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लोग टूट जाते हैं...

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08:17 AM Sep 13, 2018 IST | Desk Team

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खेत प्लॉट हो गए, प्लॉट फ्लैट हो गए,
फ्लैट दुकान हो गई, पहाड़ियां समतल हो गईं,
भव्य इमारतें उग आईं,
फिर भी हम पर्यावरण की बातें करते हैं।

फरीदाबाद में अरावली की पहाड़ियों में पर्यावरण को गम्भीर नुक्सान पहुंचाने के लिए कड़ी नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कांत एन्क्लेव को 31 दिसम्बर तक गिराने का आदेश दिया है। ऐसा नहीं है कि प्रभावशाली बिल्डर ने केवल फरीदाबाद के अरावली क्षेत्र की आबाेहवा को जबर्दस्त नुक्सान पहुंचाया बल्कि देशभर में बिल्डर लॉबी ऐसा ही कर रही है। उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली में नदियों के कैचमैंट एरिया में अवैध कालोनियां बसाई जा चुकी हैं। हिमाचल के पर्यावरण को नुक्सान पहुंचाकर कंक्रीट का जंगल खड़ा किया जा चुका है। दिल्ली में अवैध निर्माणों की सीलिंग पर हंगामा काफी समय से मचा हुआ है। नोएडा, गाजियाबाद में गिरती इमारतें इस बात का प्रमाण है कि किस तरह से लोगों की जिन्दगी से खिलवाड़ किया जा रहा है।

जब प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखाती है तो पर्यावरण संरक्षण पर बड़ा शोर मचता है। फिर कुछ वर्षों बाद अवैध निर्माण का खेल शुरू हो जाता है और नई आपदा का इंतजार किया जाता है। हर आदमी को जीवनभर एक अच्छे घर की तलाश रहती है। जिस तरह एक पक्षी खुले में विचरण करते हुए तिनका-तिनका जोड़कर अपने लिए घोंसला बना लेता है, वैसे ही इन्सान पैसा-पैैसा जोड़कर बिल्डरों द्वारा दिखाए गए सपनों में फंसकर एक प्लॉट खरीद लेता है। जैसे ही वह ईंट लगाने का काम शुरू करता है, पहले पुलिस वाले आते हैं, फिर बिल्डिंग ​विभाग वाले आ जाते हैं, फिर स्थानीय निकाय का बेलदार आ जाता है, फिर जेई आ जाता है आैर चन्दा वसूली का एक सूत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाता है। प्रभावशाली लोगों को तो कोई कुछ नहीं कहता, मध्यम वर्ग का आदमी पिसता है। भेंट-पूजा लेकर सब चले जाते हैं। एक दिन आदेश आता है कि सब अवैध निर्माण है, इसे गिरा दिया जाए। अब आशियाने गिराए जाएंगे। लोग चिल्लाएंगे, कराहेंगे, अपनी आंखों से बुल्डोजर चलते देखेंगे। जिन लोगों ने उगाही करके अवैध निर्माण कराए थे वही उन्हें गिराने आ जाएंगे। किसी शायर ने ठीक ही कहा है किः

लोग टूट जाते हैं एक घर बसाने में,
इन्हें तरस नहीं आता ​​बस्तियां गिराने में।

हैरानी की बात तो यह है कि हरियाणा के वन विभाग ने 18 अगस्त 1992 को इस इलाके को फॉरेस्ट लैण्ड घोषित कर दिया था, जहां कोई भी निर्माण कार्य नहीं हो सकता था। 1992 से लेकर 2018 तक अवैध निर्माण होता रहा। बिल्डर कम्पनी फॉरेस्ट लैण्ड में प्लॉट बनाकर बेचते रहे, उसे किसी ने नहीं रोका। 25 वर्षों से कानून का मजाक उड़ाया जाता रहा। जाहिर है कि यह सब बिल्डर लॉबी और टाउन एण्ड कंट्री प्लॉनिंग विभाग की मिलीभगत से होता रहा जबकि राज्य सरकार का फॉरेस्ट विभाग वहां कंस्ट्रक्शन का विरोध करता रहा। इस बात की जवाबदेही तय होनी ही चाहिए कि कौन-कौन अफसर कालोनी बसाने में शामिल हैं। राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, हरियाणा में 692 किलोमीटर तक अरावली की पर्वत शृंखला फैली हुई है। इसमें एक लाख हैक्टेयर इलाका हरियाणा के दक्षिणी इलाकों गुड़गांव, फरीदाबाद, मेवात, रेवाड़ी आैर महेन्द्रगढ़ में है। यह पहाड़ियां वाइल्ड लाइफ का खजाना हैं। इन पहाड़ियों में कभी घने जंगल थे लेकिन अवैध खनन कर इन्हें नुक्सान पहुंचाया गया। शीर्ष अदालत के फैसले का एक सुखद पहलू यह भी है कि जिन लोगों ने निवेश किया हुआ है उन्हें उनका पूरा पैसा 18 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस करना होगा। यह पैसा कंस्ट्रक्शन कम्पनी को देना होगा, जिन्होंने मकान बनवा लिए हैं उन्हें भी जमीन की कीमत 18 फीसदी ब्याज सहित लौटानी होगी। कम्पनी आैर हरियाणा सरकार का टाउन एण्ड कंट्री प्ला​ॅनिंग विभाग संयुक्त रूप से धन लौटाएंगे। अगर कोई व्यक्ति निर्माण के मुआवजे से संतुष्ट नहीं होता तो वह कानून के मुताबिक कम्पनी और सरकारी विभाग से पैसे की मांग के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है।

अवैध निर्माण का रोग केवल शहरी क्षेत्रों को ही नहीं बल्कि पहाड़ी राज्यों को भी लग चुका है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हिमाचल प्रदेश के कसौली में होटलों के अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई करने पहुंची सहायक नगर नियोजन अधिकारी की एक होटल व्यवसायी ने जिस तरह गोली मारकर हत्या कर दी, यह दुस्साहस की पराकाष्ठा थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस घटना का स्वतः संज्ञान लिया था आैर अन्ततः हत्यारे को गिरफ्तार कर लिया गया। अवैध निर्माण करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई की जा रही है लेकिन केवल इतनी ही अपेक्षा पर्याप्त नहीं। अवैध निर्माण की समस्या को गम्भीर संकट में तब्दील करने में मददगार बनने वालों के विरुद्ध भी कठोर कार्रवाई अपेक्षित है। उत्तराखण्ड में भी अवैध निर्माण के चलते प्राकृतिक सौन्दर्य कहीं गुम हो गया है। फरीदाबाद की घटना से साफ है कि यदि राज्य सरकार के सम्बन्धित विभाग अपनी आंखें खुली रखते तो समस्या गम्भीर बनती ही नहीं।

पहाड़ी राज्यों और मैदानी राज्यों में सड़क के किनारे अतिक्रमण का स्वरूप अलग है। अवैध निर्माण शुरू होते ही सरकारी अमला घोर लापरवाही का प​िरचय देता है। सम्बन्धित विभागों के अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि अतिक्रमण के अधिकांश मामलों में अधिकारियों काे राजनेताओं आैर दूसरे प्रभावशाली तबकों की भी शह होती है। इसके बावजूद नीति निर्माताओं को चिन्ता नहीं। नोएडा, गुड़गांव आैर अन्य शहरों में बिल्डर लॉबी ने किस तरह लोगों को लूटा है, यह सबके सामने है। लोग अदालतों के चक्कर काट रहे हैं। अवैध निर्माण या अतिक्रमण के ज​िरये जमीन हड़पने की प्रवृत्ति एक राष्ट्रीय समस्या बन गई है। प​िरणामस्वरूप देश के छोटे-बड़े शहर बेतरतीब विकास का शर्मनाक नमूना बन गए हैं। जल के स्रोत सूख गए हैं, हरियाली गायब है। अनियोजित विकास का परिणाम सब भुगत रहे हैं कि छोटे-बड़े शहर चन्द घण्टों की बारिश भी नहीं झेल पा रहे।

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