'सारी हेकड़ी निकाल दूंगा, गुंडागर्दी बंद करो...', भाषाई विवाद के बीच राज ठाकरे पर भड़के पप्पू यादव
महाराष्ट्र में मराठी भाषा को लेकर चल रहे विवाद की लपटें अब बिहार तक पहुंच गई हैं. पूर्णिया से सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने इस मुद्दे पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे पर तीखा हमला बोला है. पप्पू यादव ने कहा कि महाराष्ट्र में हिंदी भाषी लोगों पर हमले किए जा रहे हैं और इसके पीछे राज ठाकरे की पार्टी के लोग हैं.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा, “मैंने राज ठाकरे को खुली चुनौती दी है कि इस तरह की गुंडागर्दी तुरंत बंद करें. अगर ऐसा नहीं किया गया, तो मैं खुद मुंबई आकर जवाब दूंगा.” उन्होंने साफ किया कि गलती से उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में उद्धव ठाकरे का नाम ले लिया था, लेकिन उनका वह सम्मान करते हैं. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राज ठाकरे यह सब बीजेपी के इशारे पर कर रहे हैं.
भाजपा नेता नितेश राणे की तीखी प्रतिक्रिया
दूसरी ओर, महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और भाजपा नेता नितेश राणे ने भी इस मुद्दे पर गहरी नाराज़गी जताई. उन्होंने कहा कि भयंदर में मराठी न बोलने पर एक दुकानदार की पिटाई की गई, जो एक हिंदू था. राणे ने सवाल उठाया कि क्या केवल गरीब हिंदुओं पर ही इस तरह के हमले किए जाएंगे?
उन्होंने कहा, “अगर दम है तो नल बाजार या मोहम्मद अली रोड पर जाकर अपनी ताकत दिखाओ. क्या वहां के लोग शुद्ध मराठी में बात करते हैं?” उन्होंने यह भी पूछा कि क्या आमिर खान या जावेद अख्तर जैसे लोग मराठी बोलते हैं, और क्यों उन्हें मराठी बोलने के लिए नहीं कहा जाता.
‘हिंदुओं को बांटने की साजिश’ का आरोप
नितेश राणे ने आगे कहा कि यह सब कुछ एक सोची-समझी रणनीति के तहत हो रहा है. उन्होंने आरोप लगाया कि हिंदुओं को आपस में बांटकर देश को इस्लामिक राज्य बनाने की साजिश की जा रही है. “लव जिहाद, लैंड जिहाद जैसे हथकंडों के जरिए मुंबई में हिंदुओं की संख्या घटाई जा रही है,”
'मराठी पर किसी का एकाधिकार नहीं'
इस विवाद पर महाराष्ट्र सरकार में शामिल एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना के नेता प्रताप सरनाइक ने भी अपनी राय रखी. उन्होंने कहा कि मराठी भाषा पर सिर्फ मनसे का अधिकार नहीं है.“अगर कोई मजदूर वर्ग को निशाना बनाकर कानून हाथ में लेता है, तो सरकार इसे बर्दाश्त नहीं करेगी.”
स्कूलों में हिंदी को लेकर उठा विवाद
राज्य सरकार द्वारा पहली कक्षा से स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने का फैसला भी विवाद का कारण बना. इस फैसले के खिलाफ विपक्ष और कई संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किए. विरोध के बाद सरकार ने इस आदेश को वापस ले लिया.