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नीलाम हो रही है परवेज़ मुशर्रफ की जमीन

अब उत्तर प्रदेश के जिला बागपत के एक गांव कोटोना बांगर की वह 12 बीघे जमीन नीलाम…

03:58 AM Jun 16, 2025 IST | Dr. Chander Trikha

अब उत्तर प्रदेश के जिला बागपत के एक गांव कोटोना बांगर की वह 12 बीघे जमीन नीलाम…

अब उत्तर प्रदेश के जिला बागपत के एक गांव कोटोना बांगर की वह 12 बीघे जमीन नीलाम हो रही है जिसके मालिकाना हक पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ के नाम रहे हैं। अब यह जमीन ‘शत्रु सम्पत्ति-कानून’ के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय की सम्पत्ति है। यह ‘शत्रु सम्पत्ति कानून वर्ष 1968 में बनाया गया था क्योंकि तब तक भारत छोड़ चुके ऐसे बड़े लोगों की सम्पत्तियों के मुकदमे लगातार बढ़ते जा रहे थे। ये सभी मुकदमे ऐसी सम्पत्तियों पर दावेदारी से जुड़े थे जिनके मालिक, 1947, 1962 व 1965 के क्रमश: भारत-चीन युद्ध और भारत-पाक युद्ध के समय यह देश छोड़कर या तो चीन में जा बसे थे या पाकिस्तान में।

इन सम्पत्ति-विवादों में सबसे बड़ा विवाद उत्तर प्रदेश के ही राजा-महमूदाबाद की सम्पत्तियों के बारे में था। राजा स्वयं 1957 में पाकिस्तान जा बसा था और उसने वहां की नागरिकता भी ले ली थी। मगर उसकी बेगम और बेटे मुहम्मद अमीर मुहम्मद खान भारत में ही रहे और उन्होंने अपनी भारतीय नागरिकता भी बहाल रखी। मगर जब 1968 में ‘शत्रु सम्पत्ति कानून’ बना तो वह सारी सम्पत्ति भी शत्रु-सम्पत्ति घोषित हो गई। वर्षों तक मामला सर्वोच्च अदालत में भी चला और 21 अक्तूबर, 2005 में आखिर न्यायमूर्ति अशोक भान और न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर ने इस विवाद का निर्णय राजा-परिवार के पक्ष में दिया। इस पर ऐसे अनेक लम्बित विवादों की पिटारियां खुलने लगी।

आखिर 7 जनवरी 2016 को भारत के राष्ट्रपति द्वारा जारी अध्यादेश के तहत संविधान-संशोधन अध्यादेश लागू हुआ और बाद में 2017 में इसे बकायदा कानूनी रूप दे दिया गया। ऐसा ही एक विवाद पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा की सम्पत्तियों को लेकर भी उठा था। ये सम्पत्तियां पंजाब में फैली हुई थी। परवेज़ मुशर्रफ के सम्पत्ति संबंधी दावों में उनकी दिल्ली स्थित पुश्तैनी हवेली का विवाद भी था। अब इस हवेली पर अब जैनियों का स्वामित्व है, मगर परवेज़-परिवार की अनेक यादें इससे अब भी जुड़ी रही हैं।

उधर पाकिस्तान के कायदे आज़म मुहम्मद अली जिन्ना के मुम्बई स्थित जिन्ना-हाउस के किस्से भी अब फिर कुनमुनाने लगे हैं। फिर वर्ष 1936 में सिर्फ दो लाख रुपए में बना यह जिन्ना-हाउस अब 2600 करोड़ का है और महाराष्ट्र का पीडब्ल्यूडी विभाग इस विशाल हवेली के रखरखाव पर लाखों रुपए प्रति वर्ष खर्च करता है। यह वर्ष 1962 से खाली पड़ा है। वर्ष 1936 में जब मालाबार हिल्स में यह इमारत बनी थी तब इस इमारत को फिर ‘साउथ कोर्ट’ कहा जाता था। अखरोट की लकड़ी और संगमरमर के खंभे हैं। आकर्षण- जिन्ना हाउस मलाबार हिल पर ढाई एकड़ जमीन पर बना है। अखरोट की लकड़ी की पैनलिंग और इटैलियन संगमरमर से बने खूबसूरत खंभे इसके आकर्षण हैं। यह ब्रिटिशकालीन इंडो गोथिक स्टाइल का बंगला है। यह कई दशक तक ब्रिटेन के डिप्टी हाईकमिश्नर का आवास भी रहा। पर 1982 से यह खाली पड़ा है।

भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा था, मैं पीएम मोदी से आग्रह करता हूं कि जिन्ना हाउस को जिन्ना की बेटी दीना वाडिया को सौंप देना चाहिए जिन्होंने पाकिस्तान में बसने से इन्कार कर दिया था। दीना ने 2007 में बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी कि इस संपत्ति का मालिकाना हक उन्हें मिल जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पाकिस्तान इस बंगले को खरीदना चाहता है। उसका कहना था कि अगर भारत इसे बेचना नहीं चाहता तो वह इसे लीज़ पर दे सकता है ताकि यहां कॉन्सुलर कार्यालय बना सके। भारत ने उसकी मांग ठुकरा दी है।

यह इमारत 2.5 एकड़ में फैली है। जिसका डिजाइन क्लाउड बेटली ने किया था। बेटली इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट्स के पूर्व अध्यक्ष थे। जिन्ना हाउस बनाने के लिए खासतौर पर इटली से प्रशिक्षित कामगारों को भारत लाया गया था। बंगले का रुख समुद्र की ओर है। आजादी के बाद 1981 तक जिन्ना हाउस में ब्रिटिश उच्चायोग रहा। इसके बाद यह सेंट्रल पीडब्ल्यूडी के तहत आया। इसे 9997 में सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस (आईसीसीआर) को सौंप दिया गया। तब इसे सार्क का उप प्रादेशिक केंद्र बनाने का फैसला किया गया था। मगर विवादों के कारण यह खाली पड़ा रहा।

बंटवारे का गवाह जिन्ना हाउस पाकिस्तान के निर्माण के लिए मुस्लिम लीग के आंदोलन का केंद्र था। यहीं मुस्लिम लीग के नेता मिला करते थे और विचार-विमर्श किया करते थे। यहां बैठकर वे लोग ब्रिटिश सरकार को यह समझाने की रणनीति बनाते थे कि मुस्लिमों के लिए अलग राष्ट्र चाहिए। वे यहीं बैठकर कांग्रेस से निपटने की योजना भी बनाते थे।

आजादी से ठीक एक साल पहले 15 अगस्त, 1946 को जिन्ना ने कांग्रेस के प्रमुख नेता जवाहर लाल नेहरू के साथ पाकिस्तान के निर्माण के लिए फिर से चर्चा शुरू की थी। आजादी के बाद जिन्ना पाकिस्तान चले गए लेकिन अपना आखिरी दिन मुंबई स्थित जिन्ना हाउस में गुजारने की इच्छा जताई थी। पंडित नेहरू जिन्ना हाउस को शत्रु संपत्ति नहीं घोषित करना चाहते थे। जिन्ना ने नेहरू को निजी पत्र लिखकर अपना बंगला सुरक्षित रखने की गुजारिश की थी। वह चाहते थे कि अगर इसे देना भी हो तो किसी यूरोपीय दूतावास को ही दिया जाए क्योंकि इसकी कद्र वही कर सकते हैं। नेहरू जी ने उनकी बात मानकर उन्हें तीन हजार रुपये मासिक किराया देने का ऑफर दिया। दुर्भाग्य से सौदा होने से पहले ही जिन्ना का निधन हो गया। आखिर जिन्ना हाउस को 1949 में शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया गया और सरकार ने बिल्डिंग को अपने कब्जे में ले लिया। इसे ब्रिटिश उच्चायोग को अलॉट कर दिया गया जिसका संचालन 1981 तक वहां से होता रहा। 1981 के बाद ब्रिटिश उच्चायोग ने उसे खाली कर दिया जिसके बाद पाकिस्तान ने इस पर अपना दावा जताया।

जिन्ना हाउस को बनाने के बाद मोहम्मद अली जिन्ना ने अपनी अविवाहित बहन फातिमा जिन्ना के नाम वसीयत लिखी। उन्होंने इस बंगले समेत अपनी सारी संपत्ति का एकमात्र उत्तराधिकारी फातिमा जिन्ना को बनाया। बंटवारे के बाद फातिमा जिन्ना पाकिस्तान चली गईं। 1962 में फातिमा ने बॉम्बे हाई कोर्ट से उत्तराधिकार पत्र हासिल कर लिया था लेकिन बाद में शत्रु संपत्ति कानून, 1968 घोषित होने के बाद जिन्ना हाउस भी शत्रु संपत्ति के अधीन आ गया।

जिन्ना की बेटी दीना वाडिया ने भी इस पर अपना हक जताया था। उसने अगस्त 2007 में बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने याचिका दाखिल करके कहा था कि चूंकि वह जिन्ना की एकमात्र कानूनी वारिस हैं इसलिए घर का कब्जा उनको मिलना चाहिए। उनके निधन के बाद उनका बेटा नुसली वाडिया केस लड़ता रहा है। दीना की शादी एक भारतीय से हुई थी और वह भारत में बस गई थीं। दीना वाडिया ने दावा किया था कि जिन्ना की संपत्ति पर हिंदू उत्तराधिकार कानून लागू होता है क्योंकि दो पीढ़ी पहले जिन्ना हिंदू थे।

लोकमान्य तिलक स्वराज्य भूमि ट्रस्ट की मांग की थी कि जिन्ना हाउस को उनके हवाले किया जाए। उन्होंने कहा था कि वह भित्तिचित्र के माध्यम से तिलक की विरासत को चित्रित करना चाहते हैं। ट्रस्ट के अनुसार, जिन्ना लोकमान्य तिलक का काफी सम्मान करते थे। विदेश मंत्रालय ने दीना वाडिया के दावे को खारिज कर दिया था। तब बॉम्बे हाई कोर्ट को बताया गया कि मोहम्मद अली जिन्ना की 1939 की वसीयत से परिवार में प्रॉपर्टी का उत्तराधिकार तय हो गया था। जिन्ना हाउस पर हक फातिमा जिन्ना का था लेकिन फातिमा जिन्ना पाकिस्तान चली गई थीं, इसलिए जिन्ना हाउस शत्रु संपत्ति के कस्टोडियन के कंट्रोल में आ गया जो भारत सरकार के अधीन है। यानी अब जिन्ना हाउस पर भारत सरकार का कब्जा है।

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