उल्फा से शांति समझौता
केन्द्र सरकार, असम सरकार और यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर होने के साथ ही पूर्वोत्तर क्षेत्र के सबसे बड़े विद्रोही समूहों में से एक गुट की लम्बी लड़ाई अब खत्म हो गई है। गृहमंत्री अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री हेमन्त सरमा और उल्फा के राज खोवा गुट के प्रतिनिधियों ने ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद पूर्वोत्तर भारत में उग्रवादी हिंसा को खत्म करने के लिए लगातार काम किया जाता रहा है। गृहमंत्री अमित शाह लगातार पूर्वोत्तर पर निगरानी बनाए हुए हैं। पूर्वोत्तर में 100 से भी अधिक जातीय समूह हैं और यह समूह अपनी संस्कृति की एक अलग एवं विशिष्ट पहचान कायम रखने के लिए अडिग हैं। प्रत्येक समुदायों में पहचान की एक प्रबल भावना भी है। कई समूहों ने इस विशिष्टता को राजनीतिक और सामाजिक रूप से भी अभिव्यक्त किया जबकि कई समूहों ने विद्रोह का रास्ता अपनाया जिससे इस क्षेत्र में उग्रवाद का जन्म हुआ। अपने हितों की उपेक्षा होते देख हिंसक आंदोलनों का जन्म हुआ। बहुत से विद्रोही समूह सरकार के साथ शांति वार्ताओं में शामिल हुए। जिसके चलते कुछ वर्षों से हिंसक घटनाओं में कमी आई। नागा वार्ता 1997 से चल रही थी लेकिन मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद 2015 में बातचीत सफल हुई आैर नैशनल साेशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नगालैंड (आईएम) और केन्द्र सरकार के मध्य समझौता हुआ। असम ने काफी खून-खराबा देखा है। हमने असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों को कई बार आग से जलते देखा है।
1979 का साल था। उस समय असम में बाहरी लोगों को खदेड़ने के लिए एक आंदोलन चरम पर था। इस आंदोलन के पीछे असम का ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन नाम का संगठन था। उसी समय परेश बरुआ ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर 7 अप्रैल, 1979 को उल्फा की शिवसागर में स्थापना की। परेश बरुआ के अन्य साथी राजीव राज कंवर उर्फ अरबिंद राजखोवा, गोलाप बरुआ उर्फ अनुप चेतिया, समीरन गोगोई उर्फ प्रदीप गोगोई और भद्रेश्वर गोहैन थे। उल्फा की स्थापना का मकसद सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से असम को एक स्वायत्त और संप्रभु राज्य बनाना था। 1986 तक गुपचुप तरीके से उल्फा काम करता रहा। इस बीच इसने काडरों की भर्ती जारी रखी। फिर इसने प्रशिक्षण और हथियार खरीदने के मकसद से म्यांमार काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (केआईए) और नैशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एनएससीएन) से संपर्क स्थापित किया। इन दोनों संगठनों के संपर्क में आने के बाद उल्फा का खूनी खेल शुरू हुआ। प्रशिक्षण और हथियार खरीदने के लिए पैसे का जुगाड़ करने के लिए उल्फा अपहरण कर वसूली का धंधा शुरू कर दिया। उल्फा लोगों का अपहरण करके उसकी आड़ में वसूली करता था। इसके अलावा चाय बागानों से भी इसने वसूली करना शुरू कर दिया और उल्फा की मांग न मानने की स्थिति में लोगों की हत्या कर दी जाती। उल्फा ने बड़ी संख्या में असम के बाहर से आए लोगों की हत्या की ताकि लोग भयभीत होकर राज्य छोड़कर चले जाएं। इसने असम के तिनसुकिया और डिब्रूगढ़ जिलों में अपने शिविर स्थापित किए।
सरकार से वार्ता करने के मुद्दे पर उल्फा दो गुटों में बंट गया। एक परेश बरुआ गुट बना और दूसरा राज खोवा तथा अनूप चेतिया गुट। 1990 में केन्द्र सरकार ने उल्फा पर प्रतिबंध लगा दिया और इसके खिलाफ सैन्य अभियान शुरू किया। सुरक्षा बलों ने एक तरफ उल्फा की कमर तोड़ी तो दूसरी तरफ राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल होने वालों से वार्ता जारी रखी। 40 वर्ष बाद केन्द्र सरकार को उल्फा के राज खोवा गुट के साथ समझौता करने में सफलता मिली। समय के साथ-साथ हिंसक संगठनों ने नेतृत्व खो दिया जिसके चलते विद्रोहियों की शक्ति क्षीण हुई और आंदोलनों की तीव्रता धीरे-धीरे बेहद कम रह गई। समय के साथ-साथ संघर्ष से निपटने में राज्य के दृष्टिकोण में भी तब्दीली आई और लोगों को राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल करने के प्रयास शुरू किए गए। इसी वर्ष अप्रैल में केन्द्र, असम सरकार और दिमासा विद्रोही संगठन के प्रतिनिधियों ने शांति समझौता किया था और अब उल्फा से समझौता किया गया है। इस शांति समझौते का मकसद अवैध घुसपैठ, मूल निवासियों के लिए जमीन का अधिकार और असम के विकास के लिए वित्तीय पैकेज जैसे मुद्दों को सुलझाना। केन्द्र और राज्य सरकार के प्रयासों से पूर्वोत्तर में उग्रवादी हिंसा में कमी आई है। असम के 85 प्रतिशत इलाकों से अफ्सपा हटा दिया गया है। 2011 से उल्फा के इस गुट ने हथियार नहीं उठाए हैं लेकिन यह पहली बार है जब बकायदा एक शांति समझौते का मसौदा तैयार किया गया है। अब सरकार समझौते के प्रमुख बिन्दुओं को एक-एक करके लागू करेगी और हथियार छोड़ चुके कैडर को पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराएगी। उम्मीद है कि पूर्वोत्तर में शांति स्थापना का लक्ष्य हासिल होगा। विकास वहीं होता है जहां शांति होती है। मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर के राज्यों में विकास की बयार बहा रखी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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