पापा बाहर मत जाओ...
पश्चिम बंगाल इस समय गहरे संकट में है। राज्य के कई ज़िले सांप्रदायिक हिंसा की चपेट…
पश्चिम बंगाल इस समय गहरे संकट में है। राज्य के कई ज़िले सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में हैं। मुर्शिदाबाद जल रहा है। वहां मौतें हो चुकी हैं, लूटपाट और आगज़नी की घटनाएं सामने आई हैं और बड़ी संख्या में लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं। यदि भारतीय जनता पार्टी के दावों को आधार माना जाए, तो ‘हिंदुओं का शिकार किया जा रहा है।’ इस हिंसा की वजह समझना कोई मुश्किल काम नहीं है। वजह वही है वक्फ संशोधन विधेयक-जिसे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार ने लागू करने से इनकार कर दिया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह विधेयक उनकी सरकार का बनाया हुआ नहीं है, इसलिए इसे राज्य में लागू नहीं किया जाएगा। मुर्शिदाबाद में हिंसा की घटनाओं के बीच उन्होंने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की और चेतावनी दी कि जो लोग राजनीतिक लाभ के लिए हिंसा भड़का रहे हैं, उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा-राजनीति के लिए दंगे न भड़काएं।
मुर्शिदाबाद में बीते कई दिनों से हालात बेकाबू हैं। प्रदर्शनकारियों ने कई वाहनों में आग लगा दी, सड़कों पर अवरोध खड़े किए और सुरक्षा बलों पर पथराव किया। बीते शुक्रवार की नमाज़ के बाद जब वक्फ कानून के खिलाफ प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया, तब पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच तीखी झड़पें हुईं, जिनमें दर्जनभर से ज़्यादा पुलिसकर्मी घायल हो गए। पुलिस चौकियों, सरकारी दफ्तरों और दुकानों को निशाना बनाया गया, तोड़फोड़ की गई और उन्हें आग के हवाले कर दिया गया। पीड़ितों ने घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा देते हुए डरावनी कहानियां साझा कीं।
एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार, शमशेरगंज और ढूलियन समेत कई इलाकों में शुक्रवार की नमाज़ के बाद नाराज़ प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए। उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग को जाम कर दिया और पुलिस से टकराव शुरू कर दिया। एक पीड़ित ने बताया, “सब कुछ रात के अंधेरे में हुआ और यह सब स्थानीय लोगों द्वारा अंजाम दिया गया।” उसने कहा कि उसका परिवार डरा हुआ था। जब वह अपनी दुकान बचाने बाहर निकलना चाहता था, तो उसकी बेटी ने कहा-पापा, बाहर मत जाइए।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि आगज़नी, लूटपाट और हिंसा के कई घंटे बाद तक पुलिस का कोई अता-पता नहीं था। शमशेरगंज थाना से महज़ 500 मीटर की दूरी पर स्थित घरों और दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया। पीड़ितों का कहना है कि पुलिस को लगातार एसओएस कॉल किए गए, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
मुर्शिदाबाद एक मुस्लिम बहुल ज़िला है, जहां एक समूह ने पुलिस के साथ भिड़ंत की। इसमें कई लोग घायल हुए और कई पुलिस वाहनों को आग लगा दी गई। राष्ट्रीय महिला आयोग की टीम के अनुसार, महिलाओं को उनके घरों से घसीटकर निकाला गया और उनके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया गया। आयोग ने राज्य सरकार की विफलता पर सवाल उठाते हुए कहा कि वह अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकी। इन घटनाओं के बाद कई प्रभावित परिवार या तो गांव छोड़ चुके हैं या राहत शिविरों में शरण ले चुके हैं।
बेटबोना गांव इस हिंसा का सबसे बड़ा शिकार बना है। वहां के निवासियों का कहना है कि यह कोई सामान्य हिंसा नहीं, बल्कि एक ‘सुनियोजित हमला’ था। हिंदू समुदाय के लोग मुस्लिम बहुल इलाकों से हमले की आशंका के चलते अपने घर छोड़कर भाग गए हैं। अब यह इलाका युद्ध क्षेत्र-सा प्रतीत होता है। राजनीतिक मोर्चे पर भाजपा ने राज्य सरकार पर तीखा हमला करते हुए आरोप लगाया है कि ‘स्वामी विवेकानंद, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और रवींद्रनाथ ठाकुर की भूमि को तुष्टीकरण की राजनीति में झोंक दिया गया है।
राहत कार्यों में जुटे स्वयंसेवकों, जिनमें अधिकतर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हैं, का कहना है कि हिंदू समुदाय के लोग बेघर हो चुके हैं और राज्य सरकार वक्फ कानून को महज़ बहाना बनाकर हिंदुओं को निशाना बना रही है। इसी बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पलटवार करते हुए कहा कि ‘कुछ राजनीतिक दल धर्म का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए कर रहे हैं।’ उन्होंने आरोप लगाया कि यह हिंसा ‘पूर्व नियोजित’ थी और इसकी साजिश में बीएसएफ व कुछ केंद्रीय एजेंसियां भी शामिल हैं, जो बांग्लादेश से घुसपैठ को बढ़ावा देकर तनाव को भड़का रही हैं। आरोप-प्रत्यारोप और दावों के बीच राज्य की राजनीति पूरी तरह गरमा चुकी है। लेकिन सबसे बड़ा नुकसान आम लोगों को हो रहा है, जो अपने ही घरों से उजड़ चुके हैं और अब वहां लौटने से डर रहे हैं।
जहां पहले बेटी ने कहा था ‘पापा, बाहर मत जाइए’, अब वही कह रही है ‘पापा, हम वापस नहीं जाएंगे।’ यह एक त्रासदी है, जो मानवता को झकझोर देने वाली है। यहीं पर रुक कर यह सवाल उठाना आवश्यक हो जाता है -क्या वक्फ कानून वास्तव में हिंसा की जड़ था, या फिर यह किसी गहरी साजिश की महज़ एक परत भर है? क्या यह केवल राजनीति है? आरोप-प्रत्यारोप का खेल? या फिर इससे भी बड़ा कोई षड्यंत्र? और सबसे महत्वपूर्ण -क्या यह सब चुनाव की पृष्ठभूमि में हो रहा है?
यह उल्लेख करना ज़रूरी है कि राज्य विधानसभा चुनाव अब से लगभग एक वर्ष दूर हैं। हालांकि यह स्पष्ट है कि विरोध की शुरुआत वक्फ विधेयक के खिलाफ हुई, लेकिन परिस्थितियां जल्द ही हिंसक हो गईं। रिपोर्टों के अनुसार, जब कुछ युवा इसमें शामिल हुए तब मामला बेकाबू हो गया। कांग्रेस सांसद ईशा ख़ान के हवाले से कहा गया, -वे युवा, जिनका न कोई वैचारिक आधार है और न ही किसी पार्टी से कोई जुड़ाव। साथ ही, यह भी उतना ही सच है कि जब भी कोई हिंसा होती है-विशेषकर सांप्रदायिक -तो बाहरी तत्व आग में घी डालने का काम करते हैं। मुर्शिदाबाद की घटना भी इससे अलग नहीं है।
कुछ राजनीतिक दलों द्वारा यह आरोप लगाया गया है कि सुरक्षा बलों की भूमिका संदिग्ध है, लेकिन इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि देश के बाहर कुछ शक्तियां हर उस विरोध में समर्थन देने को तत्पर रहती हैं जो सरकार के खिलाफ हो। मुर्शिदाबाद की हालिया घटनाओं में भी ऐसी ही संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। पर्याप्त संकेत हैं कि राजनीतिक दलों और बाहरी शक्तियों की मिलीभगत इस अशांति को लगातार हवा दे रही है।
यह सर्वविदित है कि मुर्शिदाबाद की सीमा बांग्लादेश से लगी है, जिसकी लंबाई लगभग 125 किलोमीटर है। यह इलाका मुस्लिम बहुल है, अतः स्वाभाविक था कि वक्फ विरोध की चिंगारी यहीं से भड़की। अतीत में भी सुरक्षा एजेंसियां इस क्षेत्र में इस्लामी कट्टरपंथी समूहों की गतिविधियों को लेकर सतर्क कर चुकी हैं।
मुर्शिदाबाद की अशांति न केवल सीमाई सुरक्षा की कमजोरियों को उजागर करती है, बल्कि यह अंतर-सामुदायिक विश्वास की टूटन और सांप्रदायिक तनाव के गहराते खतरों की ओर भी इशारा करती है। ऐसे में यह मानना भूल होगी कि मुर्शिदाबाद की हिंसा और उसका विस्तार कोई एक बार की घटना है। यह उन शुरुआती चेतावनियों में से है जिन्हें अगर गंभीरता से न लिया गया, तो वे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर संकट बन सकती हैं।
इस पृष्ठभूमि में, चाहे भाजपा हो या तृणमूल कांग्रेस, अगर राजनीतिक लाभ के लिए असंतोष को हवा दी जा रही है, तो यह समझना ज़रूरी है कि यह आग से खेलना है-ऐसा खेल जिसमें सीमा सुरक्षा भी दांव पर लग सकती है। चुनाव आएंगे और चले जाएंगे, पार्टियां जीतेंगी और हारेंगी लेकिन यदि राष्ट्रीय सुरक्षा एक बार कमज़ोर पड़ी या बाहरी ताकतें सांप्रदायिक ताकतों का लाभ उठाने लगीं, तो वापसी की कोई राह नहीं बचेगी। इसलिए भारत की हर राजनीतिक पार्टी की यह राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी बनती है कि वह सांप्रदायिक शक्तियों को दूर रखे, न कि उन्हें समर्थन और संरक्षण देकर हिंसा के रास्ते पर ढकेले। यही मुर्शिदाबाद से लिया गया सबसे बड़ा सबक और संदेश होना चाहिए।