मणिपुर में शांति की पहल
मणिपुर में शांति बहाली के लिए केन्द्र सरकार की तरफ से हाल ही के दिनों में कई…
मणिपुर में शांति बहाली के लिए केन्द्र सरकार की तरफ से हाल ही के दिनों में कई कदम उठाए गए हैं। राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के बाद वार्ताओं का दौर जारी है। मैतेई और कुकी दोनों समुदायों में 13 बार बातचीत के बाद गृह मंत्रालय ने महत्वपूर्ण बातचीत की है। मई 2023 में शुरू हुए दोनों समुदायों के बीच संघर्ष का समाधान खोजने के लिए और शांति तथा सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए भरपूर प्रयास किए जा रहे हैं। गृहमंत्री अमित शाह स्वयं मणिपुर की स्थिति पर नजर रखे हुए हैं। मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़कने के बाद अब तक करीब 260 लोगों की जान जा चुकी है और हजारों लोगों को अपना घर छोड़कर दूसरी जगह जाना पड़ा था। दो दिन पहले, मणिपुर के कांगपोकपी जिले में स्थित कुकी नेतृत्व ने वार्ता के लिए तीन शर्तें रखी थीं। मैतेई और कुकी समुदायों के बहुल वाले क्षेत्रों में एक-दूसरे की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाया जाए। शांति वार्ता के लिए कम से कम छह महीने के लिए संघर्ष विराम लागू किया जाए। इस संघर्ष विराम के दौरान औपचारिक और ठोस संवाद प्रक्रिया शुरू की जाए। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि केंद्र सरकार ने इन शर्तों को स्वीकार किया है या नहीं।
मणिपुर में दोनों समुदायों में खाई इतनी चौड़ी हो गई है कि अब दोनों समुदाय एक-दूसरे के इलाकों में जाने से परहेज कर रहे हैं। राहत शिविरों में अजीब सा सन्नाटा है। हिंसा का अग्नि बीज बहुत पुराना है कि सरकार और समाज आज भी इसका समाधान नहीं खोज पाये हैं। अाखिर स्थितियां खतरनाक मोड़ पर पहुंची ही क्यों? कुकी समुदाय कहता है कि मैतेई प्रभुत्व वाले राज्य प्रशासन द्वारा उनके साथ भेदभाव किया गया। पहाड़ी क्षेत्रों के लिए एक अलग प्रशासनिक क्षेत्र की मांग बहुत पुरानी है। एक लोकतांत्रिक गैर पक्षपातपूर्ण और केन्द्रित दृष्टिकोण पहले ही मणिपुर को शांति की राह पर वापिस ला सकता था लेकिन अभी तक इसके लिए प्रयास ही नहीं किए गए। एक ही राज्य के दो भाईचारे वाले लोगों के बीच उभरे मुद्दों को सुलझाने के लिए राज्य सरकार ने भी सुरक्षा बलों का सहारा लिया। जब मैतेई समुदाय को आरक्षण देने का फैसला किया गया तो कुकी समुदाय में आक्रोश भड़क उठा। धीरे-धीरे हिंसा ने पूरे राज्य को अपनी गिरफ्त में ले लिया और हालात नियंत्रण से बाहर होते गए।
कुकी समुदाय के कुछ वर्गों ने भाजपा सरकार के वन निष्कासन अभियान को उन्हें निशाना बनाने की कोशिश के रूप में देखा था और एक नए न्यायालय के आदेश को लेकर चिंता थी जिसमें सुझाव दिया गया था कि एसटी दर्जे के लिए मैतेई की मांग-आदिवासियों और बहुसंख्यक समुदाय के बीच लंबे समय से चली आ रही झड़प पर विचार किया जाना चाहिए। 2015 से ही परेशानी बढ़ रही थी, जब मैतेई के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती राज्य सरकार ने तीन कानूनों को मंजूरी दी थी, जिन्हें मैतेई के पक्ष में देखा गया था। इससे जो बात मदद नहीं कर पाई, वह थी वर्तमान मुख्यमंत्री सिंह की आदिवासी-विरोधी छवि, जिसे “बाहरी लोगों” के बारे में की गई कई टिप्पणियों से बल मिला जिसे कुछ लोगों ने कुकी लोगों के लिए एक चेतावनी के रूप में देखा। इसलिए जब कुकी भाजपा विधायक ने 27 अप्रैल को चूड़ाचांदपुर में उद्घाटन समारोह में सीएम को आमंत्रित किया तो तनाव बढ़ गया। प्रदर्शनकारियों ने सबसे पहले एक जिम में आग लगा दी जो उस खेल परिसर का हिस्सा था जिसका उद्घाटन होना था। कुकी नेताओं के नेतृत्व वाले आदिवासी छात्र संगठन स्वदेशी आदिवासी नेता मंच ने जिले में बंद का आह्वान करने के कुछ घंटों बाद प्रदर्शनकारियों ने अगले दिन फिर से कार्यक्रम स्थल पर तोड़फोड़ की।
इसके बाद हिंसा का दावानल शुरू हो गया। “मणिपुर में मूल पहेली-समुदायों के बीच और कुछ समुदायों और प्रशासन के बीच विश्वास की कमी को राज्य सरकार द्वारा संबोधित नहीं किया गया है। इसे एक सुरक्षित दृष्टिकोण से हल नहीं किया जा सकता है, जैसा कि पिछले 2वर्षों में स्पष्ट हो चुका है। इसके लिए एक राजनीतिक प्रक्रिया की आवश्यकता है जो सभी पक्षों की चिंताओं को संवेदनशीलता से सुनती हो और ऐसे नेता हों जिन पर हर समुदाय का विश्वास हो और इसके लिए जवाबदेही की एक स्पष्ट और पारदर्शी प्रक्रिया की आवश्यकता है जहां हिंसा के हर पीड़ित को अदालत में अपना समय मिले और निष्पक्ष न्याय मिले। एक घायल राज्य को मरहम की जरूरत है, न कि बल और राजनीतिक दिखावे की।”
अब सुरक्षा बल प्रतिबंधित संगठनों पर कार्रवाई कर रहे हैं। लूटे गए हथियारों की बरामदगी की जा रही है। जरूरत इस बात की है िक दोनों समुदायों में िवश्वास बहाल किया जा सके। इसके िलए राहत शिविरों में रह रहे लोगों का पुनर्वास किया जाए और दोनों समुदायों को संतुष्ट करने के लिए राजनीितक समाधान निकाला जाए।