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पॉक्सो एक्ट और समाज

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09:48 AM Dec 29, 2018 IST | Desk Team

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दुनिया को चलाने के लिए हर समाज में कुछ न कुछ नियम कानून स्थापित किए गए हैं, अगर कोई व्यक्ति इन नियमाें और कानूनों से हटकर कोई कृत्य करता है तो उसे असामाजिक कहते हैं। मनोविकार की प्रवृतियों की परिभाषा काफी कुछ इस एक शब्द असामाजिक से प्रभावित है। काफी ऐसी बातें हैं जो मानव स्वभाव के रूप में हैं लेकिन वह बातें असामाजिक हैं और कई बातें ऐसी हैं जो सामाजिक होते हुए भी मानव स्वभाव के प्रतिकूल हैं ऐसे में किसी व्यक्ति का मानसिक स्तर किस प्रकार प्रभावित है यह कहना मुश्किल है। समाज में कुछ ऐसी घटनाएं हो रही हैं जिससे पता चलता है कि समाज बीमार होता जा रहा है। बालिकाओं से लेकर अधेड़ उम्र की महिलाओं से बलात्कार की घटनाएं सामने आ रही हैं।

लड़कियों काे जिंदा जलाकर मार दिया जाता है। उन पर तेजाब से हमले किए जाते हैं। बच्चों का यौन शोषण किया जाता है। अखबार और मीडिया चैनल ऐसी खबरों से पटे रहते हैं। सवाल यह है कि हमने निर्भया कांड के बाद भी कुछ नहीं सीखा। अगर समाज में हमारे बच्चे यौन शोषण का शिकार होते हैं और उनका शोषण करने वाले भी परिवार के करीबी और जान-पहचान वाले ही होते हैं तो फिर सरकार को और समाज को सोचना पड़ेगा कि ऐसी मानसिकता वाले समाज का क्या उपचार किया जाए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रन फ्राेम सेक्सुयल आफेंसेज (पाक्सो) एक्ट की नई धाराओं को और कठोर बनाने के लिए संशोधन किए गए।

इन संशोधनों के बाद यौन शोषण या बलात्कार के दोषियों को फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है। साथ ही दवाइयों और हार्मोन के इस्तेमाल से बच्चों का बचपन छीने जाने पर रोक लगाने के लिए एक्ट की धारा 9 को कड़ा बनाया गया है। चाइल्ड पोर्नोग्राफी के व्यापारिक उद्देश्यों से इस्तेमाल, इसके भंडारण या ऐसी सामग्री अपने पास रखने वालों के खिलाफ सजा के प्रावधानों को भी कठोर बनाया गया है। संगीन अपराधों के लिए अब तक पाक्सो एक्ट में फांसी की सजा का प्रावधान नहीं ​था हालांकि हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे कई राज्याें में 12 साल से कम उम्र की बच्चियों का यौन शोषण करने वालों के खिलाफ पहले ही मौत की सजा का प्रावधान है। अब महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या मृत्युदंड का प्रावधान करके समाज में ऐसे संगीन अपराध रुक जाएंगे।

निर्भया कांड के 6 साल बाद भी क्या समाज बदल जाएगा। उस बस में निर्भया से दरिदंगी के निशान आज भी बाकी हैं। जिससे पूरा देश दहल गया था। निर्भया कांड के बाद एक सामाजिक क्रांति हुई जिसने सत्ता को हिला कर रख दिया था लेकिन आज तक उस सामाजिक क्रांति के नायक बार-बार इस बात की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं कि निर्भया कांड के दोषियों को तुरंत फांसी दी जाए लेकिन आज तक दोषी करार दिए गए व्यक्तियों को फांसी नहीं हुई। संसद में 16 से 18 वर्ष के किशोरों (बाल अपराधी) पर मुकद्दमा चलाने की अनुमति देने वाला विधेयक पास भी हो गया था। नए कानून में बाल अपराधी पर वयस्क की तरह मुकद्दमा चलाने का प्रावधान किया गया था लेकिन अफसोस निर्भया कांड में सबसे ज्यादा खूंखार रहे किशोर अपराधी को रिहा कर दिया गया क्योंकि कानून बाद में बना था।

निर्भया कांड के आरोपी की रिहाई के विरुद्ध भारत की न्याय व्य​वस्था को निर्भया के स्वर में धिक्कारती कविता की चंद पंक्तियां पेश कर रहा हूं। जिसके वहशीपन से मेरी सांस का धागा टूट गया बहुत दुः खी हूं तुम्हें बताते मेरा कातिल छूट गया। रौंध गया जो मेरे सपने जिसने मुझ को मारा था केवल मेरा नहीं था वो मानवता का हत्यारा था। सीधा साधा मेरा जीवन कुछ घंटों में बदल गया। सुन कर जिसका क्रूर कृत्य दिल बड़े-बड़ों का दहल गया। महत्वपूर्ण सवाल यह है कि कानून तो पहले से ही बहुत सख्त है।

यह भी सही है कि लोकतंत्र में कानून का खौफ अपराधियों को होना ही चाहिए लेकिन आज भी दरिंदे हर चौराहे पर हर गली के नुक्कड़ पर खड़े हैं। क्या कठुआ की 8 साल की बच्ची से निर्भया जैसी दरिंदगी किए जाने को लेकर देश क्यों नहीं भड़कता। जघन्य अपराध करने वालों के समर्थन में जुलूस निकाले जाते हैं और सोशल मीडिया पर उन्हें नायक की तरह पेश किया जाता है। भारतीय समाज को नैतिक मूल्यों और अच्छे संस्कारों की जरूरत है जिसे केवल अभिभावक और समाज ही दे सकता है इसलिए समाज की मानसिकता बदलने के लिए अभियान चलाया जाना चाहिए।

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