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नेपाल में भी हुआ खेला

02:20 AM Mar 06, 2024 IST | Aditya Chopra

दुनिया में आमतौर पर दो पड़ोसी देशों के बीच रिश्ते व्यावसायिक और कूटनीतिक होते हैं। सीमाएं जुड़ी हुई होती हैं लेकिन भारत और नेपाल के बीच संबंध इन सबसे अलग हैं। दोनों देशों के संबंध इसलिए नहीं हैं कि इनकी सीमाएं जुड़ी हुई हैं बल्कि यह संबंध दोनों देशों के लोगों से जुड़े हुए हैं। भारत और नेपाल की धार्मिक, सांस्कृतिक और खानपान की साझा विरासत इतनी मजबूत है कि संबंधों में कई बार खटास आने के बावजूद लोगों से सीधे जुड़े होने के कारण वह सुलझ भी जाते हैं। भारत की अति महत्वपूर्ण उत्तरी सीमा से सटा नेपाल सामरिक दृष्टि से भी बेहद अहम है। चीन की सीमा भी नेपाल से लगती है इसलिए नेपाल के हर राजनीतिक घटनाक्रम का प्रभाव भारत पर पड़ता है। नेपाल की राजनीति में भी अब बड़ा खेला हो गया है। नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने कुछ घंटों में ही नेपाली कांग्रेस से गठबंधन तोड़ चीन समर्थक के.पी. शर्मा ओली की पार्टी के साथ गठबंधन कायम कर दुबारा सरकार बना ली है और अपनी प्रधानमंत्री पद की कुर्सी बरकरार रखी है। नेपाली कांग्रेस को भारत समर्थक माना जाता है। नेपाली कांग्रेस के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देऊबा का झुकाव हमेशा भारत की तरफ ही रहा है।
प्रचंड ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरह विपक्षी पार्टी के साथ सांठगांठ कर सबसे बड़ी पार्टी नेपाली कांग्रेस को सरकार से दूर कर दिया है। इसके साथ ही मालदीव के बाद अब पड़ोसी देश नेपाल में भी चीन समर्थक सरकार आ गई है। 15 महीनों से सीपीएन और नेपाली कांग्रेस गठबंधन की सरकार चल रही थी लेकिन दोनों में लगातार अविश्वास पनप रहा था। अब नेपाल में पूर्ण रूप से वामपंथी सरकार बन गई है। पहले प्रचंड और के.पी. शर्मा आेली एक ही पार्टी में थे लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी में टूट के बाद दोनों की राह अलग हो गई थी। नेपाल में हुई सशस्त्र क्रां​ित में माओवादी प्रचंड की भूमिका बहुत बड़ी रही है। कभी नेपाल को दुनिया का एकमात्र हिन्दू देश कहा जाता था और वहां राजा की पूजा हिन्दू देवी-देवताओं की तरह होती थी। यहां के नागरिकों ने संघर्ष करके राजतंत्र का खात्मा तो कर ​दिया लेकिन उसके बाद जो लोकतंत्र स्थापित हुआ उसकी जड़ें इतनी कमजोर रहीं कि नेपाल में एक के बाद एक प्रधानमंत्री बदलते गए। स्थिर सरकारें स्थापित हो ही नहीं पाईं। संविधान गढ़ने में संविधान सभा की विफलता के बाद भले ही नया संविधान अपनाया गया लेकिन सरकारें ​​​बिना संविधान के ही चलती रहीं। अब क्यों​िक नेपाल सरकार में चीन के पालतू के.पी. शर्मा ओली की एंट्री हो चुकी है इसलिए नेपाल के भारत के साथ रिश्तों पर प्रभाव पड़ने की आशंकाएं पैदा हो गई हैं।
नेपाल में के.पी. शर्मा ओली 2018 से मई 2021 के बीच प्रधानमंत्री थे। प्रधानमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल अपने चीनी पक्षपाती फैसलों और भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने वाले बयानों के लिए मशहूर था। उनके कार्यकाल के दौरान 2020 में भारत और नेपाल के बीच सीमा को लेकर एक विवाद सामने आया था। ओली सरकार ने भारत के एक हिस्से को अपना दिखाते हुए नया नक्शा जारी किया था, जिसका भारत ने आधिकारिक तौर पर विरोध किया था। नेपाल में तब संसद ने नए नक्शे को अप्रूव कर दिया था। अपने कार्यकाल में ओली ने 1950 की भारत-नेपाल मैत्री संधि को संशोधित करने का भी समर्थन किया था। नवंबर में भी वह चुनाव प्रचार के दौरान सीमा विवाद का जिक्र करते रहे। 2020 में प्रधानमंत्री रहने के दौरान के.पी. शर्मा ओली ने आरोप लगाए थे कि काठमांडौ और नई दिल्ली में उन्हें हटाने की साजिश रची जा रही है।
प्रचंड भी कई बार भारत विरोधी बयान दे चुके हैं। उन्होंने ये तक कहा दिया था कि भारत और नेपाल के बीच जो भी समझौते हुए हैं उन्हें खत्म कर देना चाहिए। 2016-2017 में भी प्रचंड के हाथ में सरकार की कमान रही। इस दौरान उन्होंने कहा था कि नेपाल अब वो नहीं करेगा जो भारत कहेगा। पिछले कुछ सालों से देखा जा रहा है कि प्रचंड का रुझान भारत की ओर है। देऊबा के साथ सरकार चलाने की वजह से भी वह भारत विरोध से दूर नजर आए। दरअसल नेपाली कांग्रेस नेता शेर बहादुर देऊबा को भारत समर्थक माना जाता है। इससे पहले जब देऊबा सत्ता में थे तो उन्होंने भारत के साथ रिश्ते सामान्य किए थे। अब जब प्रचंड अपने पुराने साथी के साथ जुड़ गए हैं तो उनका भारत के प्रति रुख देखने लायक होगा।
चीन नेपाल में भारत काे पछाड़ने की कूटनीति पर काम कर रहा है और वह भारत को चौतरफा घेरने के लिए नेपाल की जमीन का इस्तेमाल कर सकता है। ओली प्रचंड पर चीन समर्थक नीतियां अपनाने के लिए दबाव डालेंगे ही। इससे भारत सरकार की परेशानी बढ़ सकती है। ओली की मौजूदगी से कई विवादित मुद्दे फिर से उठ सकते हैं। भारत को नेपाल की नई सरकार से सतर्क रहना होगा और यह भी देखना होगा कि प्रचंड भारत और चीन में कितना संतुलन बनाकर चलते हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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