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पेपर लीक : सीबीएसई ‘गुनहगार’ है!

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12:23 AM Apr 01, 2018 IST | Desk Team

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यह एक कड़वा सच है कि हमारे यहां विवाद उत्पन्न होते हैं, ताउम्र केस चलते हैं लेकिन इंसाफ नहीं मिलता। तारीख पर तारीख की परम्परा की इस कड़ी में हम नई चीज अगर जोड़ रहे हैं तो वह भी हमारी दैनिक दिनचर्या पर आधारित व्यवस्था से है और यह लीक से जुड़ी है। हमारे दैनिक जीवन में एक नई व्यवस्था चल पड़ी है लीक पर लीक, लीक पर लीक। घोटाले दर घोटाले तो हमारे शासन में आम बात है, लेकिन पहले कर्नाटक विधानसभा चुनावों की डेट लीक हो जाती है, इसके बाद हमारे पर्सनल डाटा जो फेसबुक पर रखे हैं, उसके लीक होने का शोर मचता है।

चार दिन पहले ही 10वीं और 12वीं के पेपर लीक होने का मामला जोर पकड़ जाता है। आनन-फानन में 10वीं का मैथ और 12वीं का इकोनॉमिक्स का एग्जाम रद्द करके इसे सीबीएसई द्वारा दोबारा कराने का ऐलान कर दिया जाता है। डेट और डाटा दो राजनीतिक बातें हैं, जिसे हम इस मंच पर जगह नहीं देना चाहते लेकिन पेपर लीक होने का मामला लाखों स्टूडेंट्स की जिंदगी से जुड़ा है और इसी पर फोकस करते हुए हम एक बात कहना चाहते हैं कि देश के भविष्य के साथ ऐसा खिलवाड़ मत करो। 10वीं का मैथ एग्जाम दोबारा कराने पर सस्पैंस है तो सीबीएसई की कार्यशैली समझ से बाहर है।

ताज्जुब इस बात का है कि हमारे देश में हर छोटे और बड़े स्तर पर हर एग्जाम की नकल के लिए जो मुन्नाभाई परंपरा चल निकली है हमारे प्रशासकों ने कभी उसे खत्म नहीं किया। ऐसे में दसवीं और बारहवीं के पेपर वाट्सएप पर लीक होते रहे। दु:ख इस बात का है कि सीबीएसई के कर्ताधर्ता बराबर इन्कार करते रहे। जांच दिल्ली पुलिस करे या एसआईटी या फिर सीबीआई करे या विदेश से किसी जांच एजेंसी को बुलाए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।

सवाल यह है कि एक प्रश्नपत्र सीबीएसई के कड़े से कड़े सिस्टम के बाद एग्जाम शुरू होने से पहले ही बाहर कैसे आ जाता है और भविष्य में क्या किया जा रहा है? जरूरत इस बात की है कि शिक्षा के मामले में एक ऐसा तंत्र बनाया जाना चाहिए, जिसमें मार्क्स की भूमिका कम हो तथा प्रैक्टिकल चीजें ज्यादा हों, परंतु बढ़ते कंपटीशन ने छात्र-छात्राओं पर इतना स्ट्रेस डाल दिया है कि ए-वन ग्रेड के बावजूद पसंद के कॉलेज में दाखिले की गारंटी नहीं है।

हमारी शिक्षा प्रणाली मार्क्स का एक तमाशा बनकर रह गई है। दाखिलों के लिए हमारे पास हजारों लोग सिफारिशों के लिए आते हैं और फिलहाल मैं इस सारे मामले से हटकर फिर से सीबीएसई पर फोकस करना चाहूंगा कि पेपर लीक कांड ने उसकी विश्वसनीयता पर एक काला दाग लगा दिया है, जिसे धोना तो जरूरी है ही लेकिन हमारी यह पुरजोर मांग है कि गुनहगारों की सजा भी सुनिश्चित की जानी चाहिए।

जाहिर सी बात है कि सीक्रेसी ब्रांच भी होगी, पेपर बनाने वगैरह का काम भी टॉप सीक्रेट होता है लेकिन सीबीएसई के आला अधिकारियों की मर्जी के बगैर पेपर बाहर नहीं आ सकता। हमारा सवाल तो यह है कि लाखों स्टूडेंट्स पूरे देश में अब दोबारा होने वाली इन दो परीक्षाओं को लेकर सड़कों पर उतर चुके हैं और आप अभी भी नकल से बचने के लिए नई-नई व्यवस्थाएं लागू करके अपनी पीठ थप-थपा रहे हैं। आपने नकल पर नकेल डालने की नौटंकी के चक्कर में पूरे के पूरे पेपर लीक करा डाले और अब भाषणबाजी में पड़ गए हो।

लिहाजा सीबीएसई के अधिकारियों को सजा देनी होगी, यह व्यवस्था कौन सुनिश्चित करेगा। एचआरडी मंत्री या अन्य शिक्षा अधिकारी और विशेषज्ञ ड्रामेबाजी छोड़कर दोषियों के खिलाफ एक्शन लेते हुए देश में शिक्षा माफिया के खिलाफ कब पग उठाएंगे हमें इसका जवाब चाहिए। हमारा मानना है कि नई-नई मॉडर्न तकनीक ने बड़ी पारदर्शिता स्थापित की है लेकिन शिक्षा माफिया किस तरह पेपर तक लीक कर जाता है तो यह इसलिए संभव है, क्योंकि सीबीएसई में टॉप लेबल पर हम बहुत से सुराख छोड़ देते हैं।

हमारा मानना है कि सीबीएसई के आला अफसरों के मिलीभगत के बगैर पेपर बाहर आ ही नहीं सकता। अब कोचिंग सैंटर संचालकों की गिरफ्तारी या पूछतांछ के ड्रामे को छोड़कर यह स्थापित करना होगा कि सारे कांड के पीछे सीबीएसई के अधिकारी जिम्मेवार हैं और उन्हें सजा मिलनी चाहिए। परीक्षा दोबारा कराने के ऐलान को जस्टीफाई करने वाले मंत्री या अधिकारी स्टूडेंट्स की पीड़ा को समझें और दोषियों को सजा दें।

यह हमारे देश के एजुकेशन सिस्टम पर तमाचा है और बड़े स्तर पर मंत्रियों या फिर सीबीएसई के अधिकारियों के भाषण अब बच्चों के जख्म पर नमक छिड़कने के बराबर है। हमारे यहां जांच कराने के लिए बड़े-बड़े आयोग बैठाने की परंपराएं हैं। चलो आने वाले दिनों में एक नई परंपरा आगे बढ़ेगी, लेकिन स्टूडेंट्स की टेंशन और स्ट्रेस बढ़ाने वाली परंपराएं सरकारी तंत्र के तहत सीबीएसई स्थापित कर रही है।

यह सचमुच देश के लिए बहुत शर्मनाक है। इंटरनेट का आदी और डिजीटल होना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन पेपर लीक होने जैसी बातें देश में हो रही हैं और अभी तक सफेद भेड़ों का कुछ पता नहीं चला। पूरा एजुकेशन सिस्टम गड़बड़ाया हुआ है। लापरवाही सीबीएसई की और सजा स्टूडेंट्स को, ऐसा क्यों? इसका जवाब कौन देगा? देश की भावी पीढ़ी को इसका जवाब नहीं मिलेगा। हां, जांच होकर रहेगी। दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा, ऐसे जवाब हमें नहीं चाहिए, हमें एजुकेशन सिस्टम कौन संवारेगा और गुनहगार कौन है इसका जवाब चाहिए।

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