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संसद और मतदाता सत्यापन

04:03 AM Jul 25, 2025 IST | Aditya Chopra
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

बिहार में चल रहे मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के दौरान संसद के चालू सावन सत्र में विपक्षी दलों का चुनाव आयोग व सरकार का विरोध जारी है जिसकी वजह से संसद चल नहीं पा रही है। संसद के दोनों सदनों लोकसभा व राज्यसभा में विपक्षी दल मांग कर रहे हैं कि बिहार में मतदाता सूची के सत्यापन का कार्य रोका जाये। विपक्षी दल इस मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय भी गये थे मगर उसने भी पुनरीक्षण के कार्य पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया था। संसद शुरू हुए चार दिन हो गये हैं मगर अभी तक दोनों सदनों में कार्य शून्य के बराबर ही हुआ है। विपक्षी दल भी जानते हैं कि चुनाव आयोग एक स्वतन्त्र संवैधानिक संस्था है और सीधे संविधान से शक्ति लेकर अपने कार्यों का निष्पादन करती है। उसके कार्य में कोई भी सरकार दखलन्दाजी नहीं कर सकती। मगर विपक्षी नेताओं का आरोप है कि चुनाव आयोग केन्द्र की सत्तारूढ़ भाजपा पार्टी के साथ मिला हुआ है और चुनावों में भाजपा को जिताने के लिए नई- नई तरकीबें खोजता रहता है। यह आरोप देश की संवैधानिक व्यवस्था के ढांचे में स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि चुनाव आयोग सीधे भारत के मतदाताओं व जनता के प्रति जिम्मेदार होता है।
भारत में नागरिकों को मिला एक वोट का अधिकार मौलिक अधिकारों की श्रेणी में नहीं आता है बल्कि संवैधानिक अधिकारों के घेरे में आता है। संविधान कहता है कि चुनाव आयोग प्रत्येक भारतीय नागरिक को मतदाता सूची का हिस्सा बनायेगा। यहां भारतीय नागरिक बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत के निवासी और जायज नागरिक के बीच अन्तर करता है। भारत का निवासी होने के लिए केन्द्र ने कई वर्ष पहले आधार कार्ड जारी करने की नीति बनाई थी। इसी आधार कार्ड पर यह लिखा होता है कि यह नागरिकता का सबूत नहीं है बल्कि भारत के निवासी होने का सबूत है। अतः चुनाव आयोग यदि आधार कार्ड को नागरिकता का सबूत नहीं मान रहा है तो तकनीकी रूप से उसे गलत नहीं ठहराया जा सकता। अब सवाल यह है कि इस मुद्दे पर बिहार की राजधानी पटना से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक जो भूचाल उठा हुआ है उसकी कैफियत क्या है? इसकी कैफियत यह है कि देश भर में जाली मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी मानी जाती है। अकेले बिहार में ही चुनाव आयोग ने यह पाया है कि 50 लाख के लगभग मतदाता फर्जी या जाली हैं। इन लोगों के नाम मतदाता सूची से बाहर ही होंगे क्योंकि ये लोग चुनाव आयोग द्वारा जारी 11 शर्तों में से किसी एक पर भी खरे नहीं उतर रहे हैं।
एेसा नहीं है कि चुनाव आयोग के इस फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती है। गहन पुनरीक्षण का कार्य 25 जुलाई को समाप्त हो जायेगा और इसके बाद पूरे अगस्त महीने में कोई भी मतदाता या नागरिक सूची से बाहर किये गये व्यक्ति के मामले को चुनाव आयोग के समक्ष उठा सकता है। वह कह सकता है कि जिस पैमाने पर किसी व्यक्ति का नाम मतदाता सूची से बाहर किया गया है वह गलत है। मगर उसे यह मय सबूत के सिद्ध करना होगा कि सम्बन्धित व्यक्ति भारत का जायज नागरिक है अतः उसका नाम मतदाता सूची से बाहर न किया जाये। विपक्षी दल विगत में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बारे में कह रहे हैं कि चुनावों से पूर्व इस राज्य की मतदाता सूची में लाखों व्यक्तियों के नाम जोड़े गये जो फर्जी हैं। यह मामला संसद में भी कांग्रेस के विपक्षी नेताओं द्वारा उठाया गया। अगर चुनाव आयोग इससे सीख लेकर अब बिहार में मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण कर रहा है तो इसमें क्या बुराई हो सकती है? विपक्ष का तर्क है कि बिहार से रोजी-रोटी का तलाश में भारी संख्या में लोग पलायन करते हैं। यह एक तथ्य है जिसे नकारा नहीं जा सकता। उदाहरण के लिए पंजाब राज्य में खेती के मौसम के अन्तर्गत लाखों बिहारी पलायन करते हैं। वास्तव में पंजाब की अर्थव्यवस्था में पलायन किये हुए बिहारियों का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है। इनमें से अधिसंख्य ने पंजाब में ही अपना वोटर कार्ड बनवा लिया है क्योंकि अब स्थायी तौर पर ये इस राज्य के निवासी बनते जा रहे हैं। चुनाव आयोग ने पुनरीक्षण के दौरान पाया कि बिहार में लाखों लोग एेसे हैं जिनके नाम दोनों राज्यों की मतदाता सूचियों में हैं। अतः वाजिब तौर पर कोई भी मतदाता केवल एक ही स्थान पर वोट डाल सकता है। इसलिए पुनरीक्षण के दौरान यदि यह तथ्य उजागर हो रहा है तो इसमें हाय तौबा मचाने की क्या जरूरत है।
दूसरा मामला अवैध बंगलादेशियों व म्यांमार से आये रोहिंग्या मुसलमानों का है। इन्होंने भी अपने नाम जोड़-तोड़ करके मतदाता सूचियों में डलवा लिये हैं, जिन्हें बाहर करने का पूरा हक चुनाव आयोग को है। अगर विपक्षी दल इस मुद्दे पर भारी शोर-शराबा करते हैं तो उन्हें अपने गिरेबान में झांक कर भी देखना होगा। पूर्व में बिहार के मुख्यमन्त्री रहे राजद के नेता श्री लालू प्रसाद यादव ने भी इनके खिलाफ वक्तव्य दिया था और 2005 में प. बंगाल की मुखयमन्त्री सुश्री ममता बनर्जी ने भी एेसा ही आरोप दोहराया था। इससे कम से कम यह तो पता चलता ही है कि विभिन्न राज्यों में अवैध वोटर कार्ड का मसला है। चुनाव आयोग इस मसले को हल करने की कोशिश यदि पुनरीक्षण करके करना चाहता है तो इसमें एेतराज क्यों होना चाहिए। मगर चुनाव आयोग को भी ध्यान रखना होगा कि जिस तरह एक महीने के भीतर ही उसने मतदाता सूची के पुनरीक्षण का कार्य केवल 30 दिनों में किया है उसमें किसी प्रकार की त्रुटि न हो। बिहार में कुल 7.8 करोड़ मतदाता हैं जिनकी तसदीक हुई है। यह तसदीक पूरी गहनता के साथ होनी चाहिए और एक भी जायज नागरिक मतदाता सूची से बाहर नहीं होना चाहिए।

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