेरिका से जमकर मदद ली और अपने ही मुल्क में दहशतगर्द तंजीमों को पनपाया और अब इन तंजीमों का इस्तेमाल वह भारत के विरुद्ध कर रहा है।

पाकिस्तान में हिन्दू विरोध का जुनून पैदा कर यहां की नई पीढि़यों तक को आतंकवाद की आग में धकेला जा रहा है। पाकिस्तान में जिस तरह से मदरसों में आतंकवादी तैयार किये जाते हैं वैसी मिसाल दुनिया में कही और नहीं मिलती। इसका सीधा मतलब यह है कि यहां की फौज और सियासतदान दोनों मिलकर ही इस तहजीब को बढ़ावा दे रहे हैं और युवा पीढ़ी के भविष्य को अंधेरे में झोक रहे हैं। अतः श्री मोदी ने इसी युवा पीढ़ी से आह्वान किया है कि वह इसी दलदल से बाहर आये और अपने मुल्क की तकदीर बदलने का काम करे। विचारणीय यह है कि उस मुल्क का भविष्य क्या हो सकता है जहां घोषित आतंकवादियों को ‘हीरो या नायक’ समझा जाता हो। एेसा मैं नहीं कह रहा हूं, बल्कि इसी देश के राष्ट्रपति रहे जनरल मुशर्रफ ने 2010 के करीब कहा था और आतंकवादियों को उन्होंने पाकिस्तानियों के नायक के रूप में निरूपित किया था। सवाल यह भी है कि पाकिस्तान की युवा पीढ़ी को आतंकवाद की तरफ धकेल कर इस देश की फौज केवल अपना हित साधना चाहती है जिसकी मदद सत्ता में बैठे सियासतदान बखूबी करते हैं। यही वजह है कि आतंकवाद को पाकिस्तान की विदेश नीति का एक अहम हिस्सा बना दिया गया है। दुनिया के अन्य देशों के लिए भी यह गंभीर सवाल है। खासकर अमेरिका व पश्चिमी यूरोपीय देशों के लिए जो पाकिस्तान की मदद के लिए आमादा रहते हैं, एेसे देश के परमाणु शक्ति से लैस होने के मायने क्या हो सकते हैं? परमाणु ताकत के नाम पर यह भारत को ब्लैकमेल करता आ रहा है और हमारे देश में आतंकवाद का निर्यात कर रहा है लेकिन भारत ने जिस तरह पहलगाम जनसंहार का जवाब दिया है उससे पाकिस्तान के होश उड़े हुए हैं और इस देश के प्रधानमन्त्री शहबाज शरीफ चार मुस्लिम देशों की यात्रा पर निकले हुए हैं जहां वे भारत से बातचीत करने की पेशकश कर रहे हैं। भारत ने साफ कह दिया है कि बातचीत तभी होगी जब पाकिस्तान आतंकवाद समाप्त करेगा।

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