आजादी के बाद पढ़ाया गया गुलामी के कालखंड में साजिशन रचा गया था इतिहास : PM मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विज्ञान भवन में पूर्ववर्ती अहोम जनरल लाचित बरफूकन की 400वीं जयंती पर सालभर में आयोजित कार्यक्रमों के समापन समारोह को संबोधित किया। इससे पहले प्रधानमंत्री ने बरफूकन पर लिखी किताब का विमोचन और प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया।
01:17 PM Nov 25, 2022 IST | Desk Team
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विज्ञान भवन में पूर्ववर्ती अहोम जनरल लाचित बरफूकन की 400वीं जयंती पर सालभर में आयोजित कार्यक्रमों के समापन समारोह को संबोधित किया। इससे पहले प्रधानमंत्री ने बरफूकन पर लिखी किताब का विमोचन और प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया। इस अवसर पर असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा, राज्यपाल जगदीश मुखी और केन्द्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
प्रधानमंत्री मोदी ने शुक्रवार को कहा कि कहा, ‘‘भारत का इतिहास सिर्फ गुलामी का इतिहास नहीं है। भारत का इतिहास योद्धाओं का इतिहास है, अत्याचारियों के विरूद्ध अभूतपूर्व शौर्य और पराक्रम दिखाने का इतिहास है। भारत का इतिहास वीरता की परंपरा का रहा है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन दुर्भाग्य से हमें आजादी के बाद भी वही इतिहास पढ़ाया जाता रहा जो गुलामी के कालखंड में साजिशन रचा गया था। देश के कोने-कोने में भारत के सपूतों ने आतताइयों का मुकाबला किया लेकिन इस इतिहास को जानबूझकर दबा दिया गया।’’
प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के बाद जरूरत थी कि गुलाम बनाने वाले विदेशियों के एजेंडे को बदला जाता लेकिन ऐसा नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि ऐसे बलिदानियों को मुख्यधारा में ना लाकर जो गलती पहले की गई उसे सुधारा जा रहा है और लचित बोड़फूकन की जयंती को मनाने के लिए दिल्ली में किया गया यह आयोजन इसी का प्रतिबिंब है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश आज गुलामी की मानसिकता को छोड़ अपनी विरासत पर गर्व करने के भाव से भरा हुआ है और भारत ना सिर्फ अपनी सांस्कृतिक विविधता का उत्सव मना रहा है बल्कि अपनी संस्कृति के ऐतिहासिक नायक-नायिकाओं को भी गर्व से याद कर रहा है। मोदी ने कहा कि बोड़फकून ऐसे वीर योद्धा थे, जिन्होंने दिखा दिया कि हर आतंकी का अंत हो जाता है लेकिन भारत की अमर ज्योति अमर बनी रहती है।
कौन हैं लचित बोड़फूकन?
ज्ञात हो कि लचित बोड़फूकन के 400वें जयंती वर्ष समारोह का उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इसी साल फरवरी में असम के जोरहाट में किया था। लचित बोड़फूकन असम के पूर्ववर्ती अहोम साम्राज्य में एक सेनापति थे। सरायघाट के 1671 के युद्ध में उनके नेतृत्व के लिए उन्हें जाना जाता है।
इस युद्ध में औरंगजेब के नेतृत्व वाली मुगल सेना का असम पर कब्जा करने का प्रयास विफल कर दिया गया था। इस विजय की याद में असम में 24 नवंबर को लचित दिवस मनाया जाता है। सरायघाट का युद्ध गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी के तटों पर लड़ा गया था।
Advertisement
Advertisement

Join Channel