कीटनाशक दवा बाजार में बढ़ रहा विदेशी माल का दबदबा
विदेशी एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास ये आंकड़े तैयार होते हैं और उन्हें अपने ‘टेक्नीकल’ का पंजीकरण कराने की अनिवार्यता नहीं रह गई है।
नई दिल्ली : कीटनाशक बनाने वाली कंपनियों के संगठन ने कीटनाशकों के लिए आयात पर बढ़ती निर्भरता पर चिंता जतायी है। उसका कहना है कि आयातित कीटनाशकों में प्रयुक्त होने वाली दवाओं के पंजीकरण की आवश्यकता खत्म होने से देश में कीटनाशकों का आयात तेजी से बढ़ रहा है, घरेलू विनिर्माताओं के लिए समस्या उत्पन्न हुई है और किसानों को आयातित रसायन के लिए महंगा दाम चुकाना पड़ रहा है। पेस्टीसाइड मैनुफैक्चरर्स एंड फार्मूलेटर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (पीएमएफएआई) के अध्यक्ष प्रदीप दवे ने कहा कि संप्रग शासनकाल के दौरान वर्ष 2007 में कीटनाशकों में प्रयुक्त होने वाली दवाओं का विवरण (जिसे टेक्नीकल बोला जाता है) के सेन्ट्रल इंससेक्टेसाइड बोर्ड के साथ पंजीकरण की अनिवार्यता को खत्म कर दी थी और केवल कीटनाशक दवा (फार्मूलेशन) का पंजीकरण करने की व्यवस्था को बरकरार रखा गया जहां से सारी समस्या उत्पन्न हुई है।
दवे ने कहा कि भारत में कीटनाशक क्षेत्र वर्ष 1968 के इंसेक्टेसाइड कानून’ से संचालित होता है। उन्होंने कहा कि इस व्यवस्था के कारण भारतीय कंपनियां के लिए कीटनाशकों का उत्पादन करना मुश्किल हो गया है क्योंकि इसमें कीटनाशकों को तैयार करने के लिए लगभग पांच छह साल लगते हैं और भारी मात्रा में आंकड़ों को एकत्रित करना होता है साथ ही कंपनियों पर इस काम के लिए 250 से 300 करोड़ रुपये का खर्च आता है। जबकि विदेशी एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास ये आंकड़े तैयार होते हैं और उन्हें अपने ‘टेक्नीकल’ (कीटनाशक में प्रयुक्त होने वाली दवाओं) का पंजीकरण कराने की अनिवार्यता नहीं रह गई है। इसके अलावा उनके पास 20 साल तक का पेटेन्ट भी होता है जिसके कारण दूसरी कंपनियों के लिए उसकी नकल पेश करने में कानूनी अड़चनें आती हैं।
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