For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

1991 का पूजा स्थल कानून

स्वतन्त्र भारत की सबसे बड़ी विशेषता लोकतन्त्र के साथ ही धर्मनिरपेक्षता…

10:50 AM Dec 07, 2024 IST | Aditya Chopra

स्वतन्त्र भारत की सबसे बड़ी विशेषता लोकतन्त्र के साथ ही धर्मनिरपेक्षता…

1991 का पूजा स्थल कानून

स्वतन्त्र भारत की सबसे बड़ी विशेषता लोकतन्त्र के साथ ही धर्मनिरपेक्षता भी रही है जो कि संविधान के मूल ढांचे में समाहित है। संविधान का निर्माण करने वाले हमारे पुरखों के सामने यह लक्ष्य तब भी स्पष्ट था जब मजहब की बुनियाद पर भारत से काट कर पाकिस्तान का निर्माण कर दिया गया था। हमारा 90 प्रतिशत संविधान देश का बंटवारा होने के बाद ही लिखा गया जिसे संविधान सभा ने बाबा साहेब अम्बेडकर की अगुवाई में लिखा परन्तु संविधान सभा ने स्वतन्त्र देश का ‘लक्षित संकल्प’ (ओबजेक्टिव रिजोल्यूशन) 1946 में ही पेश कर दिया था जिसमें धर्मनिरपेक्ष देश की दिशा में भारत का लक्ष्य स्पष्ट था। अतः धर्मनिरपेक्षता हमारे संविधान के मूल ढांचे में शुरू से ही अवस्थित रही। संविधान ने भारत के नागरिकों के ‘राज्य’ की जो परिकल्पना प्रस्तुत की उसमें प्रत्येक जाति, धर्म, सम्प्रदाय , वर्ण व लिंग के नागरिक के एक समान अधिकार रखे गये और प्रत्येक को अपने पंथ या धर्म के अनुसार जीवन जीने व पूजा करने के अधिकार दिये गये और राज्य का कोई धर्म न होने का उद्घोष किया गया। अतः 1991 में भारत की संसद ने राम जन्म भूमि आन्दोलन के चलते एक ‘विशेष पूजा स्थल कानून’ बनाया और लिखा कि केवल अयोध्या के विवादास्पद स्थल को छोड़ कर देश में जिस धर्म स्थान की जो स्थिति 15 अगस्त, 1947 को थी उसे बदला नहीं जा सकता और इस सन्दर्भ में देश का कोई भी न्यायालय किसी मुकदमे की सुनवाई नहीं करेगा। मगर सर्वोच्च न्यायालय में पिछले दिनों इसी कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका दाखिल की गई जिस पर देश की सबसे ऊंची अदालत में विचार चल रहा है। यह कानून 1991 में केन्द्र की कांग्रेस नीत पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार ने बनाया था। इस याचिका की मुखालफत करते हुए काशी की ज्ञानवापी मस्जिद की इंतजामिया कमेटी ने अदालत में दलील दी है कि अगर इस कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को स्वीकृत किया जाता है तो इसके बहुत भयंकर परिणाम होंगे और देश के हर जिले व कस्बे में स्थित मस्जिदों, मजारों व खानकाहों आदि के स्वरूप को बदलने का पिटारा खुल जायेगा जिससे भारत की धर्मनिरपेक्षता ही केवल खतरे में नहीं आयेगी बल्कि साम्प्रदायिक माहौल भी गर्मा जायेगा। क्योंकि उत्तर प्रदेश के संभल शहर में अवस्थित शाही जामा मस्जिद पर उठे विवाद से साम्प्रदायिक उन्माद पैदा हुआ जिसमें छह नागरिकों की मृत्यु हुई।

गौर से देखें तो कमेटी यह कह रही है कि सर्वोच्च न्यायालय देश की निचली अदालतों में किसी मस्जिद या मजार के मन्दिर या हिन्दू स्थल होने की याचिकाओं पर सुनवाई करने पर प्रतिबन्ध लगवाना चाहती है। अब इस पूरे मामले को हमें भारत की एकता व अखंडता के सन्दर्भ में देखना होगा। भारत कोई धर्म आधारित फलसफे पर चलने वाला देश (इडियोलोजिकल स्टेट) नहीं है बल्कि यह भौगोलिक आधार पर (टेरीटोरियल स्टेट) चलने वाला देश है। इसका मतलब यह होता है कि भारत के जिस भी भू-भाग में जिस भी धर्म को मानने वाला व्यक्ति रहता है वह इस देश का सम्मानित नागरिक है और उसके बराबर के हक हैं। इन सभी नागरिकों को व्यक्तिगत रूप से अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है। अतः सदियों पहले के इतिहास में किसी सम्प्रदाय के साथ अगर कोई अन्याय हुआ है तो उसे आज की पीढ़ी को पलटने का अधिकार कैसे मिल सकता है? जहां तक अयोध्या के राम मन्दिर का सवाल है तो इसे सर्वोच्च न्यायालय ने भी 2019 के अपने फैसले में एक अपवाद माना था। इसलिए इस तर्क में काफी वजन है कि पूजा स्थलों के विवादों का पिटारा न खोला जाये। क्योंकि भारत के ही कुछ नागरिक यह भी मांग करने लगे हैं कि भारत में प्राचीन सदियों में बौद्ध धर्म स्थलों के ऊपर हिन्दू मन्दिरों का निर्माण किया गया।

वास्तव में वर्तमान भारत में एेसी बहस पूर्णतः निरर्थक है क्योंकि निचली अदालतों में यदि एेसी सम्बन्धित याचिकाएं स्वीकार होने लगीं तो भारत की एकता व अखंडता के लिए खतरा पैदा हो सकता है जबकि स्वतन्त्रता पाने के लिए हिन्दू व मुसलमानों ने कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया है हालांकि दगाबाज मुहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों के एक तबके को बहका कर उनके लिए अलग देश पाकिस्तान बनवा लिया था मगर इसके लिए अंग्रेज पूरी तरह जिम्दार थे जिन्होंने अपने दो सौ साल के शासन के दौरान भारतीयों को मजहब के आधार पर बांटने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन यह जिम्मेदारी भारत के बहुसंख्यक हिन्दू समाज पर भी है कि वह मस्जिदों को मन्दिर सिद्ध करने में अपनी ऊर्जा न गंवाए। 2019 के राम जन्म भूमि फैसले में सर्वोच्च न्यायालय का यही सन्देश है। जिसमें उसने कहा था कि सदियों पुरानी घटनाओं को न्यायालय अब पलट नहीं सकते लेकिन इसके लिए जरूरी है अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज को भी देश हित में अपनी दरियादिली दिखानी चाहिए और काशी विश्वनाथ परिसर की ज्ञानवापी मस्जिद को हिन्दुओं को सौंप देना चाहिए। क्योंकि यह मस्जिद मन्दिर की दीवारों पर ही टिकी हुई है। जहां तक 1991 के कानून का सवाल है तो इसकी संवैधानिक वैधता पर सर्वोच्च न्यायालय को विचार करने का अधिकार है मगर उसे 2019 के राम जन्म भूमि मन्दिर के अपने ही फैसले पर गौर करना पड़ेगा, जिसमें साफ सन्देश दिया गया है कि इतिहास को बदला नहीं जा सकता।

Advertisement
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
×