पन्नू की धमकियों का भारतीयों पर असर नहीं
खालिस्तानी समर्थक गुरपतवंत सिंह पन्नू ने अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के शपथ ग्रहण समारोह
खालिस्तानी समर्थक गुरपतवंत सिंह पन्नू ने अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचकर एक बार फिर से अपनी भारत विरोधी सोच का प्रगटावा करते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान को धमकी दे डाली। पन्नू ने मान को ना संभलने पर पूर्व मुख्यमंत्री बेअन्त सिंह जैसा हश्र होने की बात कही। भारतीयों के लिए यह कोई नई बात नहीं है सभी जानते हैं कि पन्नू जैसे लोग विदेशांे की धरती पर बैठकर केवल और केवल भारत के प्रति कुप्रचार करते हैं, भारतीयों को धमकियां देते हैं मगर उनमें से किसी में भी इतनी हिम्मत नहीं कि भारत में आकर एक शब्द भी बोल सकें। अमरीकी राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में पन्नू जैसे लोगों को बुलाना और उन्हें प्रमुखता देना इस बात के साफ संकेत देते हैं कि निश्चित तौर पर विदेशी लोग ही पन्नू जैसे खालिस्तानियों को पर्दे के पीछे से समर्थन देकर भारत के प्रति इस्तेमाल कर रहे हैं। इसका वैसे तो कोई खास असर नहीं पड़ता मगर इससे कहीं ना कहीं भारत में बसे सिख विरोधी लोगों को मौका मिल जाता है सिख समुदाय के प्रति जहर उगलने का। हालांकि गुरु का कोई भी सिख ना तो कभी खालिस्तान का समर्थक था और ना ही कभी हो सकता है। सिखों ने अगर खालिस्तान लेना ही होता तो देश के बंटवारे के समय ही ले लिया होता जब अंग्रेजी हुकूमत हिन्दू-मुस्लिम की भान्ति सिखों को भी अलग राज्य की पेशकश कर रही थी।
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के सलाहकार परमजीत सिंह चंडोक का कहना है हम विदेशों की सरकारों से समय-समय पर खालिस्तानी समर्थकों के खिलाफ कार्यवाही की मांग करते आ रहे हैं मगर उन्होंने गुरपतवंत सिंह पन्नू को शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित कर इस बात के संकेत दे दिये हैं कि विदेशी सरकारों की शह पर ही पन्नू जैसे लोग कैनेडा अमरीका जैसे देशों में सक्रियता से कार्यरत हैं। अब भारत की सरकार और खासकर देश के प्रधानमंत्री से अपील करते हैं कि इसको गंभीरता से लेते हुए अमरीका से बात की जाए और अपना रोष दिखाया जाए क्योंकि पन्नू जैसों की बयानबाजी के भ्रम में फंसकर कहीं ना कहीं विदेशों में बैठे युवा वर्ग जो रोजगार की तलाश में दर बदर भटक रहे होते हैं वह युवा इनके झांसे में आकर भारत के प्रति गलत गतिविधियों में शामिल होते हैं।
जत्थेदारी की सेवा के 25 साल
अक्सर देखा जाता है कि सिखों के पांच तख्त साहिबान के जत्थेदार यां फिर अन्य धार्मिक जत्थेबंदियों के नुमाईंदे, यहां तक कि सिंह सभा गुरुद्वारों में कार्यरत ग्रन्थी सिहंों पर भी आए दिन कई तरह के इल्जाम लगते रहते हैं। क्योंकि ज्यादातर यह लोग राजनीतिक पार्टियों, शख्सियतों की कठपुतली बनकर कार्य करने को मजबूत रहते हैं। संगत की निगाह में भले ही यह धर्म गुरु का दर्जा रखते हों मगर राजनीतिक लोगों के लिए यह कमेटियों के मुलाजिम से ज्यादा कुछ मायने नहीं रखते। कई जत्थेदारों पर तो भ्रष्टाचार में लिप्त होने, चढ़ावे को खुर्द बुर्द करने जैसे गंभीर आरोप तक लग चुके हैं मगर दूसरी ओर तख्त सचखण्ड श्री हजूर साहिब के जत्थेदार सिंह साहिब ज्ञानी कुलवंत सिंह जी एक ऐसी शख्सियत के मालिक हैं जिनकी 25 साल सेवा के दौरान किसी भी तरह का कोई आरोप उन पर नहीं है क्यांेकि वह अपना सारा समय केवल गुरु साहिब की सेवा में लगाते हैं, उन्हें किसी राजनीतिक पार्टी या नेता से कोई मतलब नहीं रहता। गुरु साहिब की अपार कृपा से ज्ञानी कुलवंत सिंह जी गृहस्थ मार्ग को छोड़कर ब्रह्मचर्य की पालना करते हुए अपनी नींद, भूख, प्यास और पांच विकारों को वश में करके यह कठिन सेवा तपस्या के रूप में निभा रहे हैं। चाहे अत्यधिक गर्मी हो, सर्दी हो, बारिश हो या तेज़ आंधी, बाबा जी का सेवा का समय निरंतर चलता है। सुबह 2 बजे से लेकर रात 10 बजे तक बाबा कुलवंत सिंह जी की सेवा बिना रुकावट के चलती है। 24 घंटे में से 22 घंटे बाबा जी सिंहासन स्थान की सेवा में परिक्रमा करते हैं। खासकर मेलों, त्योहारों के समय जैसे होला महल्ला, बैसाखी और दशहरा के दौरान सेवा और भी कठिन हो जाती है, क्योंकि इन समयों में नगर कीर्तन के बाद रात को 11-12 बजे तक सेवा जारी रहती है। बीते दिनों उनकी सेवा के 25 साल पूरे होने पर विशेष समागम करवाए गये जिसमें सभी तख्त साहिबान के जत्थेदार सहित अन्य धार्मिक शिख्सयतों ने पहुंचकर उन्हें बधाई दी। तख्त पटना साहिब से भी जत्थेदार बलदेव सिंह जी, अध्यक्ष जगजोत सिंह सोही ने विशेष तौर पर पहुंचकर गुरु गोबिन्द सिंह जी की फोटो वाला स्मृति चिन्ह उन्हें भेंट किया। दिल्ली कमेटी की ओर से भी सः हरमीत सिंह कालका, जगदीप सिंह काहलो का संदेश लेकर मनजीत सिंह पहुंचे। मनजीत सिंह भी पिछले कई सालों से गुरु साहिब के वस्त्र बदलने की सेवा हेतु पांचों तख्तों सहित देश के अलग-अलग राज्यों में स्थित गुरुद्वारा साहिब में जाकर सेवा निभाते आ रहे हैं।
बाबा साहिब की प्रतिमा का अपमान
देश के संविधान के ज्ञाता बाबा भीमराव अम्बेडकर की पंजाब के अमृतसर में हैरीटेज स्ट्रीट में लगी प्रतिमा का एक सिरफिरे इन्सान द्वारा ना सिर्फ अपमान किया गया बल्कि संविधान की पत्थर की कृति को जलाने की घटना को अन्जाम दिया गया जो कि कई तरह के सवाल खड़े करता है। सबसे पहला सवाल तो यह है कि इस घटना के पीछे कोई बड़ी साजिश तो नहीं है जो पंजाब का माहौल खराब करने की दृष्टि से करवाई जा रही है। इससे भी अधिक सवाल सुरक्षा पर उठ रहे हैं क्योंकि जिस हैरीटेज स्ट्रीट में यह प्रतिमा लगी है वह श्री दरबार साहिब से चंद कदमों की दूरी पर और पुलिस स्टेशन के ठीक सामने है जिसके चलते यहां सुरक्षा व्यवस्था एकदम चौकस होनी चाहिए। फिर यह शख्स कैसे प्रतिमा पर चढ़ गया इसे किसी ने भी रोकने की जहमत क्यों नहीं उठाई। आज पंजाब ही नहीं देशभर में लाखों लोग है जो उनका सम्मान करते हैं इसमें बड़ी गिनती सिखों की भी है। बहुत कम लोग हैं जो इस बात की जानकारी रखते हैं कि एक समय ऐसा भी आया था जब डा भीमराव अम्बेडकर अपने हजारों साथियों के संग श्री दरबार साहिब पहुंचकर अमृतपान करके सिख सजने के लिए पहुंच रहे थे मगर एक साजिश के तहत उन्हें बीच रास्ते से ही वापिस कर दिया गया क्योंकि सिख समुदाय की वह लीडरशिप जिन्हें डाक्टर साहिब के सिख बनने के बाद स्वयं की कुर्सिया डगमगाते दिख रही थी, उन्हें यह रास नहीं आ रहा था, उस समय अगर डाक्टर साहिब ने सिख धर्म अपना लिया होता तो आज उनके सभी अनुयाई भी सिख ही बनते, जो आज बाबा साहिब के बौध धर्म अख्तियार करने के बाद बौध धर्म में हैं।
दस्तार स्वाभिमान दिवस
सिखों के लिए दस्तार कोई गज मात्र कपड़ा नहीं है बल्कि यह हर सिख के लिए सिर का अभिन्न अंग है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा सजाने के समय सिख के लिए पांच ककार अनिवार्य किये तो उसमें केशों को भी रखा व उन्हें संभालने हेतु उन पर पगड़ी बांधना अनिवार्य किया। मगर आज देखने में आता है कि पंजाब जिसे सिखी का केन्द्र माना जाता है वहां पर सिखी समाप्त होने की कगार पर है। ज्यादातर परिवारों में केवल बाप दादा ही केशधारी मिलेंगे, युवा वर्ग तो सिखी से दूर जा चुका है। बच्चों के पैदा होते ही सिख परिवारों के लोग उनके केश कत्ल करवा देते हैं यहां तक कि सिख नाई भी देखने को मिल जायेंगे। मगर वहीं शहरों में अभी सिखी कुछ हद तक बरकरार है मगर यहां सिखों के बच्चों के सिरों पर केश, मुख पर दाड़ी तो मिल जाएगी पर सिर पर दस्तार के स्थान पर टोपी पहने ही युवा वर्ग को देखा जा सकता है जो कि सिख समाज के लिए बेहत चिन्ता का विषय है पर चिन्ता करे कौन, कौम के जत्थेदारों, धार्मिक नेताओं के पास इस सब के लिए समय ही नहीं है उन्हें केवल अपनी राजनीतिक रोटियोें सेंकने से मतलब रह गया है। वहीं दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी धर्म प्रचार के द्वारा एक विशेष पहल करते हुए बाबा दीप सिंह जी के जन्म दिवस को दस्तार स्वाभिमान दिवस के रूप में मनाते हुए युवा वर्ग को दस्तार सिखलाई की शिक्षा देते हुए दस्तार मुकाबले भी करवाए गये और मुकाबला जीतने वालों को शिक्षा को आगे बढ़ाने हेतु पुरस्कार भी दिये गये। कमेटी अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका, महासचिव जगदीप सिंह काहलो, धर्म प्रचार मुखी जसप्रीत सिंह करमसर की सोच है कि इससे निश्चित तौर पर युवा वर्ग में दस्तार के प्रति जानकारी और उत्साह पैदा होगा और अगले वर्ष और अधिक युवा वर्ग इसमें भाग लेगा।